झारखंड की इस आदिवासी लड़की की अमेरिका उड़ान
अमेरिका के लिए उड़ान भरने से पहले पुंडी सारू ने कहा, ''अमेरिका जाना है, तो बहुत ख़ुश हूँ. पहली बार हवाई जहाज का सफ़र है. दो साल पहले ट्रेन पर पहली बार चढ़ी थी.''
झारखंड के खूंटी ज़िले का सिर्फ़ 70 घरों वाला हेसल गाँव इन दिनों चर्चा में है. ओलंपिक के बाद यह पहला मौक़ा है, जब इस गाँव की इतनी चर्चा हो रही हो. इसकी वजह बनी हैं 17 साल की पुंडी सारू.
पुंडी सारू झारखंड की उन पाँच उभरती हॉकी खिलाड़ियों में शामिल हैं, जो इन दिनों अमेरिका के मिडलबरी कॉलेज में कल्चरल एक्सजेंच प्रोग्राम के तहत ट्रेनिंग ले रही हैं.
हॉकी खिलाड़ियों का गाँव
पुंडी सारू के गाँव हेसेल के अधिकतर घर खपरैल (कच्ची दीवारों वाले) हैं, लेकिन ओलंपिक (साल-2016) के वक़्त भी यहां मीडिया का जमावड़ा था.
तब इसी गाँव की निक्की प्रधान को ओलंपिक में खेलने वाली भारतीय महिला हॉकी टीम के लिए चुना गया था. निक्की तब झारखंड की पहली वैसी महिला खिलाड़ी बनी थीं, जिन्हें ओलंपिक तक जाने का मौक़ा मिला.
उनसे पहले इसी गाँव की पुष्पा प्रधान भारतीय महिला हॉकी टीम का हिस्सा रही थीं. अब इस गाँव की हर लड़की हॉकी खेलती है और उनका सपना भारतीय महिला हॉकी टीम में शामिल होना है.
निक्की फ़िलहाल भारतीय टीम के लिए खेल रही हैं.
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पुंडी सारू की कहानी
पुंडी के पिता एतवा सारू कुछ साल पहले हुई एक सड़क दुर्घटना के बाद पहले की तरह मज़दूरी नहीं कर सकते. बड़ी बहन मंगुरी ने मैट्रिक (दसवीं) की परीक्षा में कम नंबर आने के कारण ख़ुदकुशी कर ली.
अब घर चलाने की ज़िम्मेदारी पुंडी के बड़े भाई सहारा सारू, उनकी मां चांदु सारू और ख़ुद पुंडी पर आ गई है. इस कारण कई दफ़ा हॉकी की प्रैक्टिस छोड़कर वे खेतों में मज़दूरी भी करती हैं.
मैं जब बीबीसी के लिए साल 2016 में ओलंपियन निक्की प्रधान की मां जीतन देवी से मिलने उनके गांव हेसेल गया था, तब दोनों बहनें (पुंडी व मंगुरी) साथ-साथ हॉकी खेला करती थीं. वह तस्वीर तब बीबीसी ने छापी लेकिन अब पुंडी सारू अकेले हॉकी खेलती हैं.
पुंडी सारु ने बीबीसी से कहा, ''पहले फ़ुटबॉल खेलते थे. फिर लगा कि हॉकी खेलेंगे, तो जल्दी नौकरी मिल जाएगी. इसलिए हॉकी खेलने लगे. हमारे लिए सरकारी नौकरी करना ज़रूरी है, ताकि परिवार को अच्छी तरह चला सकें. अब मैं भारत के लिए हॉकी खेलना चाहती हूं. मुझे विश्वास है कि यह मौक़ा मिलेगा और मैं भारतीय महिला हॉकी टीम के लिए सेंटर हाफ़ से खेलूंगी.
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पुंडी सारू आदिवासी हैं और हॉकी खेलने का उनका सफ़र बहुत आसान नहीं रहा है. दो साल पहले 2020 में उनका इस कार्यक्रम के लिए चयन किया गया था लेकिन अचानक फैली कोविड महामारी के कारण वे अमेरिका नहीं जा सकी थीं.
उनके साथ खूंटी ज़िले की ही जूही कुमारी, सिमडेगा की हेनरिटा टोप्पो और पूर्णिमा नेती और गुमला ज़िले की प्रियंका कुमारी भी 24 जून से 13 जुलाई तक मिडलबरी में चलने वाले प्रशिक्षण शिविर में भाग लेने झारखंड से अमेरिका गई हैं.
