हर साल बाढ़ झेलने को मजबूर जेपी के गांव वाले- ग्राउंड रिपोर्ट
बलिया से सिताबदियारा की दूरी क़रीब पचास किलोमीटर है लेकिन इसे तय करने में ढाई घंटे से भी ज़्यादा समय लगता है. बैरिया क़स्बे से आगे बढ़ने पर सड़क के दोनों ओर तब तक सिर्फ़ पानी ही पानी नज़र आता है जब तक सिताबदियारा से छह किमी पहले बीएसटी बांध नहीं आ जाता. बांध की वजह से विशाल जलराशि सिर्फ़ बांध के दाहिनी ओर दिखती है
बलिया से सिताबदियारा की दूरी क़रीब पचास किलोमीटर है लेकिन इसे तय करने में ढाई घंटे से भी ज़्यादा समय लगता है. बैरिया क़स्बे से आगे बढ़ने पर सड़क के दोनों ओर तब तक सिर्फ़ पानी ही पानी नज़र आता है जब तक सिताबदियारा से छह किमी पहले बीएसटी बांध नहीं आ जाता. बांध की वजह से विशाल जलराशि सिर्फ़ बांध के दाहिनी ओर दिखती है.
बीएसटी बांध के ऊपर सिताबदियारा की ओर चलते हुए इसका अनुमान साफ़ तौर पर लगाया जा सकता है कि बाढ़ ने किस क़दर लोगों को अपने आग़ोश में ले रखा है. बांध के ऊपर बनी टूटी-फूटी सड़क पर क़रीब दो किमी चलने के बाद कुछ लोग वहां खड़े नज़र आते हैं. ये लोग बांध के नीचे उतरकर बड़ी नावों में लदकर आ रही मोरंग को इकट्ठा कर रहे थे.
उन्हीं में से एक युवक दिलीप सिंह ने बताया, "ये जो पानी दिख रहा है दूर तक, इसके नीचे मकान दबे पड़े हैं. कच्चे और एक मंज़िले मकान दिख नहीं रहे हैं, लेकिन दो मंज़िले मकानों का ऊपरी हिस्सा और ऊंचे पेड़ों को पानी के बाहर देखा जा सकता है."
सिताबदियारा उस बड़े इलाक़े को कहा जाता है जो कि गंगा और घाघरा नदियों के बीच में पड़ता है. यूपी और बिहार के कई गांवों को समेटे इस इलाक़े में क़रीब एक लाख लोग रहते हैं. दो नदियों के बीच होने की वजह से इस इलाक़े को लगभग हर साल बाढ़ की विभीषिका को झेलना पड़ता है लेकिन इस बार स्थिति कुछ ज़्यादा भयावह है.
भगवान टोला के निवासी देवराज सिंह बताते हैं, "पंद्रह दिन से ज़्यादा हो गए पानी बढ़े हुए और तमाम टोलों में घरों के भीतर तक पानी घुसा हुआ है. लोग आने-जाने के लिए नाव का इस्तेमाल कर रहे हैं. सरकारी सहायता के नाम पर एक दो बार राशन के पैकेट बांटे गए, उसके अलावा कोई पूछने भी नहीं आ रहा है. बरसात का पानी घरों तक आ जाने के कारण तमाम जीव-जंतुओं का भी डर बना हुआ है. हालांकि लोग लगभग हर साल इस तरह की बाढ़ के आदी हो गए हैं लेकिन इस बार स्थिति कुछ ज़्यादा ही ख़राब है."
बलिया ज़िले के अतिरिक्त ज़िलाधिकारी राम आसरे बताते हैं कि ज़िले में सौ से ज़्यादा गांव बाढ़ से प्रभावित हुए हैं, उनमें से ज़्यादातर गांव इसी इलाक़े के हैं. सिताबदियारा इलाक़े में ही महान समाजवादी नेता जय प्रकाश नारायण यानी जेपी का गांव कोड़रहा नौबरार भी है.
जेपी की जन्मस्थली भी यहीं है हालांकि उनका पैतृक घर कुछ ही दूरी पर लालाटोला में है जो कि बिहार के छपरा ज़िले में पड़ता है. बीएसटी बांध के बाईं ओर जेपी का घर और स्मारक है जबकि दाहिनी ओर का इलाक़ा पानी में डूबा हुआ है. वैसे पिछले कुछ दिन लगातार हुई बारिश की वजह से जलभराव यहां भी कोई कम नहीं है लेकिन बांध की वजह से बाढ़ का पानी इधर नहीं आ पाता.
