17,000 फीट की ऊंचाई पर ताज़ा हुईं कारगिल युद्ध की यादें
टाइगर हिल से ऋचा बाजपेई। टाइगर हिल पर मिशन फतह कारगिल युद्ध के समय भारतीय सेना के लिए एक गौरवशाली पल की तरह था। मुझे भी मौका मिला कि मैं उस जगह तक पहुंच कर उस गौरव को महसूस कर सकूं और वनइंडिया की तरफ से हमारी सेना और सैनिकों के उस जज्बे को सलाम कर सकूं जिसकी वजह से हम सभी चैन की नींद सोते हैं।
विक्रम बत्रा यहीं हुए थे शहीद
टाइगर हिल की ऊंचाई 17,000 फीट से कुछ ज्यादा है। जिस समय कारगिल जंग की शुरुआत हुई तो यह रेंज द्रास की सबसे ऊंची रेंज में से ही एक थी। बर्फ और ऊंचाई की आड़ में पाकिस्तानी आतंकियों ने अपने बंकर तैयार कर रखे थे जिससे छिपकर वह हमारे सैनिकों को निशाना बना रहे थे और उनकी लोकेशन का अंदाजा भी नहीं लग पा रहा था। शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा इन्हीं पहाडि़यों में शहीद हुए थे। टाइगर हिल की चोटी का बत्रा प्वांइट नाम दिया गया है।
30 किलो का वजन लेकर चढ़ते सैनिक
मुझे हालांकि 17,000 फीट की ऊंचाई पर जाने का मौका तो नहीं मिला लेकिन मैं 14,500 फीट की ऊंचाई पर पहुंची। इतनी ऊंचाई पर पहुंचने के बाद मुझे सांस लेने में थोड़ी तकलीफ भी हुई लेकिन शायद आपको नहीं मालूम नहीं कि हमारे सैनिक 17,000 से भी ज्यादा फीट की ऊंचाई पर चढ़ते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं उनके कंधों पर करीब 30 किलो का सामान भी लदा होता है। सर्दियों में जब हम और आप अपने-अपने घरों में रजाई ओढ़कर बैठते हैं, हमारे सैनिक इस ऊंचाई पर देश की सुरक्षा में लगे होते हैं।
मां की मौत पर भी जवान नहीं जा सके घर
अक्टूबर माह से ही इस पूरे इलाके में बर्फबारी शुरू हो जाती है और पूरा इलाका करीब आठ माह तक पूरे देश से कट जाता है। न तो फोन काम करते हैं और न ही कोई गाड़ी यहां से गुजर पाती है। अक्सर अपनों की याद हमें बेचैन कर देती है लेकिन हमारे सैनिकों का जज्बा देखिए वह इस आठ माह तक बिना किसी कम्यूनिकेशन के अपना कर्तव्य निभाते हैं।
यहां तक कि एक बार दो जवानों को उस समय भी अपने घर जाने और घर पर बात करने का मौका तक नहीं मिल सका, जिस समय उनकी मां का निधन हो गया था। भारत मां की रक्षा उनके लिए सबसे ऊपर है और ऐसे में वह अपनी हर तकलीफ और अपने हर दर्द को शायद टाइगर हिल की इन्हीं ऊंचाईयों में दफन कर देते हैं।