बोफोर्स घोटाला: जस्टिस खानविलकर ने सुनवाई से खुद को अलग किया
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 31 मई 2005 को फैसला सुनाते हुए मामले के सभी आरोपियों के खिलाफ सभी आरोप खारिज कर दिए थे
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ए एम खानविलकर ने बोफोर्स केस की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है। न्यायमूर्ति खानविलकर, प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ के हिस्सा थे। उन्होंने मामले की सुनवाई से अलग रहने का विकल्प चुनने का कोई कारण नहीं बताया है। इस पीठ में न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ भी शामिल थे। जस्टिस ए एम खानविलकर के अलग होने के बाद पीठ ने कहा कि मामले की 28 मार्च को सुनवाई के लिए नई पीठ का गठन किया जाएगा।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 31 मई 2005 को फैसला सुनाते हुए मामले के सभी आरोपियों के खिलाफ सभी आरोप खारिज कर दिए थे। भाजपा नेता अजय अग्रवाल ने अदालत के इस आदेश को चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी, जिसकी सुनवाई इस पीठ को करनी थी। आपको बता दें कि बोफोर्स घोटाले की जांच को एक बार फिर से शुरू करने के लिए सीबीआई ने सरकार से इजाजत मांगी है। सीबीआई के सूत्रों की मानें तो इस बाबत डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल ट्रेनिंग (डीओपीटी) को बकायदा एक पत्र लिखा गया है। पत्र में कहा गया है गया है कि 2005 में यूपीए सरकार ने फैसला लिया था कि इस मामले की फिर से जांच नहीं की जाएगी और सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में स्पेशल लीव पेटिशन दाखिल करने से रोका गया था। लेकिन पिछले कुछ महीनों में सीबीआई ने बोफोर्स मामले की फाइलों को फिर से खोलने की इच्छा जताई है, इस बाबत उसने पीएसी को भी जानकारी दी है। आपको बता दें कि 31 मई 2005 को दिल्ली हाई कोर्ट ने इस मामले में अपने फैसले में आरोपी हिंदुजा बंधु, श्रीचंद, गोपीचंद, प्रकाशचंद को आरोपमुक्त कर दिया था, साथ ही सीबीआई को फटकार लगाते हुए कहा था कि आपकी जांच की वजह से आम जनता के 250 करोड़ रुपए खर्च हो गए।
गौरतलब है कि बोफोर्स घोटाले में प्राइवेट जासूस मिशेल हर्शमैम का नाम सामने आया था, जिसने आरोप लगाया था कि राजीव गांधी और तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने उसकी पड़ताल को रोकने की कोशिश की थी। अमेरिका के जासूस हर्शमैम ने आरोप लगाया था कि राजीव इस बात से काफी नाराज हो गए थे कि कैसे मुझे उसने स्विस बैंक के खाते की जानकारी मिल गई।
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