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कामरान ऑन बाइक: साइकिल से 50 हज़ार किलोमीटर की यात्रा करने वाले कामरान अली

पिछले नौ वर्षों में कामरान ने 50 हज़ार किलोमीटर साइकिल चलाकर 43 देशों की यात्रा की है. आज कल कोविड-19 के कारण पाकिस्तान में रुके हुए हैं और इंतज़ार कर रहे है कि कब उन्हें हरी झंडी मिले और वो अपनी साइकिल के पैडल पर पैर रखें.

By आरिफ़ शमीम
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साइकिल से 50 हज़ार किलोमीटर की यात्रा करने वाले कामरान अली

"नई जगहों पर जाना और शानदार दृश्य देखना तो बहुत अच्छा लगता है. लेकिन मैं आपको यह भी बता दूं कि साइकिलिंग एक ऐसा शौक़ है जिसमें कभी-कभी बहुत अकेलापन भी महसूस होता है. आप जंगलों और रेगिस्तान में सैकड़ों मील साइकिल चला रहे होते हैं. कभी-कभी तो जानवरों या पक्षियों की आवाज़ भी नहीं सुनाई पड़ती हैं. अकेलापन काटने को दौड़ता है. अगर आप इसे बर्दाश्त कर सकते हैं, तो आइए और पैडल चलाइये.'

ये कामरान अली के शब्द हैं जिन्हें आमतौर पर 'कामरान ऑन बाइक' के नाम से जाना जाता है. वो कहते हैं, "मैं सोच रहा हूं कि क़ानूनी तौर पर भी अपना नाम बदल कर कामरान ऑन बाइक रख लूं."

पिछले नौ वर्षों में कामरान ने 50 हज़ार किलोमीटर साइकिल चलाकर 43 देशों की यात्रा की है. आज कल कोविड-19 के कारण पाकिस्तान में रुके हुए हैं और इंतज़ार कर रहे है कि कब उन्हें हरी झंडी मिले और वो अपनी साइकिल के पैडल पर पैर रखें.

हालांकि, इस समय भी, वह ख़ाली नहीं बैठे हैं. अपनी पिछली यात्राओं में ली गई अनगिनत तस्वीरों में से, अच्छी तस्वीरों को अपने सोशल मीडिया अकॉउंट पर शेयर करते रहते हैं और उनके बारे में ब्लॉग लिखते रहते हैं. यानी यात्रा अभी भी नहीं रुकी है और "पिक्चर अभी बाक़ी है, मेरे दोस्त."

बीबीसी उर्दू के साथ एक वर्चुअल इंटरव्यू में कामरान ने अतीत की कुछ यादें साझा की हैं जो हम आपके सामने पेश कर रहे हैं.

साइकिल से 50 हज़ार किलोमीटर की यात्रा करने वाले कामरान अली

साइकिल का जुनून और घर वालों की मार?

मेरा जन्म दक्षिण पंजाब के शहर लेह में हुआ था. मेरे पिताजी की पुराने टायरों की एक दुकान थी जहां वे टायर में पंक्चर लगाने का काम करते थे.

मैं भी दुकान पर उनका हाथ बंटाता था. मेरे पिता चाहते थे कि मैं पढ़ लिख जाऊं और उनकी तरह पंक्चर बनाने का काम न करूं. इसलिए मैंने लेह से ही इंटरमीडिएट किया और फिर मुल्तान चला गया. जहां मैंने बहाउद्दीन ज़करिया विश्वविद्यालय से कंप्यूटर साइंस में बीएससी और फिर एमएससी की. उसके बाद जर्मनी में मेरा एडमिशन हो गया. वहां जाकर मैंने मास्टर्स की और पीएचडी पूरी की.

बचपन में जब मैं 12 या 13 साल का था, तो मैं एक बार अपने एक दोस्त के साथ साइकिल से 12 रबी-उल-अव्वल (अरबी महीना, इस दिन पैग़ंबर मोहम्मद का जन्म हुआ था और उनकी मृत्यु भी इसी दिन हुई थी) के दिन चौक आज़म गया. यह लेह से 26 किलोमीटर दूर एक छोटी सी जगह है. वहां 12 रबी-उल-अव्वल का एक प्रोग्राम हो रहा था.

इस यात्रा में एक और क्लासमेट भी शामिल हो गए. एक आगे बैठा और एक पीछे और मैं 12 साल की उम्र में दो लड़कों को साइकिल पर बिठा कर निकल पड़ा.