दीनानाथ बताते हैं कि सहायता के नाम पर सरकार की ओर से लोगों को छोटे-छोटे तिरपाल दिए गए हैं जिससे बरसात से बचाव कर रहे हैं. गांव वालों से जब ये बात हो रही थी तो कुछ लोग सडकों पर ब्लीचिंग पाउडर का छिड़काव कर रहे थे. गांव वाले कहने लगे कि ये सिर्फ़ आज हो रहा है. उन लोगों के मुताबिक, 'शायद किसी का दौरा होने वाला है.'
इस इलाक़े में दो हफ़्ते पहले गंगा नदी और उसके बाद घाघरा ने भी अपना विकराल रूप दिखाना शुरू किया. बांध के एक ओर का पूरा इलाक़ा जलमग्न हो गया है. क़रीब दर्जन भर गांवों की पचास हज़ार की आबादी इस वक़्त घाघरा नदी की बाढ़ से घिरी हुई है. स्थानीय लोगों के मुताबिक, क़रीब तीन दर्जन से भी ज़्यादा घर घाघरा नदी में डूब चुके हैं. बड़ी संख्या में लोग अपने सामान और मवेशियों के साथ सुरक्षित स्थानों पर जाने को मजबूर हो गए हैं.
नाव की समुचित व्यवस्था न होने से इस क्षेत्र के बाढ़ पाडि़तों को भारी असुविधा झेलनी पड़ रही है. पिछले दो हफ़्ते से दोनों नदियों के पानी से कई गांव घिरे हुए हैं. नाव के सहारे ही लोग एक जगह से दूसरी जगह और आ जा रहे हैं. किसानों की हज़ारों एकड़ की फ़सल पानी में डूब चुकी है.
एक स्कूल में अध्यापक श्रीनारयण लाल कहते हैं, "यहां कटान रोकने के नाम पर साल 2014 से लेकर अब तक लगभग करोड़ों रूपए खर्च हो गए लेकिन कोई फ़ायदा नहीं मिला. हर साल कटान व बाढ़ का सिलसिला मई-जून से शुरू हो जाता है, सरकार इस पर करोड़ों रुपये भी ख़र्च करती है लेकिन हल कुछ नहीं निकलता. करोड़ों रुपये कहां चले जाते हैं, कभी पता नहीं चल सका."
कोड़हरा नौबरार के निवासी सुनील दुबे कहते हैं कि कई साल पहले रिंग बांध बनाने की योजना बनी थी जिसे बिहार सरकार और यूपी सरकार को मिलकर बनाना था लेकिन बांध अभी भी बनकर तैयार नहीं हो सका है.
सुनील दुबे के मुताबिक, "योजना का मक़सद यह था कि बांध बनने से कई गांवों को हर साल बाढ़ की विभीषिका से बचाया जाना था. बांध का जो हिस्सा बिहार सरकार के ज़िम्मे था वो तो बनकर तैयार हो गया है लेकिन यूपी के हिस्से वाला बांध का हिस्सा भी ज्यों का त्यों पड़ा हुआ है. अधिकारी पैसा न होने का हवाला देकर बात को टाल देते हैं."
बलिया के ही रहने वाले पत्रकार बलिराम सिंह कहते हैं बीएसटी बांध से अलग रिंग बांध के निर्माण का ख़ाका तैयार किया गया था जिसे दोनों राज्यों की सरकारों को पूरा करना था.
वो कहते हैं, "125 करोड़ रुपये की लागत से रिंग बांध का निर्माण पिछले साल ही शुरू हुआ. यूपी सीमा में इसे 2300 मीटर गंगा की ओर जबकि 1175 मीटर घाघरा के किनारे बनना है. बिहार सरकार ने अपने हिस्से वाले क़रीब चार लंबे बांध का निर्माण करा दिया है लेकिन यूपी सरकार ने इसे धन के अभाव में छोड़ रखा है."
यूपी की सीमा में बांध के अधूरा रह जाने को लेकर लोगों में आक्रोश भी है. स्थानीय लोगों के मुताबिक, उन लोगों ने चुनाव में मतदान के बहिष्कार की भी धमकी दी थी, तब अधिकारियों ने इस बांध को पूरा कराने की बात मान ली थी लेकिन अब उसे निभा नहीं रहे हैं.