जस्टिस एनवी रमन्ना: विवादों में क्यों हैं सुप्रीम कोर्ट के जज
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री ने जस्टिस एनवी रमन्ना पर आंध्र सरकार ने प्रशासनिक कामकाज में दखल देने का आरोप लगाया है.
आंध्र प्रदेश सरकार ने भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबड़े को चिट्ठी लिख कर सुप्रीम कोर्ट के एक जज के ख़िलाफ़ शिकायत की है.
मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी ने सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा जज और अगले मुख्य न्यायाधीश बनने वाले जस्टिस एनवी रमन्ना पर आंध्र प्रदेश सरकार के प्रशासनिक कामकाज में दखल देने का आरोप लगाया है.
आठ पन्ने वाली इस चिट्ठी में प्रदेश के मुख्यमंत्री ने लिखा, "टीडीपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू से जस्टिस रमन्ना की नज़दीकी जगज़ाहिर है. मैं बेहद ज़िम्मेदारी के साथ ये बयान दे रहा हूँ."
उन्होंने आरोप लगाया कि, "जस्टिस रमन्ना हाईकोर्ट की बैठकों को प्रभावित करते हैं. इसमें कुछ माननीय जजों के रोस्टर भी शामिल हैं. तेलुगू देशम पार्टी से जुड़े अहम मामलों में सुनवाई का काम 'कुछ माननीय न्यायाधीशों' को ही आवंटित किया गया है."
"इससे साफ़ पता चलता है कि जस्टिस रमन्ना, टीडीपी और हाईकोर्ट के कुछ माननीय जजों के बीच सांठ-गांठ है."
अपने आरोपों के समर्थन में उन्होंने कुछ दस्तावेज़ और पहले दिए गए कोर्ट के आदेश भी चिट्ठी के साथ संलग्न किए हैं.
शनिवार को एक संवाददाता सम्मेलन में राज्य सरकार ने इस चिट्ठी की प्रति और कथित अहम सबूत कहे जाने वाले दस्तावेजों को मीडिया के साथ साझा किया.
कौन हैं जस्टिस एनवी रमन्ना?
जस्टिस नाथुलापति वेकट रमन्ना का जन्म अविभाजित आंध्र प्रदेश के कृष्णा ज़िले में अगस्त 27, 1957 को हुआ था.
2 फरवरी 2017 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया गया. फिलहाल उनके कार्यकाल के दो ही साल बचे हैं क्योंकि 26 अगस्त 2002 में वो सेवानिवृत्त होने वाले हैं.
वकालत का काम उन्होंने 10 फरवरी 1983 में शुरू किया था.
जिस दौरान चंद्रबाबू नायडू आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री थे उस दौरान जस्टिस रमन्ना आंध्र प्रदेश सरकार के एडिशनल एडवोकेट जनरल हुआ करते थे.
किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले रमन्ना ने विज्ञान और क़ानून में स्नातक की डिग्रियां हासिल की थीं. इसके बाद उन्होंने आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट, केंद्रीय प्रशासनिक ट्राइब्यूनल और सुप्रीम कोर्ट में क़ानून की प्रैक्टिस शुरू की. राज्य सरकारों की एजेंसियों के लिए वो पैनल काउंसेल के तौर पर भी काम करते थे.
27 जून 2000 में वो आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में स्थायी जज के तौर पर नियुक्त किए गए. इसके बाद साल 2013 में 13 मार्च से लेकर 20 मई तक वो आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के एक्टिंग चीफ़ जस्टिस रहे.
2 सितंबर 2013 को उनकी पदोन्नति हुई और वो दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस नियुक्त किए गए. इसके बाद 17 फरवरी 2014 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया.
फिलहाल सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ जजों की पंक्ति में मौजूदा सुप्रीम कोर्ट चीफ़ जस्टिस एसए बोबड़े के बाद वो दूसरे नंबर पर हैं.