रास्ते में हम नहरों पर रुके, फल तोड़ कर खाये, बहुत मज़ा आया. इस तरह, मेरी पहली साइकिल यात्रा 52 किलो मीटर की थी, जिसमें आना और जाना शामिल था. इससे मुझे एक अजीब सा आनंद आया. और कहते हैं न कि, 'जैसे पर लग जाते हैं' मुझे भी ऐसा ही लगा.

उसके बाद मैंने घर वालों से छिप-छिप कर लेह से मुल्तान की यात्रा की, जो कि 150 या 160 किमी दूर था. उसके बाद मैं लेह से लाहौर भी गया जो दो दिन की यात्रा थी. हर एक यात्रा के बाद जब परिवार को पता चलता था तो मार भी पड़ती थी कि मैं पढ़ने के बजाय क्या कर रहा हूं.

उसके बाद मैंने बताना ही बंद कर दिया. वो कहते थे कि आपको अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए, हम आप पर इतना पैसा ख़र्च कर रहे हैं, और आप यह कर रहे हैं. सीधे हो जाओ नहीं तो, फिर दुकान पर ही बिठा देंगे.

साइकिल से 50 हज़ार किलोमीटर की यात्रा करने वाले कामरान अली

जर्मनी की यात्रा

इसके बाद मेरा जर्मनी में कंप्यूटर साइंस में एडमिशन हो गया. हालात तो मुश्किल थे, लेकिन बड़ी मुश्किल से लोगों से पैसे मांग कर इकट्ठा किये और जर्मनी की यात्रा शुरू की.

यह 16 अक्टूबर 2002 की बात है. इस्लामाबाद से फ्रैंकफ़र्ट तक पीआईए की फ्लाइट थी. इस महीने 16 अक्टूबर को इस यात्रा को 18 वर्ष हो जायेंगे. जैसे ही विमान तुर्की के ऊपर से गुज़रा, खिड़की से बाहर देखते हुए, नदी, नाले, सड़क आदि सब कुछ मुझे आड़ी तिरछी लाइनों की तरह दिख रहे थे.

पहाड़ ऐसे लग रहे थे जैसे पुराने काग़ज़ों में सिलवटें पड़ी हुई हों. मुझे लगा कि इतना विशाल और सुंदर परिदृश्य है, लोग यहां कैसे रहते होंगे, वे किस बारे में बात करते होंगे, इनकी संस्कृति क्या होगी.

मैं सोचता रहा लेकिन मुझे उस समय इसका जवाब नहीं मिल रहा था. मैंने उस समय सोचा, क्यों न मैं इन रास्तों पर ख़ुद चल कर यह सब देखूं.

विमान अभी तक जर्मनी उतरा भी नहीं था. मैंने वहीं बैठे-बैठे ख़ुद से वादा किया कि एक दिन मैं जर्मनी से पाकिस्तान साइकिल पर जाऊंगा. जर्मनी में उतरने के बाद, अपने सपने को पूरा करने में नौ साल लग गए.

जर्मनी में ज़िन्दगी और ग़रीबों की सवारी

वहां पहुँचने के बाद, बस जीवन एक बार फिर से व्यस्त हो गया. पहले अपनी एम.एस.सी, की. इसके बाद जो क़र्ज़ लेकर आया था,धीरे धीरे वो क़र्ज़ चुकाया. फिर पीएचडी में दाख़िला मिल गया तो पीएचडी करने लगा. फिर परिवार की जिम्मेदारियों को पूरा करते करते नौ साल बीत गए.

जब मैंने अपने परिवार को बताया कि मैं साइकिल पर वापस आना चाहता हूं, तो उन्होंने कहा, "हमने आपको इतनी दूर जर्मनी इतना ख़र्च करके पढ़ने के लिए भेजा और आप वही ग़रीबों की सवारी साइकिल की ही बात कर रहे हैं.

मैंने फिर अपनी मां को इमोशनल ब्लैकमेल किया और इस तरह मुझे इजाज़त मिली.

साइकिल से 50 हज़ार किलोमीटर की यात्रा करने वाले कामरान अली

जर्मनी से पाकिस्तान - एक सपना जो अधूरा रह गया

2011 में मैंने जर्मनी से पाकिस्तान की यात्रा शुरू की. पूरा यूरोप तो बस देखते देखते ही गुज़र गया. दिन में सौ दो सौ किलो मीटर और कभी-कभी तो 250 किलो मीटर भी हो जाते थे. जब मैं तुर्की पहुंचा तो मुझे मेरे भाई का फ़ोन आया कि मेरी माँ बहुत बीमार है और अस्पताल में है. उन्हें दिल का दौरा पड़ा है इसलिए मैं जल्दी घर पहुँचू.

