झारखंड में कोई सीएम नहीं तोड़ सका है ये मिथक, जानिए सच
झारखंड की राजनीति में सीएम पद को लेकर एक मिथक हैं कि कोई भी नेता मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए चुनाव नहीं जीत सकता। मुख्यमंत्री रघुवर दास 2019 विधानसभा चुनाव में यह मिथक को तोड़ नहीं सके वो भी चुनाव हार गए। जानिए 19 सालों का इतिहास History of Jharkhand No Chief Minister won the election again
बेंगलुरु। झारखंड में हेमंत सोरेन की अगुवाई वाले झामुमो, कांग्रेस और राजद के महागठबंधन ने राज्य विधानसभा चुनावों में धमाकेदार जीत दर्ज की है। 81 सदस्यीय विधानसभा में जहां महागठबंधन ने बहुमत से ज्यादा 47 सीटें जीतीं, वहीं सत्तारूढ़ भाजपा को सिर्फ 25 सीटों से ही संतोष करना पड़ा। चुनावों में भाजपा का 65 सीटें जीतने का अभियान ध्वस्त हो गया। चुनाव में मुख्यमंत्री रघुवर दास समेत भाजपा के 5 मंत्री हार गए। झारखंड के बनने के 19 साल के इतिहास में कोई भी सत्तारूढ़ पार्टी सत्ता में वापसी नहीं कर पाई है। इतना ही नहीं झारखंड चुनाव 2019 में भी राज्य की सत्ता को लेकर एक जो अंधविश्वास है वो भी नहीं टूट पाया।
बता दें झारखंड के गठन के बाद से यहां यह मिथक है कि मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए यहां जिस नेता ने चुनाव लड़ा वह कभी नहीं जीता। जिसका ताजा उदाहरण मुख्यमंत्री रघुवर दास की हार है। रघुवर दास भी इस तिलिस्म को तोड़ने में कामयाब नहीं हुए। लगातार पांच बार से चुनाव जीत रहे रघुवर दास ने इस बार पहली बार मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए चुनाव लड़ा और वह निर्दलीय उम्मीदवार से हार गए।
ये भी हार चुके हैं चुनाव
गौरतलत है कि झारखंड राज्य का गठन हुए पूरे 19 वर्ष हो चुके हैं। जब 15 नवंबर 2000 को झारखंड का गठन हुआ था तो उस समय अविभाजित बिहार के विधानसभा चुनाव में जीते सदस्यों के सहारे ही झारखंड की पहली विधानसभा का गठन हुआ था। तब से लेकर अब तक 3 बार विधानसभा चुनाव हुए और राजनीतिक अस्थिरता के चलते इस दौरान झारखंड में 6 राजनेताओं ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली। इस बार चौथी बार झारखंड विधानसभा के लिए चुनाव हुए।
रघुवर दास की हार के बाद और पक्का हुआ ये अंधविश्वास
रघुवर दास से पहले झारखंड के सभी पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, शिबू सोरेन, मधू कोड़ा, हेमंत सोरेन विधानसभा चुनाव हार चुके हैं। 2019 में मुख्यमंत्री सीएम रघुवर दास के सामने यह चुनौती थी कि इस अंधविश्वास पर विराम लगा पाते है या नहीं ? लेकिन वह भी इस मिथक को तोड़ने में नाकामयाब रहे। रघुवर दास न सिर्फ राज्य के पहले गैर-आदिवासी मुख्यमंत्री हैं, बल्कि वह राज्य के वह पहले मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया है।
जनता ने हर चुनाव में सीएम को हार का स्वाद चखाया
यही कारण था कि भाजपा शीर्ष ने रघुवर दास पर इस चुनाव में दांव लगाया था लेकिन वह भाजपा को इसमें बुरी तरह हार मिली। झारखंड में जनता का सीएम के प्रति व्यवहार ऐसा ही रहा जो भी सीएम की कुर्सी पर विराजमान रहा, उसे कभी न कभी चुनाव में जनता ने हार का स्वाद चखाया है। अब तक राज्य का कोई भी सीएम इस रिकॉर्ड को तोड़ नहीं पाया है। बता दें यही रघुवर दास 2014 में वे जमशेदपुर पूर्व सीट से लगभग 70 हजार वोटों से विधानसभा चुनाव जीते थे
