असम में कारगिल जंग में हिस्सा लेने वाले सैनिक को बता दिया विदेशी नागरिक, भेजा गया डिटेंशन सेंटर
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गुवाहाटी। असम में एक रिटायर्ड सैनिक को अपनी पहचान और अपनी नागरिकता साबित करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। सबसे हैरान करने वाली बात है कि इस सैनिक ने कारगिल की जंग में भी हिस्सा लिया था। इसके बाद भी उन्हें विदेशी बताकर उस डिटेंशन सेंटर में भेज दिया है जो विदेशी या फिर गैर-कानूनी अप्रवासियों के लिए है। इस मामले की देशभर में चर्चा हो रही है और सेना से इसमें तुरंत एक्शन लेने की अपील की जा रही है। असम की मीडिया की ओर से इस मामले को सामने लाया गया है। अब यह मामला गुवाहाटी हाई कोर्ट में है।
जिस पुलिस विभाग में कार्यरत, उसी ने किया गिरफ्तार
मोहम्मद सनउल्ला, सेना से मानद लेफ्टिनेंट की रैंक से रिटायर हैं। असम पुलिस बॉर्डर ऑर्गनाइेजशन जिसे बॉर्डर पुलिस के नाम से भी जानते हैं, उसने मंगलवार को सनउल्ला को गिरफ्तार कर लिया। उनकी गिरफ्तारी कोर्ट की ओर से भेजे गए समन के बाद हुई। फॉरनेर्स ट्रिब्यूनल जिसने उन्हें गैर-नागरिक घोषित किया है, उसके एक आदेश के बाद मोहम्मद सनउल्ला को गिरफ्तार किया गया। इस केस में एक और पहलु हैरान करने वाला है। 52 वर्ष लेफ्टिनेंट (रिटायर्ड) सनउल्ला बॉर्डर पुलिस में बतौर एएसआई या असिस्टेंट सब-इनस्पेक्टर के पद पर कार्यरत हैं और इसी पुलिस की तरफ से उन्हें गिरफ्तार किया गया। बॉर्डर पुलिस को असम में रहने वाले गैर-कानूनी नागरिकों को पहचानने, उन्हें गिरफ्तार करने और उनके प्रत्यर्पण का जिम्मा सौंपा गया है। राज्य पुलिस की इस यूनिट में ज्यादातर रिटायर्ड सैनिकों और अर्धसैनिक बलों के जवानों को रखा गया है। असम में 100 फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल्स बॉर्डर पुलिस की ओर से घोषित विदेशी लोगों से जुड़े केस को सुनती हैं और उनकी निबटारा करती हैं। बोको में इसी तरह की एक ट्रिब्यूनल ने सनउल्ला के केस को सुना और पिछले वर्ष उन्हें नोटिस भेजा। सनउल्ला ट्रिब्यूनल की पांच सुनवाई में शामिल हो चुके हैं। उनके अलावा इस तरह के छह और रिटायर्ड सैनिकों को नोटिस भेजा जा चुका है। ये या तो सेना से जुड़े हैं या फिर अर्धसैनिक बलों का हिस्सा है। सनुल्ला के चचेरे भाई मोहम्मद अजमल हक ने मीडिया से बात करते हुए कहा, 'इससे ज्यादा दिल दुखाने वाली बात कोई और हो ही नहीं सकती है कि एक एक्स सर्विसमैन के साथ इस तरह का बर्ताव किया जाए।' उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा अपनी जिंदगी के 30 साल सेना को देने के बाद क्या वह इसी तरह के पुरस्कार के हकदार हैं?
डॉक्यूमेंट्स में गलत उम्र की वजह से मुश्किलें
हक भी सेना ने जेसीओ की रैंक से रिटायर हुए हैं। उन्हें भी ट्रिब्यूनल की तरफ से इसी तरह का नोटिस भेजा गया। उनका केस खत्म हो गया और बॉर्डर पुलिस को उनसे माफी मांगनी पड़ी। बॉर्डर पुलिस ने माना कि उन्होंने एक 'गलत अजमल हक' को नोटिस भेज दिया था। हक ने बताया कि सनउल्ला ने सन् 1987 में सेना ज्वॉइन की थी और उस समय उनकी उम्र 20 वर्ष थी। उनका जन्म असम में ही हुआ। साल 2017 में सेना से रिटायर होने के बाद उन्होंने बॉर्डर पुलिस ज्वॉइन कर ली। एक सुनवाई के दौरान उन्होंने गलती से डॉक्यूमेंट्स में लिख दिया कि सन् 1978 में उन्होंने सेना ज्वॉइन की थी। उनकी इस गलती की वजह से ही ट्रिब्सूनल ने उन्हें विदेशी घोषित कर डाला। ट्रिब्यूनल ने उन्हें तर्क दिया कि कोई भी 11 वर्ष की उम्र में कोई सेना में शामिल नहीं हो सकता है। सनउल्ला ने पिछले लोकसभा चुनावों में वोट भी डाला था। अब उनके परिवार वालों को उम्मीद है कि गुवाहाटी हाई कोर्ट उनके साथ न्याय जरूर करेगा। असम के संसदीश् कार्य मंत्री चंद्र मोह पटोवारी ने कुछ माह पहले विधानसभा में पेश एक रिपोर्ट में बताया था कि राज्य में करीब 125,333 डी वोटर्स यानी संदिग्ध वोटर्स हैं। इसके अलावा 244,144 केसेज में से 131,034 केस जो ट्रिब्यूनल्स में भेजे गए थे, उनका निबटारा हो चुका है।