कूटनीतिक रिश्तों की बहाली से ज्यादा कुछ नहीं है जिनपिंग की भारत यात्रा !
बेंगलुरु। चीन ने बुधवार को अपने राष्ट्रपति शी जिनपिंग के भारत दौरे की आधिकारिक घोषणा कर दी हैं। जिनपिंग 11 अक्तूबर यानी शुक्रवार को करीब 24 घंटे लंबे दौरे पर तमिलनाडु के प्राचीन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध तटीय शहर महाबलीपुरम (ममल्लापुरम) पहुंचेंगे।वर्ष 2014 में राष्ट्रपति बनने के बाद यह जिनपिंग का दूसरा भारत का दौरा होगा। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा से चीन के राष्ट्रपति शी चिनपिंग का मुलाकात के ठीक बाद ये भारत दौरा हो रहा हैं। इसलिए सभी की निगाह इस पर टिकी हुई हैं। कश्मीर मुद्दे पर चीन पाकिस्तान से दोस्ती निभा रहा हैं। लेकिन चीन और न ही भारत अपने आपसी संबंध खराब करना चाहते हैं इसलिए जिपिंग की भारत यात्रा से दोनों देशों की कूटनीतिक रिश्तों की बहाली होगी। इस अनौपचारिक शिखर सम्मेलन का उद्देश्य किसी विशेष लक्ष्यों को प्राप्त करना नहीं बल्कि रिश्तों को बेहतर बनाना हैं।
बैठक अजेंडा और लक्ष्यविहीन है
हालांकि खबरों के अनुसार वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ कई मु्द्दों पर बात करेंगे। बता दें वुहान समिट के एक साल बाद अब तमिलनाडु के ऐतिहासिक शहर ममल्लापुरम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात होगी। दोनों देशों के बीच संबंधों को आगे बढ़ाने पर बातचीत करेंगे। कुछ विशेषज्ञ जहां कह रहे हैं कि इस बैठक से भारत जहां पाकिस्तान को संदेश देने की कोशिश करेगा वहीं वहीं चीन की कोशिश रहेगी कि अमेरिका के साथ ट्रेड वॉर से कारण चीन की प्रभावित हो रही अर्थव्यवस्था को उबारना होगा। वहीं दूसरी ओर अब चीनी राष्ट्रपति को अनौपचारिक बातचीत के लिए ममल्लापुरम बुलाकर भारत यह संदेश देना चाहता है कि आर्टिकल 370 हटाने के बाद भी अन्य देश तो दूर, पाकिस्तान के मित्र देश भी भारत से किसी तरह की दूरी बर्दाश्त नहीं कर सकते। यह अनौपचारिक बैठक अजेंडा और लक्ष्यविहीन है। भारत ने जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 को हटाने के बाद यह कोशिश की कि दुनिया इसे भारत का आंतरिक मामला माने। भारत इसमें काफी हद तक सफल रहा है।'
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रिश्तों को बेहतर बनाना है
विशेषज्ञ का कहना है कि अनौपचारिक बैठक में जिनपिंग और मोदी व्यापार और सुरक्षा को लेकर बातचीत नहीं करेंगे बल्कि दोनों नेताओं की वार्ता का केंद्र बिंदु द्वीपक्षीय रिश्तों को मजबूत बनाना होगा। वाशिंगटन में ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) के निदेशक ध्रुव जयशंकर ने कहा भी ऐसे ही कुछ संकेत दिए हैं। उन्होंने कहा कि 'मुझे लगता है कि भारत सरकार पहले से ही स्पष्ट है कि इस अनौपचारिक शिखर सम्मेलन का उद्देश्य विशिष्ट लक्ष्यों को प्राप्त करना नहीं बल्कि रिश्तों को बेहतर बनाना है।'