हवाई जहाज में खिड़की नहीं होती
अमेरिका के लिए उड़ान भरने से पहले पुंडी सारू ने बीबीसी से कहा, ''अमेरिका जाना है, तो बहुत ख़ुश हूँ. पहली बार हवाई जहाज का सफ़र है. दो साल पहले ट्रेन पर पहली बार चढ़ी थी. फिर कार में बैठने का मौक़ा मिला तो और ख़ुशी हुई. अब प्लेन में चढ़ना है. सर, बता रहे थे कि खिड़की नहीं खुलती है. उसमें एसी चलता है. बहुत देर उड़ेगा, तब अमेरिका पहुंचेंगे. वहाँ से जो गोरी-गोरी मैडम आई थीं, वो बोलीं कि मुझे अपने घर भी ले जाएंगी.''
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पुंडी ने तब यह भी कहा था, ''अमेरिका में मेरे गाँव की तरह साफ़ हवा और खुली जगह नहीं होगी. वहाँ के लोग सादा खाते हैं. क्या जाने हमको (मुझे) ठीक लगेगा कि नहीं. अब ठीक नहीं लगेगा, तब भी खा लेंगे. पेट तो भरना ही होगा. खूब घूमेंगे. देखेंगे कि वहाँ के लोग कैसे रहते हैं. हॉकी सीखेंगे फिर यहां वापस आकर खूब खेलूंगी.''
अंग्रेज़ी का डर
पुंडी सारू को डर है कि यदि कोई अंग्रेज़ी से हिंदी करने वाला नहीं रहा, तब बातचीत में दिक्क़त होगी. उन्होंने पेलोल के हाई स्कूल से दसवीं की परीक्षा पास की है. वहां हिन्दी माध्यम से पढ़ाई होती है. वे मुंडारी (आदिवासियों की भाषा) में निपुण हैं.
मैंने जब उनसे अंग्रेज़ी में बोलने का अनुरोध किया, तब पुंडी सारू ने कहा, ''माइ नेम इज़ पुंडी सारू. आइ लीव इन हेसेल. माइ फादर्स नेम इज़ एतवा सारू. मदर नेम इज चांदू सारू. आई प्ले हॉकी.''
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कैसा है अमेरिका
पुंडी सारू और उनकी साथियों की कुछ तस्वीरें हमने अमेरिका से मंगवाई हैं. इन बच्चियों के चेहरों पर मुस्कान है. वे व्यस्त हैं. वे हॉकी की प्रैक्टिस के साथ अंग्रेज़ी बोलना भी सीख रही हैं.
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अब कैसा लगता है
पुंडी सारू ने कहा, ''अमेरिका तो बहुत सुंदर है. यहाँ अच्छे लोग हैं. हमें एयरपोर्ट से ही इन लोगों ने रिसीव किया और अब कोई दिक्क़त नहीं है. एयरपोर्ट और हवाई जहाज का सफ़र तो बहुत अच्छा था. बादल हमारे नीचे थे और हम ऊपर. यहाँ अमेरिका में कैथरीन मैम हमारे खाने का ख्याल रखती हैं ताकि हम मन से खा सकें. हमारे कोच भी बहुत अच्छे हैं.''
उनके साथ झारखंड से अमेरिका गईं शक्तिवाहिनी संस्था की सुरभि ने कहा कि न केवल पुंडी बल्कि सभी पांचों बच्चियां बहुत उत्साहित और ख़ुश हैं. वे नई चीज़ें एक्सप्लोर कर रही हैं.
सुरभि ने बीबीसी से कहा, ''पहले हवाई सफ़र के कारण सभी बच्चियां तो काफ़ी डरी हुई थीं लेकिन बाद में उन्हें मज़ा आने लगा. हेनरिटा ने मुझसे कहा कि लगता है कि आसमान के सारे तारे उनके लिए ज़मीन पर आ गए हैं. फिर दूसरी बच्चियों ने कहा कि अमेरिका के लोग काफ़ी अच्छे हैं, मित्रवत हैं और हमेशा मुस्कुराते रहते हैं. ऐसा लगता ही नहीं कि हम किसी दूसरे देश में हैं.''