मैंने वहां एक जगह अपनी साइकिल खड़ी की, इस्तांबुल पहुंचा और वहां से पाकिस्तान के लिए फ्लाइट ली. आने के बाद, मैं कुछ समय के लिए अस्पताल में रहा, फिर मेरी माँ का निधन हो गया. वह बहुत बड़ा दुख था क्योंकि एक सपना था कि साइकिल से पाकिस्तान जाऊंगा और मां से मिलूंगा. वह देखेगी कि बेटा जर्मनी से साइकिल पर भी आ सकता है.

इसलिए 2011 में जर्मनी लौटने के बाद, मेरा दिल इतना भारी हो गया था कि मैंने यह भी सोचा कि अब दोबारा साइकिलिंग नहीं करनी. माँ की मृत्यु और अधूरी यात्रा से एक तरह से दिल ही टूट गया था. लेकिन दिल का क्या करें, एक साल बाद फिर से सपने आने लगे.

अधूरा सपना बहुत परेशान करता था, जब मैं नक़्शे को देखता, तो ऐसा लगता था कि कुछ रह गया. हमारी रसोई में दुनिया का एक नक़्शा लगा हुआ था. जब भी मैं वहां खाना खाने बैठता था, तो ऐसा लगता था कि नक़्शे पर एक बिंदु चलना शुरू हो गया और जैसे ही वह चलता तो तुर्की में रुक जाता था. लेकिन यह बिंदु कुछ समय के लिए रुक कर फिर से चलना शुरू कर देता और चलता-चलता पाकिस्तान आकर रुकता.

साइकिल से 50 हज़ार किलोमीटर की यात्रा करने वाले कामरान अली

इसी तरह, जब मैं ऑफ़िस जाता था, तो मेरे बॉस मुझे कंप्यूटर का कोई डायग्राम समझाते थे तो मुझे वहां भी वह बिंदु दिखना शुरू हो जाता था. धीरे-धीरे यह पागलपन जैसी स्थिति मुझे परेशान करने लगी और आख़िरकार मैं अपने बॉस के पास गया और कहा कि यह समस्या है और मुझे छुट्टी चाहिए.

उन्होंने मुझे छह महीने की छुट्टी देने से इंकार कर दिया और कहा कि वे मुझे केवल तीन महीने की छुट्टी दे सकते हैं.

उस छह और तीन महीने के चक्कर में, मैंने मार्च 2015 में उस नौकरी को ही छोड़ दिया. कुछ सामान को स्टोरेज में रखवा दिया, कुछ फेंक दिया था. एक छोटी सी कार थी वो भी बेच दी. यानी, चार साल बाद दोबारा सब कुछ छोड़ छाड़ कर मैं अपनी यात्रा की तैयारी कर रहा था. मैंने अपनी यात्रा दोबारा वहीं से शुरू की जहां पर मैं रुका था,रात भी तुर्की के उसी होटल में गुज़ारी जहां मैं 2011 में रुका था.

अधूरी यात्रा पूरी लेकिन रास्ता अलग

जब मैंने फिर से यात्रा शुरू की, तो सीधे ईरान जाने के बजाय, मैंने मध्य एशियाई देशों के रास्ते से पाकिस्तान जाने का फ़ैसला किया.

मैं मध्य एशिया से होते हुए खंजराब के रास्ते पाकिस्तान आया. ईरान से तुर्कमेनिस्तान, फिर उज़्बेकिस्तान, तज़ाकिस्तान, किर्गिस्तान और फिर चीन और वहां से खंजराब दर्रे के रास्ते पाकिस्तान पहुँचा.

मैंने जुलाई 2015 को पाकिस्तान में प्रवेश किया. इस तरह, इस सपने के आने और इसे सच करने में कुल 13 साल लग गए.

'मैं गिरगिट की तरह रंग बदलता हूं'

जब लोग मुझसे पूछते हैं कि क्या मैं एक कंप्यूटर इंजीनियर हूं, एक पर्यटक हूं, एक साइकिल चालक या एक ब्लॉगर हूं, तो मेरा जवाब यह है, 'बुल्ला की जाना मैं कौन?' मैं जिस मोड़ में बैठा होता हूं वही बन जाता हूं.

साइकिल से 50 हज़ार किलोमीटर की यात्रा करने वाले कामरान अली

कंप्यूटर क्षेत्र के लोगों से बात करते समय, कंप्यूटर इंजीनियर, जब फ़ोटोग्राफ़रों के बीच हूं तो फ़ोटोग्राफ़र और साइकिल चालकों के बीच हूं तो साइकिल चालक. इस तरह मैं भी गिरगिट की तरह अपना रंग बदलता रहता हूं.मैंने कभी अपनी कोई निश्चित पहचान नहीं रखी, क्योंकि मुझे लगता है कि यह आपकी एक निश्चित मानसिकता बना देती है. मैंने तो अपने इंस्टाग्राम "2015 से बेरोज़गार" भी लिख रखा है.