उन्होंने कहा कि जिनपिंग की भारत यात्रा में व्यापार संबंधों पर ठोस चर्चा होने की संभावना नहीं है। जयशंकर ने सालों से भारतीय अधिकारियों द्वारा प्रतिबिंबित किए जाने वाले व्यापार घाटे पर प्रकाश डाला जिसमें बाजार पहुंच के मुद्दे भी शामिल हैं। उन्होंने बताया कि कैसे इसने अन्य चीजों को भी प्रभावित किया है, जैसे कुछ सामानों पर भारतीय टैरिफ बढ़ाने या क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी के लिए भारत की बातचीत को जटिल बनाना। इस प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौते में चीन और भारत सहित 16 देश शामिल हैं। 'सवाल यह है कि भारत इस घाटे को कम करने के लिए चीन को क्या निर्यात कर सकता है और क्या अन्य कारक प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम हैं? इस तरह के संरचनात्मक बदलावों को छोड़कर, कृषि, फार्मास्यूटिकल्स या अन्य उत्पादों पर मामूली व्यापार रियायतें गहरे घाटे को दूर करने के लिए काफी नहीं है।
गौरतलब हैं कि भारत-चीन के संबंधों पर प्रतिक्रिया देते हुए ओआरएफ के निदेशक ने जोर देते हुए कहा कि एक पड़ोसी होने के नाते पाकिस्तान की कम्युनिस्ट देश चीन पर बढ़ती निर्भरता चिंता का विषय है। जिसका भारत के लिए प्रतिकूल रणनीतिक निहितार्थ हो सकते हैं। बता दें भारत ने बुधवार को उन रिपोर्ट्स पर अपनी प्रतिक्रिया दी थी जिसमें कहा गया था कि इमरान खान और शी जिनपिंग ने कश्मीर मुद्दे पर बातचीत की है। भारत ने कहा, 'चीन हमारी स्थिति से अच्छी तरह वाकिफ है। किसी भी अन्य देश को भारत के आंतरिक मामलों पर प्रतिक्रिया नहीं करनी चाहिए।' विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा, हमने उन रिपोर्ट्स को देखा है जिसमें पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की बैठक को लेकर लिखा गया है। साथ ही जिसमें कहा गया है उन्होंने कश्मीर पर चर्चा की। गौर करने वाली बात हैं कि पाक प्रधानमंत्री इमरान खान पीएम कुर्सी संभालने के बाद एक साल के अंदर तीसरी बार चीन पहुंचे थे और उन्होंने फिर वहां कश्नीर राग को अलापा।
चीन का स्वार्थ
चीन का भारत के प्रति रवैया हमेशा से ही 'कभी प्रेम और कभी घृणा' का रहा है। चीन को जब भारत की जरूरत होती है तब वह भारत का सगा बन जाता हैं और जब जरुरत नहीं होती तो वह पाकिस्तान के साथ मिलकर भारत के खिलाफ साजिश रचता हैं। कि इमरान खान और चिनफिंग के बीच मुलाकात के बाद भले ही चीन ने तीखे बयान दिए हों, लेकिन अमेरिकी ट्रेड वॉर की आंच से झुलस रहे चीन को भारत की सख्त जरूरत है। चीन की पूरी कोशिश होगी कि न केवल भारत के साथ उसका मौजूदा व्यापार बना रहे बल्कि अमेरिका के साथ व्यापार में आ रही गिरावट की भरपाई वह भारत से कर ले। इसी मकसद से शी चिनफिंग भारत आ रहे हैं। चीन भारत