झारखंड: आधे लोगों को नहीं मिला लॉकडाउन का पूरा राशन, सीएम हेमंत सोरेन के गृह जिले का भी बुरा हाल
नई दिल्ली- झारखंड सरकार के ग्रामीण विकास विभाग के अधीन सोशल ऑडिट यूनिट ने लॉकडाउन के दौरान खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम के तहत जारी किए गए राशनों के वितरण में बहुत बड़ी गड़बड़ी पकड़ी है। इसकी रिपोर्ट में कहा गया कि लगभग आधे हकदारों को उनका वाजिब राशन दिया ही नहीं गया है। सबसे बड़ी बात ये है कि जिन जिलों में ज्यादातर जरूरतमंदों को इन सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने से वंचित रख दिया गया है, उनमें मुख्यमंत्री हेमंत सोरोन का गृह जिला दुमका भी शामिल है, जहां से वह विधानसभा चुनाव भी जीते थे। राज्य सरकार ने इस ऑडिट यूनिट की शुरुआत सरकारी कार्यक्रमों के लागू करने में पारदर्शिता और जिम्मेदारी को बढ़ावा देने के लिए किया गया है
झारखंड: आधे लोगों को नहीं मिला लॉकडाउन का पूरा राशन
झारखंड में राज्य सरकार के वादे के मुताबिक लगभग आधे यानि 48 फीसदी लोगों को लॉकडाउन की अवधि का पूरा राशन नहीं मिला है। ये खुलासा राज्य सरकार के ग्रामीण विकास विभाग के सोशल ऑडिट यूनिट की जांच में हुआ है। इस यूनिट का गठन सरकारी कार्यक्रमों को लागू करने में पारदर्शिता और जिम्मेदारी को बढ़ावा देने के लिए किया गया है। ये ऑडिट 27 अप्रैल और 7 मई के बीच राज्य के 23 जिलों और 254 ब्लॉकों में किया गया। इसमें 4,428 परिवारों को शामिल किया गया, जो तीन तरह के खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों के हकदार हैं- जन-वितरण प्रणाली, समेकित बाल विकास सेवाएं या आंगनवाड़ी केंद्र और मिडडे मील योजना। यह रिपोर्ट संबंधित विभागों को बीते गुरुवार को सौंपी गई है। बता दें कि कुछ पीडीएस डीलरों के खिलाफ अनाज वितरण में हेराफेरी के आरोपों के तहत पहले ही एक एफआईआर दर्ज की गई थी।
दुमका में 65.2 % परिवारों को नहीं मिला पूरा राशन
रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी के अलावा, 'प्रवासी कामगार और अन्य कमजोर समुदायों के लिए भूख सबसे बड़ी सामुदायिक समस्या है।' रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि 'झारखंड की बहुत बड़ी आबादी गरीबी से प्रभावित है।' लेकिन, रिपोर्ट ने सरकार के दावों की सबसे बड़ी पोल ये खोली है कि लगभग आधे लाभार्थियों को इन योजनाओं का पूरा लाभ नहीं मिला है। मसलन, रिपोर्ट में कहा गया है, 'जिन 2062 लाभार्थियों को 2 या उससे ज्यादा महीने का राशन मिला है, उन्होंने कहा है कि राशन की मात्रा प्रावधानों के मुताबिक ही दिया गया है, जबकि 1898 लोगों (48%) ने कहा कि उन्हें प्रावधानों के मुताबिक तय मात्रा में राशन नहीं मिला। ' सबसे बड़ी बात ये है कि जिन जिलों के लोगों को कम मात्रा में राशन मिलने की बात सामने आई है, उसमें मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का गृह जिला दुमका भी शामिल है। सोशल ऑडिट यूनिट रिपोर्ट के मुताबिक जामताड़ा में 91.9 फीसदी परिवारों को, पलामू में 73.4 फीसदी परिवारों और दुमका में 65.2 फीसदी परिवार को दो महीनों या उससे ज्यादा से सही मात्रा में राशन नहीं दिया गया है।
कमजोरों पर और ज्यादा मार
रिपोर्ट ये भी बताती है कि लॉकडाउन के दौरान गर्भवती/ स्तनपान कराने वाली महिलाओं या 5 साल कम के जो बच्चे आंगनवाड़ी की सहायता के पात्र हैं, उनमें से जिन 1,255 परिवारों के छानबीन की गई, सिर्फ 1,086 परिवारों को ही फायदा पहुंचा और उनमें से भी 34 फीसदी (369) को पोषक तत्व नहीं उपलब्ध कराए गए हैं। जबकि, 717 परिवारों को इसका लाभ मिला। इसके अलावा मिडडे मील के तहत जो 1,767 पात्र परिवारों में से करीब 20 फीसदी तक लाभ नहीं पहुंच सका। वैसे सोशल ऑडिट यूनिट के प्रदेश संयोजक गुरजीत सिंह का कहना है कि, 'हालांकि खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों के ज्यादातर योग्य परिवारों को लाभ मिल रहा है, लेकिन जिन कुछ कम प्रतिशत लोगों को नहीं मिल रहा है वो शायद सबसे कमजोर तबका है।' बता दें कि झारखंड में अप्रैल में दोगुना राशन बांटा गया है, जिसमें मई का भी राशन शामिल था। इसके तहत अंत्योदय आय योजना के कार्ड होल्डर 70 किलो चावल पाने के हकदार थे। जबकि प्रायोरिटी हाउसहोल्ड कार्ड के तहत 5 किलो अनाज के योग्य व्यक्तियों को दोगुना अनाज मिलना था। (तस्वीरें प्रतीकात्मक)
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