यात्रा का ख़र्च कौन उठाता है?

शुरुआत में, मैं अपनी सारी बचत इस पर ख़र्च करता था. पहली यात्रा और दूसरी यात्रा की शुरुआत 13 साल तक जर्मनी में रहते हुए की गई बचत से हुई थी, लेकिन बाद में जब मैंने दक्षिण अमरीका की यात्रा की तो, सारे पैसे ख़त्म हो गए थे.

यह यात्रा अर्जेंटीना से शुरू की और मुझे अपने ख़र्चों को पूरा करने के लिए बहुत सारे अजीब काम भी करने पड़े. कभी-कभी पत्रिकाएं मेरी तस्वीरें ख़रीद लेती हैं, कभी-कभी ऑनलाइन डाली हुई टी-शर्ट बिक जाती हैं, कभी-कभी मैं ट्रेवल या बाईसाइकिल मैगज़ीन्स के लिए लेख लिख देता हूं.

मुफ़्त खाने और मुफ़्त रहने के लिए सड़कों पर मजदूरी की है. उदाहरण के लिए, एक बार मुझे कहा गया था कि यदि आप चार घंटे काम करते हैं, तो मुफ़्त में रहने के लिए जगह मिलेगी. प्लेटें धोई हैं, वेटर की तरह खाना परोसा है और कंप्यूटर साइंस का काम भी फ्रीलांस किया है.

रास्ते में रुक कर ग्राफ़िक डिज़ाइनिंग और वेबसाइट डिज़ाइनिंग भी की है. और क्योंकि मैं यात्रा के दौरान अपनी पोस्ट डालता रहता था, तो लोगों को भी मेरे बारे में पता चलने लगा था, और कभी-कभी लोग चंदा भी दे देते थे. किसी ने 20 डॉलर भेज दिए तो किसी ने 50 डॉलर.

जब, मैं दक्षिण अमरीका की यात्रा समाप्त कर उत्तरी अमरीका की तरफ़ चला, तो मुझे वहां पहुंचने के लिए नाव से जाना था और मेरे पास नाव की यात्रा के लिए पैसे नहीं थे. वहां मैंने क्राउडफंडिंग शुरू की.

मैंने अपने फंडिंग कैंपेन में लिखा था कि 'मैं यात्रा कर रहा हूं, जिसके बारे में मैं लिख रहा हूं और इसके चित्र भी भेज रहा हूं, अगर आपको मेरी यह यात्रा पसंद आती है तो, मुझे फाइनेंस करें, इससे भी मुझे थोड़े बहुत पैसे मिलने शुरू हो गए.

इन यात्राओं के बारे में दिलचस्प बात यह है कि कई बार रास्ते में खड़े अजनबियों ने भी पैसे दिए.

साइकिल से 50 हज़ार किलोमीटर की यात्रा करने वाले कामरान अली

दक्षिण अमरीका की जादुई यात्रा

अगर आप अर्जेंटीना के नक़्शे को देखें, तो यह दक्षिण अमरीका का सबसे दक्षिणी भाग है. वहां से बोलीविया और अन्य देशों से होते हुए पेरू और फिर चिली. यह जनवरी 2016 की बात है.

ऐसी हज़ारों घटनाएं हैं जिन्हें साझा किया जा सकता है, पन्नें ख़त्म हो जाएंगे, घटनाएं नहीं. इन देशों में जाने से पहले मुझे इनके बारे में कुछ नहीं पता था.जाने से पहले, मैंने डिक्शनरी से स्पेनिश भाषा में हैलो वगैरह सीखा था. जब वहां पहुंचा तो देखा कि यहां तो अंग्रेजी में कोई बात ही नहीं करता.फिर जल्दी जल्दी स्पेनिश सीखना शुरू की.

दक्षिण अमरीका में, अगर प्राकृतिक दृश्यों की बात करें तो वहां जैसा नज़ारा कहीं नहीं है. उनमें एक से बढ़ कर एक देश हैं, ऐसी सुंदरता जो आपको कहीं नहीं दिखती. लेकिन इससे भी ज़यादा, जिस तरह के लोग हैं उसकी कहीं और से तुलना नहीं की जा सकती.

