झारखंड के आडवाणी हैं करिया मुंडा, संसद में सबसे ज्यादा सक्रिय दो वरिष्ठ नेता 2019 में दरकिनार
नई दिल्ली। लालकृष्ण आडवाणी कहां नहीं हैं, पार्टी में नहीं हैं, किस प्रदेश में नहीं हैं। प्रदेश से लेकर देश तक संगठन के संस्थापक भी हुए हैं, उनके त्याग का लम्बा किस्सा भी रहा है और उन्हें उसी मिट्टी में जीते-जी जमींदोज भी किया गया है जिस मिट्टी की खुशबू में वे पले पढ़े। फिर भी प्रकृति में समानता के बावजूद हर एक नाम लालकृष्ण आडवाणी नहीं हो सकता। इस बात को समझते हुए भी अगर करिया मुंडा का नाम लिया जाए, तो आप भी उन्हें झारखण्ड का लालकृष्ण आडवाणी कहने से खुद को रोक नहीं पाएंगे।
आडवाणी 91 साल के हैं तो कड़िया मुंडा 82 साल के
लालकृष्ण आडवाणी 91 साल के हैं तो कड़िया मुंडा 82 साल के। एक पोस्ट ग्रैजुएट हैं तो दूसरे प्रोफेशनल ग्रैजुएट। एक देश के उपप्रधानमंत्री रह चुके हैं, तो दूसरे लोकसभा के डिप्टी स्पीकर। एक बीजेपी के अध्यक्ष रहे हैं, तो दूसरे बीजेपी के उपाध्यक्ष। हिन्दुस्तान की पहली गैर कांग्रेसी सरकार में 1977 में आडवाणी सूचना और प्रसारण मंत्री बने थे, तो करिया मुंडा केंद्रीय इस्पात मंत्री। आडवाणी ने 7 बार लोकसभा का चुनाव जीता, जबकि करिया मुंडा ने 8 बार। 2015 में लालकृष्ण आडवाणी को पद्म विभूषण का सम्मान मिला था, तो यही सम्मान करिया मुंडा ने 2019 में हासिल किया। संसदीय सफर में अनगिनत कमेटियों का नेतृत्व लालकृष्ण आडवाणी ने भी किया और करिया मुंडा ने भी। दोनों के जीवन में सादगी की अहमियत रही। दोनों नेताओं ने संगठन में सक्रिय रहकर तन्मयता से काम किया। अब 2014 के लोकसभा चुनाव में मिली जीत ही दोनों नेताओँ के लिए लोकसभा का आखिरी सफर रह जाने वाला है। आडवाणी और करिया मुंडा की तुलना अनायास नहीं बन रही। दोनों को समान तरीके से एक ही समय पर सक्रिय राजनीति से दूर किया जा रहा है।
आडवाणी ने बेटी को उम्मीदवार बनाने से मना कर दिया
लालकृष्ण आडवाणी से यह पूछने की हिम्मत बीजेपी नेताओं में किसी की नहीं हुई कि आप 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ेंगे या नहीं। नेताओँ ने उनसे पूछा कि गांधीनगर की सीट से क्या उनकी बेटी प्रतिभा आडवाणी को उम्मीदवार बनाया जाए। आडवाणी ने मना कर दिया कि वे ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि हमेशा से परिवारवाद का विरोध करते रहे हैं। मगर, इस सवाल का मतलब उन्हें समझाना बाकी नहीं था। इधर अख़बारों में ख़बरें आने लगीं कि गांधीनगर की सीट से पार्टी के कार्यकर्ता अमित शाह को चुनाव लड़ाना चाहते हैं। औपचारिक तौर पर यही बात सामने आ रही है कि आडवाणीजी चुनाव नहीं लड़ने की इच्छा जता चुके हैं। करिया मुडा के साथ मामला ऐसा ही है, मगर थोड़ा अलग। उन्हें मार्च महीने में पद्मविभूषण से सम्मानित कर दिया गया। इसके साथ ही ख़बरें छपने लगीं कि शायद 2019 में करिया मुंडा को टिकट नहीं मिले। उन्हें पद्मविभूषण देकर आलाकमान ने संकेत दे दिया है। करिया मुंडा ने इसका प्रतिकार सिर्फ ये कहते हुए किया कि पार्टी अगर उन्हें चुनाव लड़ने को कहेगी, तो वे तैयार हैं। मगर, जब लिस्ट आयी तो झारखण्ड में करिया मुंडा को छोड़कर बीजेपी के किसी सांसद का टिकट नहीं कटा। अब करिया मुंडा खुद को संतोष दे सकते हैं कि आडवाणीजी के साथ भी तो ऐसा ही हुआ। अगर आडवाणी के निर्वाचन क्षेत्र गांधीनगर पर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कब्जा जमा लिया, तो खूंटी में करिया मुंडा के लोकसभा क्षेत्र पर पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा काबिज हो गये। खूंटी से करिया मुंडा 1977 के बाद 1989, 1991, 1996, 1998, 1999, 2004 और 2014 में लोकसभा पहुंचे।
दोनों नेताओं की संसद में रही सबसे अधिक सक्रियता
चाहे लालकृष्ण आडवाणी हों या करिया मुंडा, एक सांसद के रूप में ये सक्रियता के उदाहरण हैं। क्रमश: 91 और 82 साल के हो चुके ये दोनों नेता संसद में सबसे अधिक सक्रिय नेताओं में से हैं। एक की उपस्थिति संसद में 92 फीसदी है, तो दूसरे की 96 फीसदी। इनकी सक्रियता ये बयां नहीं करती कि कोई शिथिलता इनमें आयी है। फिर भी उन्हें उम्र का हवाला देकर लोकसभा पहुंचने से रोक दिया गया। ये दोनों नेता वैसे नहीं हैं कि बगावत करें। अगर स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर भी ये चुनाव लड़ते, तो जीतने की स्थिति में हो सकते थे। मगर, इन्हें बीजेपी अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री का ओहदा रखने वाले नेताओं ने संसद जाने से रोक दिया। मुरली मनोहर जोशी, कलराज मिश्र, बीसी खंडूरी, शांता कुमार जैसे नेताओँ को भी टिकट नहीं मिले हैं। वजह है उनका 70 पार की उम्र में पहुंचना। 72 साल के शत्रुघ्न सिन्हा को भी बेटिकट कर दिया गया है। हालांकि इसके लिए उनके बागी तेवर को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है मगर बीजेपी ने औपचारिक रूप से ऐसा नहीं कहा है। फिर भी आडवाणी से तुलना करने योग्य नाम करिया मुंडा का ही है। जनसंघ के जमाने से इन दोनों नेताओं ने बीजेपी को खड़ा किया और सींचा। अब वही बीजेपी इन्हें इनकी की राजनीतिक ज़मीन पर जमींदोज कर रही है।
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