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2019 की जंग: धीरे-धीरे ही सही राहुल गांधी ने बुन लिया मोदी के खिलाफ जाल

By योगेंद्र कुमार
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Rahul Gandhi 2019 Lok Sabha के PM Modi के खिलाफ बुनने लगे हैं जाल | वनइंडिया हिन्दी

नई दिल्‍ली। कर्नाटक में कांग्रेस के समर्थन से कुमारस्‍वामी की सरकार बनने जा रही है। कर्नाटक की सत्‍ता में भागीदारी के लिहाज से जेडी-एस से गठबंधन कांग्रेस के लिए फायदा का सौदा भले न हो, लेकिन 2019 के लिए लिहाज से यह उसकी बड़ी जीत है। कर्नाटक के घटनाक्रम को देखकर यह कहा जा सकता है कि राहुल गांधी के पास चुनावी रणनीति के नाम पर बहुत कुछ न सही, लेकिन थोड़ा बहुत जरूर है। पहले गुजरात और अब कर्नाटक में यह बात साबित हो चुकी है। धीरे-धीरे ही सही राहुल गांधी ने नरेंद्र मोदी-अमित शाह के खिलाफ जाल बुन लिया है। 2019 के लिए कांग्रेस के नए नवेले अध्‍यक्ष की रणनीति उस 'आत्‍मघाती' की तरह है, जो अपनी जान देकर भी दुश्‍मन का खत्‍मा कर देता है। सीधे शब्‍दों में कहें तो राहुल गांधी की रणनीति यह है कि कांग्रेस भले ही 2019 में अपने दम पर सत्‍ता हासिल न कर पाए, पर बीजेपी को सत्‍ता की सीढ़ी नहीं चढ़ने देना है।

कर्नाटक में राहुल गांधी ने कुमारस्‍वामी को सीएम पद का ऑफर देकर पहली बार अपने इरादे जाहिर कर दिए। इसी प्रकार से गुजरात में हार्दिक के दोस्‍तों को पार्टी में शामिल किया गया। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी हों या उत्‍तर प्रदेश में अखिलेश यादव और मायावती, बिहार में लालू प्रसाद यादव हों या महाराष्‍ट्र में शिवसेना। कांग्रेस हर मोदी विरोधी को किसी भी कीमत पर एक मंच पर लाना चाहती है।

कर्नाटक में राहुल गांधी ने कुमारस्‍वामी को सीएम पद का ऑफर देकर पहली बार अपने इरादे जाहिर कर दिए। इसी प्रकार से गुजरात में हार्दिक के दोस्‍तों को पार्टी में शामिल किया गया। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी हों या उत्‍तर प्रदेश में अखिलेश यादव और मायावती, बिहार में लालू प्रसाद यादव हों या महाराष्‍ट्र में शिवसेना। कांग्रेस हर मोदी विरोधी को किसी भी कीमत पर एक मंच पर लाना चाहती है। चाहे उसे सत्‍ता में अपने हक का निबाला ही दूसरे दल के मुंह में क्‍यों न डालना पड़े।

कैराना उपचुनाव में हमें ऐसा ही देखने को मिल रहा है, जहां कांग्रेस ने अपना उम्‍मीदवार न उतारने का फैसला किया है। गोरखपुर और फूलपुर में कांग्रेस अंदरखाने सपा-बसपा को मजबूती प्रदान की। कर्नाटक का ही उदाहरण लें, जहां बीएसपी का सिर्फ 1 उम्‍मीदवार जीतकर आया, लेकिन बसपा सुप्रीमो ने सीधे सोनिया गांधी से बात कर उन्‍हें राजनीतिक सलाह दी और बीजेपी सरकार बनते-बनते गिर गई।

मायावती के अलावा ममता बनर्जी ने भी सोनिया गांधी को विशेष सलाह दी। राहुल गांधी ने जिन्‍होंने अपनी ही सरकार के उस ऑर्डिनेंस को फाड़ दिया था, जिससे चारा घोटाले में दोषी लालू को राहत को मिल सकती थी, लेकिन अब वही राहुल गांधी, जेल से इलाज कराने आए लालू प्रसाद यादव के साथ बंद कमरे में बातचीत कर रहे हैं।

कुल मिलाकर अगर राष्‍ट्रव्‍यापी परिदृश्‍य को देखें दो बातें सामने आती हैं। पहली- मोदी विरोधी खेमे का संख्‍या बल दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। कर्नाटक के सीएम बनने जा रहे कुमारस्‍वामी का शपथ ग्रहण इसका जीता जागता सबूत है, जहां अरविंद केजरीवाल से लेकर कमल हासन तक, हर मोदी विरोधी हस्‍ती मंच पर बैठना चाहती है। 2014 से चली मोदी लहर में उन क्षेत्रीय दलों में ने भी जमीन खोई है, जो आज बीजेपी के साथ है। ऐसे में संभव है कि 2019 में वे भी मोदी विरोधी खेमे के साथ पहली पंक्ति में बैठे नजर आएं।

दूसरा मसला है स्‍वीकार्यता का। कर्नाटक में देश ने देखा कि बीजेपी सरकार बनाने के लिए सिर्फ 8 सीटों का भी जुगाड़ नहीं कर सकी। दूसरी ओर कांग्रेस पिछले चुनाव की तुलना में 26 सीटें कम पाकर भी आसानी से सरकार बना ले गई। कारण ये है कि क्षेत्रीय दलों को कांग्रेस से खतरा नहीं है कि वह उनका जनाधार सरका ले जाएगी, लेकिन बीजेपी के साथ रहकर और विरोध में रहकर दोनों तरह से उन्‍हें डर सता रहा है। ऐसे में अगर 2019 में बीजेपी बहुमत 20 या 30 सीटें कम पाती है, तो कर्नाटक पार्ट 2 भी देखने को मिल सकता है, क्‍योंकि बीजेपी के हाथों जमीन गंवाने के बाद हर क्षेत्रीय दल उसे हार के कगार पर खड़ा देखना चाहता है। यही कारण है कि 2019 से पहले बीजेपी उन दलों को खास तवज्‍जो देती दिखने वाली है, जो इस समय एनडीए में शामिल है। 2019 से पहले ये दल एनडीए से छिटके तो अमित शाह के लिए 2019 से पहले यह बहुत बड़ी नैतिक हार होगी।

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English summary
After Karnataka, Has the BJP Lost Its Majority in the Lok Sabha?, Read here rahul gandhi's strategy
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