जानिए कर्नाटक में कांग्रेस सबकुछ गंवाने के बाद भी क्यों मुस्कुरा रही है, क्या है जेडीएस की खुशी के मायने
बेंगलुरूः कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा ने सबसे ज्यादा सीटें जीती। वहीं, जेड़ीएस तीसरे नंबर की पार्टी रही। अब तीसरे नंबर की पार्टी के नेता कुमार स्वामी राज्य के मुख्यमंत्री बनने वाले हैं। कांग्रेस और जेडीएस ने दावा किया है कि उनका ये गठबंधन साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भी होगा। जारी रहेगा। लेकिन कर्नाटक में सरकार बनाने के बाद कांग्रेस को मिला क्या? जेडीएस से ज्यादा सीटें होने के बाद कांग्रेस को मुख्यमंत्री पद नहीं मिला। वहीं महज 38 सीटें जीत हासिल करने वाली जेडीएस को मुख्यमंत्री पद से साथ-साथ 11 मंत्री भी मिलेंगे। वहीं कांग्रेस को 21 मंत्रियों के साथ ही संतुष्ट करने पड़ेगा।
कांग्रेस को क्या मिला?
कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस ने सरकार तो बना ली लेकिन बड़ा सवाल यही है कि कांग्रेस को कर्नाटक में सरकार बनाने के बाद मिला क्या? कांग्रेस के नजरिए से देखा जाए तो वो कर्नाटक में सरकार बचाने में कामयाब रहे। पंजाब और पुंडुचेरी के बाद कर्नाटक ही एक ऐसा राज्य है जहां कांग्रेस सत्ता में है।
कांग्रेस को हो सकता है नुकसान!
इस साल के अंत में और अगले साल देश के कई राज्यों में चुनाव होने वाले हैं जहां कांग्रेस के पास कई राज्यों में सरकार बनाने का मौका है। लेकिन अगर कर्नाटक की बात की जाए तो सूबे में जेडीएस के साथ जाने का कांग्रेस को नुकसान भी हो सकता है क्योंकि लिंगायत वोट पार्टी से दूर हो सकते हैं। जानकारों का कहना है कि अगर लिंगायत वोटों का धुव्रीकरण होता है तो भाजपा को इसका सबसे ज्यादा फायदा होगा।
बड़े लिंगायत नेता माने जाते हैं येदुरप्पा
येदुरप्पा सूबे में सबसे बड़े लिंगायत नेता माने जाते हैं और भाजपा के लिए कर्नाटक में सबसे बड़े नेता भी हैं। कहा जाता है कि लिंगायत वोट राज्य की गद्दी तय करते हैं। कर्नाटक में 17 फीसदी लिंगायत जनता है। लिंगायत पर काफी कुछ निर्भर करता है। लिंगायत कांग्रेस से साल 1990 से ही मुश्किल खड़े कर रहे हैं। साल 1990 में राजीव गांधी ने वीरेंद्रे पाटिल को दूर कर दिया था। वजह थी वोटबैंक।
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