साइकिल से 50 हज़ार किलोमीटर की यात्रा करने वाले कामरान अली

शुरुआत करते हैं अर्जेंटीना से. अर्जेंटीना के जिस शहर में मैं उतरा,उसे ऐशवाया कहा जाता है और इसे दुनिया का सबसे दक्षिणी शहर कहा जाता है. जब हम रात में सड़कों पर घूम रहे थे, एक आदमी ने पूछा कि हम यहां क्या कर रहे हैं. हमने कहा हम यात्री हैं और यहां से साइकिल से यात्रा शुरू करनी है. उसने कहा, "मेरे साथ आओ." हम दो या तीन साइकिल चालक थे. उनके घर गए जहां उसने हमारा बहुत ख्याल रखा, मुझे पता भी वह कि उसने हमें क्या क्या बना कर खिलाया. यह हमारी यात्रा की बस अभी शुरुआत थी.

साइकिल चालकों के साथ समस्या यह है कि वे अपने साथ बहुत सारा भोजन नहीं ले जा सकते हैं. ज़यादा पानी नहीं ले जा सकते.रहने की भी हमेशा समस्या रहती है.दक्षिण का जो भाग है वहां के एक क्षेत्र को पम्पास कहा जाता है. पम्पा का अर्थ है तराई क्षेत्र और अर्जेंटीना में इसमें, ब्यूनस आयर्स, ला पम्पा, सांता फे, एंट्रे रोस और कॉर्डोबा के क्षेत्र शामिल हैं.

उनमें से एक, पेटागोनिया में एक ऐसा क्षेत्र है जहां कोई पेड़ नहीं हैं और वहां हवाएं सौ-डेढ़ सौ किलो मीटर की गति से चलती और अगर टेंट लगाएं तो, तुरंत उड़ जाता है. जिसका मतलब है कि वहां सिर छिपाने के लिए कोई जगह नहीं मिलती. वहां, अगर हमें कहीं दूर भी आबादी या कोई घर दिखाई देता, तो हम सीधे जाते और उनके दरवाज़े पर दस्तक देते थे कि हमें अपना सिर छिपाने के लिए थोड़ी जगह मिल सके.

वहां, जब भी मौसम की परेशानी की वजह से किसी के घर का दरवाज़ा खटखटाया, किसी को कभी बुरा नहीं लगता था. हमेशा अंदर आने को कहा और खाना भी खिलाया और रहने के लिए जगह भी दी.

ऐसी ही एक घटना याद आई. हम ख़राब मौसम से बचने के लिए किसी जगह की तलाश कर रहे थे कि एक घर दिखाई दिया. उस घरवालों ने हमें रहने के लिए जगह दी और गरम-गरम अपनी ख़ास चाय भी पिलाई. अब सुनिए चाय की कहानी. उनकी चाय को माते कहा जाता है. और वो इस तरह की नहीं होती कि अगर पांच मेहमान हैं तो पांच कप बनेंगे, नहीं, बल्कि केवल एक ही बड़ा कप होता है, जिसमें से हर कोई स्ट्रा से एक-एक करके चाय पीता है.

पहले मेज़बान ने तीन या चार घूंट लिए और फिर उन्हें एक दूसरे को घेरे के हिसाब से दे दिया. मेरी दक्षिण एशियाई मानसिकता के कारण, मुझे लगा कि यह बुरी बात है कि पहले मेज़बान पी रहा है और फिर मेहमानों को पेश की जा रही है.

साइकिल से 50 हज़ार किलोमीटर की यात्रा करने वाले कामरान अली

मुझसे रहा नहीं गया और मैंने पूछा कि हमारी संस्कृति में, पहले मेहमानों को खिलाया जाता है और फिर मेज़बान खाता है. तब मेज़बान ने हंसते हुए कहा, "भाई, पहले कुछ घूंट हम इसलिए लेते हैं क्योंकि हमारी चाय की ऊपर की परत बहुत कड़वी होती है और कोई भी अजनबी इसे नहीं पी सकता. हम पहले उस कड़वाहट को पीते हैं ताकि दूसरा उसे आराम से पी सके."

एक घटना पेरू की भी है जो हमेशा याद रहेगी. वहां मैं एक बार साइकिल से जा रहा था मैंने देखा कि ऊपर पहाड़ पर हल्का-हल्का शोर हो रहा है.

जब मैं ऊपर गया, तो मैंने देखा कि कुछ लोग आग के चारों ओर खड़े थे, वो सब लंबे-लंबे कपड़े पहने हुए थे. उनके बाल भी बहुत लंबे थे और वो हाथ उठाकर दुआएं मांग रहे थे.