शिबू सोरेन
27 अगस्त 2008 को मधु कोड़ा ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था इसके बाद तत्कालीन जेएमएम सुप्रीमो शिबू सोरेन राज्य के सीएम बने। मुख्यमंत्री शिबू सोरेन ने इस पद पर रहते हुए तमाड़ सीट से उपचुनाव लड़े क्योंकि इस पद पर बने रहते के लिए उन्हें 6 महीने में विधानसभा का सदस्य बनना था। लेकिन वह यह उपचुनाव झारखंड पार्टी के प्रस्याशी राजा पीटर से 8,973 वोट से हार गए थे। चुनाव हारने के बाद शिबू सोरेन को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा।
बाबूलाल मरांडी
2014 विधानसभा चुनाव झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्रियों के लिए आपदा जैसा रहा। इस वर्ष बीजेपी, जेवीएम, जेएमएम और जेबीएसपी पार्टी के चार पूर्व सीएम चुनाव हार गए। वर्ष 2014 विधानसभा चुनाव में झारखंड के पहले सीएम बाबूलाल मरांडी दो सीटों पर चुनाव लड़े। उनमें पहली सीट राजधनवार और दूसरी गिरिडीह थी। लेकिन वह दोनों सीटों पर वह हार गए। गिरीडीह से बीजेपी प्रत्याशी निर्भय शाहाबादी ने बाबूलाल मरांडी को 30 हजार 980 मतों से हराया, वहीं मरांडी दूसरे विधानसभा सीट राजधनवार से माले के प्रत्याशी राजकुमार यादव से 10 हजार 712 वोटों के अंतर से हारे।
अर्जुन मुंडा
वर्ष 2014 में तीन बार मुख्यमंत्री रहे केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा भी खरसावां सीट से चुनाव हार गए थे।अर्जुन मुंडा को झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रत्याशी दशरथ गागराई ने 11 हजार 966 मतों से हराया था. दशरथ गागराई को 72002 मत मिले तो अर्जुन मुंडा को 60036 वोट हासिल हुए।
मधु कोड़ा
वर्ष 2014 में ही पूर्व मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए मधु कोड़ा भी चाईबासा के मझगांव विधानसभा सीट से हारे। बता दें इस चुनाव में जय भारत समानता पार्टी से चुनावी मैदान में उतरे थे। लेकिन उन्हें हार मिली। मधु कोड़ा को झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रत्याशी नीरल पूर्ति ने 11, 710 मतों से हराया था।
हेमंत सोरेन
वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव के दौरान झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो- जेएमएम) के हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री थे। इस समय में झामुमो, कांग्रेस और आरजेडी के गठबंधन की सरकार चल रही थी। 2014 विधानसभा चुनाव में हेमंत दो विधानसभा सीट दुमका और बरहेट से झामुमो प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतरे थे। हेमंत बरहेट सीट से तो चुनाव जीत गए, लेकिन दुमका सीट से उन्हें बीजेपी के उम्मीदवार डॉ. लुइस मरांडी ने हरा दिया। जेएमएम के कार्यकारी अध्यक्ष को झारखंड का मुख्यमंत्री रहते हुए हार का मुंह देखना पड़ा। हेमंत सोरेन इस बार एक बार फिर इन्हीं दी सीटों से अपना भाग्य आजमाया और दोनों ही सीटों पर जबरदस्त जीत हासिल की।
रघुवर दास
झारखंड 2019 में 24 सालों से जमशेदपुर पूर्व सीट से विधायक और राज्य के मौजूदा सीएम रघुवर दास को निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव लड़ने वाले सरयू राय ने हरा दिया है। इस बार के चुनाव रघुवर दास को 58112 वोट मिले जबकि उनको मात देने वाले सरयू राय को 73945 वोट मिले है।
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