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अमेरिका जाने के लिए चयन
महिला ट्रैफिकिंग के ख़िलाफ़ काम करने वाली संस्था शक्तिवाहिनी ने साल 2019-20 में अमेरिकी वाणिज्य दूतावास से संपर्क कर आदिवासी लड़कियों के प्रोत्साहन की योजना बनाई थी.
तब अमेरिकी काउंसुलेट (कोलकाता) के कुछ पदाधिकारी रांची आए और यहाँ महिला हॉकी खिलाड़ियों का शिविर आयोजित कराया. इसके बाद झारखंड की पांच लड़कियों को अमेरिका ले जाकर प्रशिक्षित कराने का निर्णय लिया गया.
शक्तिवाहिनी के ऋषिकांत ने बीबीसी से कहा, ''कल्चरल एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत इनका चयन वरमांट स्थित प्रसिद्ध मिडलबरी कॉलेज में ट्रेनिंग के लिए किया गया था. इसका खर्च अमेरिकी दूतावास वहन कर रहा है. ये सब खिलाड़ी ग़रीब घरों की हैं और इनकी मांएं मज़दूरी कर घर चलाती हैं. मिडलबरी कॉलेज में इन्हें अंग्रेज़ी बोलचाल और व्यक्तित्व के विकास की भी ट्रेनिंग दी जा रही है. वे वहाँ के प्रमुख लोगों से भी मिलेंगी.''
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प्रैक्टिस के लिए साइकिल की सवारी
पुंडी सारू के गाँव में कोई ग्राउंड नहीं है. इस कारण झारखंड में रहने के दौरान वे अपनी दोस्त चिंतामणि मुंडु के साथ रोज आठ किलोमीटर साइकिल चलाकर खूंटी जाती थीं, ताकि वहां बिरसा कॉलेज ग्राउंड में हॉकी की प्रैक्टिस कर सकें. वहां बालू वाले मैदान में इनकी प्रैक्टिस होती है. कभी-कभार इन्हें सरकार द्वारा बनवाए गए एस्ट्रोटर्फ स्टेडियम में भी खेलने का मौका मिलता है.
वहां दशरथ महतो और कुछ दूसरे कोच उन्हें हॉकी खेलने की ट्रेनिंग देते हैं. वे भारतीय महिला हॉकी टीम में शामिल निक्की प्रधान के भी शुरुआती कोच रहे हैं.
दशरथ महतो ने बीबीसी से कहा, ''पुंडी समेत यहां की अनेक लड़कियों में हॉकी का क्रेज़ है. वे अच्छा खेल रही हैं. आने वाले दिनों में यहां की कुछ और लड़कियां आपको भारतीय टीम में दिख सकती हैं. सरकार को चाहिए कि इन्हें सुविधाएं दे, ताकि किसी प्रतिभा को वंचित नहीं होना पड़े. यहां के लड़के भी अच्छी हॉकी खेल रहे हैं.''
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गांव को गर्व है
हेसेल के कृष्णा मुंडु ने बताया कि गांव के सभी लोग अपनी बेटियों पर गर्व कर रहे हैं. यहां के लोगों ने मड़ुआ की रोटी और साग खिलाकर अपनी बेटियों को बड़ा किया है. पैसे के अभाव में बांस से बनी स्टिक से इन सबने हॉकी खेलने की शुरुआत की थी. अब कुछ लोगों ने लकड़ी और फाइबर के हॉकी स्टिक और टी-शर्ट उपलब्ध करा दिए हैं, तो सुविधा हो गई है.
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वहाँ जाने से पहले इन पांचों खिलाड़ियों मे रांची में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मुलाक़ात की थी. मुख्यमंत्री ने उस मुलाक़ात के दौरान इन सबको बधाई दी और कहा कि यह राज्य के लिए गौरव की बात है.
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा, ''हमारी सरकार ग्रामीण क्षेत्रों से प्रतिभावान खिलाड़ियों की पहचान कर उनके हुनर को निखारने की पहल कर रही है. हम खेल शक्ति बनने की दिशा में अग्रसर हैं. इन बच्चियों पर हमें नाज है. हम इनकी सारी ज़रूरतें पूरी करेंगे. जब ये बच्चियां अमेरिका से लौटकर आएंगी, तो मैं इनसे फिर मिलूंगा. इनके अनुभवों को जानकर भविष्य की योजनाएं बनाने में मदद मिलेगी.''
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