बाद में, जब उनसे बात की, तो उन्होंने बताया कि वे इसराइली हैं जो यीशु को मानते हैं और उनका विश्वास हैं कि यीशु यहां आएंगे. "हमारा येरूशलम यहीं पेरू में बनेगा."

उन्होंने कहा यहीं रुको, कल हम 24 घंटे का उपवास करेंगे और उसके बाद बली देंगे और दावत भी होगी. आप हमारे साथ रुको. मैंने भी कुछ नहीं खाया और 24 घंटे का उपवास किया.

वह एक ग़रीब समुदाय था. उनके पास छह भेड़ थी.उन्होंने मुझे बताया कि वे छह दिनों के धार्मिक उत्सव में छह भेड़ों की बली देंगे.

पहले दिन,उन्होंने एक भेड़ की बली दी, उसकी खाल उतारी, जैतून का तेल, जड़ी बूटी और नमक लगाया. इसे देखते ही मेरी भूख और तेज हो गई और मैं शाम को अपना उपवास तोड़ने के बाद एक स्वादिष्ट बारबेक्यू की प्रतीक्षा करने लगा. शाम को सभी लोग एक साथ आए और आग जलाकर उस पर भेड़ों को भूनने लगे.

आग से मीठी और सुगंधित गंध आने लगी और भूख तेज हो रही थी. लेकिन उसी समय मैंने देखा कि लोग एक-एक करके वापस जाने लगे. भेड़ आग पर थी और अब जलने लगी थी. मैंने सोचा कि शायद वे अधिक भुनी हुई या जली हुई भेड़ खाते होंगे. मेरी चिंता और भूख दोनों अपने चरम पर थे.

थोड़ी देर बाद सभी लोग चले गए और जलने की गंध और ज़्यादा आने लगी. मैं दौड़ते हुए एक आदमी के पास गया और उससे पूछा कि भाई भेड़ तो अब जल रही है, तो इसके साथ क्या करना है. उसने कहा कि हम ऐसे ही बली देते हैं. हम बली नहीं खाते हैं, यह भगवान के लिए है और यह धुएं के माध्यम से उस तक पहुंचता है.

ईश्वर को खाना तो नहीं, लेकिन उसकी सुगंध आकाश तक ज़रूर पहुंच जाती है. फिर वे मुझे एक रसोई में ले गए और बड़ी कढ़ाई से सारी बोटियां मेरी प्लेट में डाल दी और कहा कि खाना यहां है.

मैं बहुत शर्मिंदा था लेकिन उन्होंने कहा कि यह आपके लिए है आराम से खाओ. इतनी ग़रीबी के बावजूद, उन्होंने मुझे पेट भर के खिलाया और मुझे एक और रात बिताने के लिए भी जगह दी.

अगले दिन जाते समय, मैंने सोचा कि उन लोगों के अहसान के बदले, मुझे उनके लिए कुछ करना चाहिए और उन्हें कुछ पैसे देने चाहिए.

मैं दो रातों तक उनके साथ रहा और उन्होंने इतनी देखभाल की है. फिर मेरे मन में विचार आया कि पैसे तो मेरे पास भी बहुत कम बचे हैं, अगर मैं इन्हें दे दूं तो बिलकुल ही ख़त्म हो जायेंगे, इसलिए मैंने अपने दिल से पैसा देने का विचार निकाल दिया.

अगले दिन जब मैं जा रहा था तो, एक बूढ़ा व्यक्ति मेरे पास आया और हाथ मिलाया. जैसे ही उसने अपना हाथ हटाया, मैंने देखा कि उसने मेरे हाथ में कुछ छोड़ दिया है.

यह दस पेरुवियन सोलेस (पेरू की मुद्रा) का नोट था. मैंने कहा, "यह क्या है?" बूढ़े व्यक्ति ने उत्तर दिया, "यार, आप एक यात्री हैं और यह आपकी यात्रा के लिए एक छोटी सी रक़म है. इससे कुछ लेकर खा लेना." उन्होंने अपनी मेहरबानी और उदारता में मुझे पूरी तरह से हरा दिया.

मैं अपनी नज़रों में बहुत शर्मिंदा हुआ. जिस विचार को मैंने कुछ समय पहले ख़ारिज कर दिया था, उन्होंने बड़ी सहजता से उसे आकार दे दिया. इसने मुझे एक बहुत अच्छा सबक सिखाया कि जब भी आप कुछ अच्छा करना चाहते हैं, उसे तुरंत करें, इंतजार न करें.

ग्वाटेमाला से प्यार क्यों?