को 'बेल्ट ऐंड रोड परियोजना' से जोड़ना चाहता है, लेकिन इसे भारत ने 'औपनिवेशिक' मानसिकता से भरा कदम बताया है। यह शी चिनफिंग का ड्रीम प्रॉजेक्ट है और अरबों डॉलर की इस परियोजना के पूरा होने पर चीन पूरी तरह से बदल जाएगा। वह सॉफ्ट पावर के क्षेत्र में दुनिया की बड़ी शक्ति बन जाएगा। भारत चीन की चाइना-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर प्रॉजेक्ट (सीपेक) का भी विरोध कर रहा है जो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होकर जाती है।
वुहान के बाद भी भारत-चीन के संबंध में नहीं आया बदलाव
विशेषज्ञ मानते हैं कि वुहान शिखर बैठक के बाद भारत-चीन संबंधों में कोई खास बदलाव नहीं आया है। हालांकि दोनों देशों के बीच कोई बड़ा सैन्य गतिरोध नहीं हुआ है। चीन की सेना की घुसपैठ में भी तो कमी आई है, लेकिन वुहान के बाद चीन के स्वभाव में कोई खास बदलाव नहीं आया है। आतंकी अजहर मसूद पर चीन का रुख काफी समय बाद बदला। एफएटीएफ में चीन पाकिस्तान का समर्थन कर रहा है। इमरान खान कश्मीर के साथ एफटीएएफ की ग्रे लिस्ट से पाकिस्तान को बाहर कराने के लिए चीन से मदद मांगने गए थे। एफटीएएफ का अध्यक्ष अब चीन का होने जा रहा है। यही नहीं चीन पाकिस्तान की विदेशी मोर्चे पर मदद लगातार कर रहा है। वुहान से सिर्फ गतिरोध कम हुआ है, लेकिन पाकिस्तान को अलग-थलग करने की भारतीय कोशिश में चीन ने साथ नहीं दिया है, बल्कि उल्टे पाकिस्तान की ही मदद की है। चीन के राष्ट्रपति जम्मू-कश्मीर के मुद्दे को पीएम मोदी के साथ बातचीत के दौरान उठाना चाहते थे और इसीलिए उन्होंने इमरान खान से मुलाकात की थी। हालांकि भारत के सख्त रुख के बाद उन्हें कश्मीर मुद्दे से पीछे हटना पड़ा है।
चीन अपने हित के लिए इन मुद्दो पर कर सकता हैं बात
विदेशी
मामलों
के
जानकार
मानते
हैं
कि
इस
बैठक
के
दौरान
चीन
और
भारत
में
रक्षा
और
क्षेत्रीय
मुद्दे,
व्यापार,
अफगानिस्तान
को
लेकर
बातचीत
होगी।
बेल्ट
ऐंड
रोड
इनिशटिव
(बीआरआई)
पर
भी
बातचीत
हो
सकती
है।
बेल्ट
ऐंड
रोड
इनिशटिव
(बीआरआई)
पर
भी
बातचीत
हो
सकती
है।
डोकलाम
विवाद
के
बाद
चीन
को
यह
समझा
आ
गई
कि
भारत
के
साथ
संघर्ष
ठीक
नहीं
है।
भारत
अमेरिका,
ऑस्ट्रेलिया,
जापान
के
साथ
क्वॉड
का
सदस्य
है।
अगर
यह
सैन्य
संगठन
बनता
है
और
भारत
इसमें
शामिल
होता
है
तो
चीन
के
लिए
मुश्किल
हो
जाएगी।
भारत
ने
अभी
सैन्य
गठजोड़
में
शामिल
होने
से
इनकार
किया
है।
भारत
और
चीन
के
बीच
करीब
100
अरब
डॉलर
का
व्यापार
होता
है
और
यह
चीन
के
हित
में
है।
अब
कई
क्षेत्रों
में
भारत
चीन
के
बाजार
में
प्रवेश
कर
रहा
है।
अमेरिका
के
साथ
ट्रेड
वॉर
से
चीन
का
बहुत
ज्यादा
नुकसान
हो
रहा
है
और
भारत
भी
इससे
अछूता
नहीं
है।
इस
मुद्दे
पर
दोनों
देश
साथ
आ
सकते
हैं।
तमिलनाडु के ममल्लापुरम में पीएम मोदी करेंगे जिनपिंग से मुलाकात, खास है इसका चीन से रिश्ता