जो बाइडेन बने राष्ट्रपति तो भारत में ट्रंप का आ गया बाबा अवतार, हिटलर बाबा भी मौजूद
Trump Baba In India: नई दिल्ली। डोनाल्ड ट्रंप अपना कार्यकाल खत्म करने के बाद अब अमेरिका के राष्ट्रपति नहीं रहे लेकिन भारत में ट्रंप का बाबा अवतार जरूर रहेगा। चौंकिए नहीं, अपनी नीतियों को लेकर डोनाल्ड ट्रंप के पूरे कार्यकाल में उनकी चर्चा तो दुनिया भर में होती रही लेकिन भारत में ट्रंप का बाबा रूप भी सामने आ गया। वैसे जर्मनी के डिक्टेटर रहे हिटलर का भी बाबा अवतार भी भारत में है। इस बार प्रयागराज के माघ मेला में ये दोना बाबा मौजूद भी हैं।
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टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक प्रयागराज में चल रहे माघ मेला में हिटलर बाबा एक महामंडलेश्वर हैं। अनी अखाड़ा के इन महामंडलेश्वर का नाम तो माधव दास दिगम्बर है लेकिन उनके शिष्य उन्हें हिटलर बाबा के नाम से बुलाते हैं।
गुरु
ने
दिया
था
नाम
प्रयागराज
के
ही
सैदाबाद
के
रहने
वाले
हिटलर
बाबा
को
ये
नाम
उनके
गुरु
रघुवर
दास
ने
उनके
सख्त
स्वभाग
की
वजह
से
दिया
था।
हिटलर बाबा कहते हैं कि मैं हमेशा वहीं करता हूं जो मुझे सही लगता है और ये बाद में सही भी साबित होता है। ये मेरा ही फैसला था कि मुझे सन्यास लेना है और जब मैं इस पर अटल रहा तो मेरे गुरु ने मुझे हिटलर बाबा नाम दिया।
माधव दास कहते हैं कि जब मेरे गुरु ने कहा कि अभी मैं यात्रा न शुरु करूं क्योंकि अभी दिशाशूल चल रहा है और यह यात्रा शुरू करने के लिए अशुभ है। मैं कहता हूं कि जब मेरे गुरु मेरे साथ हैं तो सब कुछ शुभ है।" वे स्वीकार करते हैं कि कुछ लोग उनसे सिर्फ इस नाम की वजह से भी मिलने आते हैं लेकिन उन्हें इससे फर्क नहीं पड़ता। वह सिर्फ उन्हें जो ठीक लगता है वही करते हैं।
खाना
बनाते
हैं
ट्रंप
बाबा
हिटलर
बाबा
की
तरह
ही
ट्रंप
बाबा
भी
बन
गए
हैं।
साकेत
धाम
आश्रम
से
जुड़े
महंत
कंचन
दास
को
उनके
गुरु
ने
ट्रंप
बाबा
नाम
दे
दिया
था।
इसकी
कहानी
भी
दिलचस्प
है।
एम.कॉम
डिग्रीधारी
महंत
कंचन
दास
डोनाल्ड
ट्रंप
के
राष्ट्रपति
बनते
ही
उनके
समर्थक
बन
गए
थे।
फर्राटेदार
अंग्रेजी
बोलने
के
चलते
उनके
गुरु
विनायक
बाबा
ने
उनका
नामकरण
ट्रंप
बाबा
कर
दिया।
जल्द
ही
वह
अपने
नाम
के
चलते
मशहूर
हो
गए।
ट्रंप
बाबा
ने
फैसला
किया
है
कि
वह
भंडारे
में
खाना
बनाएंगे।
इसी तरह माघ मेले में मारुति बाबा और धुंधकारी बाबा भी मौजूद हैं। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि कहते हैं कि इस तरह के नाम रखना कोई नई बात नहीं है। गुरु अपने शिष्यों के व्यवहार और गुण के आधार पर उनका नामकरण पहले भी करते रहे हैं और अब भी ये परंपरा चल रही है। इस तरह के नाम शिष्यों में कौतूहल बढ़ाते हैं।
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