ग्वाटेमाला मध्य अमरीका में मेरा पसंदीदा देश है, इसकी बुनियादी वजह इसका परिदृश्य है. जब तीन ज्वालामुखी एक छोटे से शहर के ऊपर खड़े होते हैं, तो ऐसा लगता है कि यह शहर एक राजा है और यह इसके रक्षक हैं. इन रक्षकों में से एक अक्सर डायनासोर की तरह आग भी उगल रहा होता है.

ग्वाटेमाला से प्यार करने का एक और कारण यह है कि मैं वहां लंबे समय तक रहा और स्पैनिश भाषा का कोर्स किया और स्थानीय परिवारों के साथ रह कर भाषा सीखी.

दो महिलाएं थीं जिन्होंने हमें पढ़ाया. एक के साथ मैं और कुछ लोग तीन घंटे तक स्पैनिश व्याकरण सीखते थे. और फिर दूसरी महिला के साथ हम तीन घंटे के लिए शहर जाते थे और इस व्याकरण का उपयोग करते थे. यानी जो कुछ सुबह सीखा तीन घंटे बाद उसे स्थानीय लोगों से बात करके उपयोग किया.

वहीं एक दिन जब मैं तस्वीरें ले रहा था, एक महिला मेरे पास आई और कहा कि क्या आप मेरी तस्वीर ले सकते हैं. उन्होंने कहा कि उनके पास उनके आईडी कार्ड के अलावा उनकी कोई तस्वीर नहीं है.

साइकिल से 50 हज़ार किलोमीटर की यात्रा करने वाले कामरान अली

मैंने इनकी एक तस्वीर ली और अगले दिन इसे प्रिंट करके दे दी. वह वहां हाथों से बनाई हुई स्थानीय चीज़ें बेचने आया करती थीं. अगले दिन वह अपने साथ और लोगों को ले आई और धीरे धीरे, मैंने तीस या चालीस लोगों की तस्वीरें ले लीं.

इसका फ़ायदा यह हुआ कि इस छोटे से शहर में अपना माल बेचने के लिए दूर-दूर से आए सभी लोग मेरे मित्र बन गए. वो ज़िद करके मुझे अपने अपने गांव लेकर जाते रहे. जिससे मैंने उनकी संस्कृति को बहुत नज़दीक से देखा. शायद इसलिए मैं ग्वाटेमाला से प्यार करता हूं. मैं उनके धार्मिक, सामाजिक यहां तक कि सभी प्रकार की रस्मो रिवाज में शामिल हुआ.

ये ऐसे-ऐसे दूर दराज़ के क्षेत्र थे जहां पर्यटक भी नहीं जाते और न ही उन लोगों को बाहरी दुनिया के बारे में ज़्यादा जानकारी थी. पाकिस्तान की तो बिल्कुल नहीं. सैकड़ों दृश्यों, संस्कृति और बेहतरीन लोगों के कारण, मैं इस छोटे से देश के छोटे-छोटे क्षेत्रों में कुल तीन महीने तक रहा. वहां के लोग इतने मेहमान नवाज़ हैं कि, शायद ही कहीं और के लोग हों.

इसी तरह, अमरीका के ग्रांड कैन्यन में एक सुनसान पहाड़ पर एक महिला मिली, जो 800 मील के एरिजोना ट्रेल पर अपनी बहन की याद में यात्रा कर रही थी.

उन्होंने मुझे बताया कि उनकी बहन ने आत्महत्या कर ली थी और इसलिए उन्होंने फ़ैसला किया कि बहन की याद में घर बैठ कर शोक मनाने और फिर अवसाद में जाने से अच्छा है कि मैं अपनी बहन के लिए कुछ करूं.

उन्होंने अपनी बहन की अस्थियां ग्रैंड कैन्यन के अंत में कोलोराडो नदी में प्रवाहित करने का फ़ैसला किया. "ग्रैंड कैनियन उनकी पसंदीदा जगह थी. इसलिए मैं यहां आई हूं. यह उनके लिए है. "

उसने मुझे भी कुछ राख दी ताकि अगर मैं पहले वहां पहुंचू, तो मैं भी उसे नदी में प्रवाहित कर दूं. जब मैं कुछ दिन बाद नदी पर पहुंचा, तो मैंने राख नदी में प्रवाहित कर दी. देखिये मैं अपने शौक़ को पूरा करने और तस्वीरें लेने के लिए ग्रैंड कैन्यन गया था और इसने कैसे मुझे एक भावनात्मक कहानी का हिस्सा बना दिया.

कभी अकेले डर नहीं लगता?