पूर्व जस्टिस चेलमेश्वर के साथ विवाद?
मार्च 2017 में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस चेलमेश्वर ने एक पत्र लिख कर कहा था कि जस्टिस एनवी रमन्ना और एन चंद्रबाबू नायडू के बीच अच्छे रिश्ते हैं.
उन्होंने कहा था, "ये न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच ग़ैर-ज़रूरी नज़दीकी का सबसे बड़ा उदाहरण हैं."
अपने पत्र में उन्होंने लिखा था कि अविभाजित आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति के बारे में एनवी रमन्ना की रिपोर्ट और पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की टिप्पणी में समानताएं थीं.
अपने पत्र में जस्टिस चेलमेश्वर ने लिखा, "माननीय जज और आंध्र प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री के बीच नज़दीकी के बारे में सभी जानते हैं.
"सच को साबित करने के सबूत की ज़रूरत नहीं. मुख्यमंत्री की टिप्पणी और माननीय जज की टिप्पणी में इतनी समानताएं हैं कि वो एक जैसी लगती हैं. दोनों चिट्ठियों के समय को देखें को इससे एक ही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि दोनों के बीच बातचीत जारी थी."
जब ये चिट्ठी लिखी गई थी उस वक्त जस्टिस चेलमेश्वर सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति करने वाले कॉलेजियम के सदस्य थे. इस चिट्ठी का नतीजा ये हुआ कि सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस एनवी रमन्ना की दी गई रिपोर्ट को खारिज कर दिया और आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में नए जजों की नियुक्ति की.
अंग्रेज़ी अख़बार इकोनॉमिक्स टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में जस्टिस एनवी रमन्ना ने इस मुद्दे पर बात की थी.
अपने इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि, "देश के चीफ़ जस्टिस ने छह वकीलों पर मेरी राय मांगी थी जो मैंने किया. इससे आगे मेरे पास कहने के लिए कुछ नहीं है. आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के मुख्यमंत्रियों ने क्या राय दी है इसके बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है."
उस वक्त मुख्यमंत्री और एनवी रमन्ना के पत्र सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को तीन दिन के अंतराल में मिले थे.
दिए गए सुझावों पर जवाब देने के लिए तेलंगाना के मुख्यमंत्री न एक महीने का वक्त लिया था, जबकि आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे एन चंद्रबाबू नायडू ने अपना जवाब भेजने के लिए 11 महीनों का वक्त लिया था.
एक बार पुस्तक विमोचन के एक आयोजन के दौरान जस्टिस एनवी रमन्ना ने कहा, "जजों पर झूठे आरोप लगा कर उन्हें निशाना बनाया जा रहा है. चूंकि आरोपों पर सफ़ाई देने का कोई रास्ता नहीं है इसलिए उन्हें आसान निशाना बनाया जा रहा है. ये ग़लत धारणा है कि रिटायर्ड जज शानो शौकत वाली ज़िंदगी जीते हैं."
उनके ख़िलाफ़ क्या है आपराधिक मामला?
बात साल 1981 की है जब जस्टिस रमन्ना नागार्जुन यूनिवर्सिटी में छात्र हुआ करते थे.
उस दौरान यूनिवर्सिटी के बाहर बस स्टॉप की मांग में हो रहे विरोध प्रदर्शनों में उन्होंने हिस्सा लिया था.
इन विरोध प्रदर्शनों के दौरान स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट की एक बस में तोड़फोड़ की गई थी.
इस मामले में दो वकीलों में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर कहा था कि जस्टिस एनवी रमन्ना को सुप्रीम कोर्ट के जज के पद से हटाया जाना चाहिए.
उनका आरोप था कि जस्टिस रमन्ना ने ये बात छिपाई कि बस में तोड़फोड़ के मामले में उनके ख़िलाफ़ आपराधिक मामला बना था.
हालांकि इस याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया है और दोनों वकीलों पर जुर्माना लगा दिया.