साइकिल से 50 हज़ार किलोमीटर की यात्रा करने वाले कामरान अली

मैंने अब तक कम से कम 50 हज़ार किलो मीटर की यात्रा की है. इसमें से लगभग दो हजार किलो मीटर लोगों के साथ, जबकि बाकी सब यात्रा अकेले ही की है. कहीं कहीं डर ज़रूर लगता है.

आबादी वाले इलाके में ट्रैफ़िक से डर लगता है और सुनसान बयाबान स्थान पर जानवरों और चोरों से डर लगता है. देखिए, साइकिल चालक बहुत कमज़ोर होता है, उसके साथ कुछ भी हो सकता है.

सड़क पर मेरे साथ कभी कुछ नहीं हुआ, लेकिन जब शहर में कहीं थोड़ी देर के लिए साइकिल छोड़ी तो, कुछ न कुछ ज़रूर हो जाता था.

उदाहरण के लिए, कोलंबिया में, मेरा लैपटॉप बैग जिसमें मेरा पासपोर्ट, क्रेडिट कार्ड और इमरजेंसी कैश था, चोरी हो गया था. मेरी क़िस्मत अच्छी थी कि वो मुझे बाद में वापिस मिल गया.

इसी तरह, कहीं जंगली शेरों का डर तो कहीं जंगली भालू का डर, चाहे आप कितने भी सावधान क्यों न हों, लेकिन अंधेरे में डर जरूर महसूस होता है. आपको बस ये बर्दाश्त करना आना चाहिए.

अगर किसी को साइकिल चलाने में दिलचस्पी है, तो वो कहां से शुरू करे?

शौक़ अपने रास्ते ढूंढ लेता है. मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं दुनिया के इतने ज़्यादा देशों में साइकिल चलाऊंगा. अगर आप पाकिस्तान में हैं तो आपके पास पाकिस्तान में भी साइकिल चलाने की जगहें हैं.

मैं तो बस यही कहूंगा कि छोटे से शुरू करें और बस फिर करते जाएं. लेकिन यह भी बता दूं कि यह एक बहुत ही अकेला और मानसिक और शारीरिक रूप से थका देने वाला शौक़ है.

यह भी सच है कि एक तरह से एक आज़ादी भी है. सैकड़ों मील के क्षेत्र में पहाड़, घाटियां और परिदृश्य आपके इंतजार में हैं. लेकिन साथ ही, इन हज़ारों मील में जो कठिनाइयां, सर्दी, गर्मी, बारिश, तूफान है वो भी एक हक़ीक़त हैं.

आप दस-दस दिनों तक स्नान नहीं करते हैं, खाना ख़त्म हो जाता है, पानी कम हो रहा है. बार-बार एक ही तरह का खाना खाना पड़ रहा है, पिज्जा के सपने आ रहे हैं. कई लोग तो इन्हें बर्दाश्त ही नहीं कर सकते हैं और बीच में छोड़ कर चले जाते हैं.

क्या साइकिल के अलावा किसी को साथी बनाने का इरादा हैं?

एक बार तो तज़ाकिस्तान में एक परिवार जिसके साथ मैं रुका था, उसने मुझे अपनी बेटी से शादी करने के लिए कहा. एक बार अफ़ग़ानिस्तान और तज़ाकिस्तान के बीच वखान घाटी में, पंज नदी के साथ जहां नदी बहुत सिकुड़ती है, नदी के उस पार से एक लड़के ने मुझे दर्री भाषा में आवाज़ दी कि, "क्या तुम शादीशुदा हो?" मैंने कहा नहीं. उसने पास खड़ी एक लड़की की ओर इशारा किया और कहा, "यह मेरी बहन है. इससे शादी कर लो."

पूरा परिवार वहां था, एक महिला, एक बच्चा, वो लड़की और उसका भाई. लेकिन उन्हें इसमें कुछ अजीब नहीं लगा. जब मैंने लड़की की तरफ़ देखा, तो उसने मुझसे दर्री भाषा में कुछ कहा जिसका मतलब था 'आई लव यू'. मुझे थोड़ा आश्चर्य हुआ और फिर मैंने हिम्मत करके उसी वाक्य को दोहरा दिया. बस बात यहीं पर ही ख़त्म हो गई. और मैं नदी के पार नहीं गया, और न ही वह मेरी सोहनी बानी. "आई लव यू" की आवाज़ मेरे दिमाग़ में कई दिनों तक गूंजती रही.

वैसे, मैंने तो साइकिल से ही शादी कर ली है.

BBC Hindi
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English summary
Kamran on bike: Kamran Ali, who traveled 50 thousand kilometers by bicycle
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