सांसद बनने चले पांच विधायकों की खुल गई पोल, अपने ही इलाके में पिछड़े
नई दिल्ली। झारखंड में विपक्ष के पांच विधायकों ने 17वीं लोकसभा में प्रवेश करने की कोशिश की, लेकिन मोदी की सुनामी में वे सभी विफल हो गये। इनमें झाविमो के प्रदीप यादव, कांग्रेस के सुखदेव भगत, झामुमो के चंपई सोरेन और जगरनाथ महतो तथा भाकपा माले के राजकुमार यादव शामिल हैं। इन विधायकों के साथ सबसे बड़ी विडंबना यह रही कि ये सांसद तो नहीं ही बन सके, अपनी विधानसभा सीट से भी बहुत बड़े अंतर से पिछड़ गये। राज्य में इसी साल विधानसभा का चुनाव भी होना है। ऐसे में इन विधायकों के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती अपनी सीट बचाने की है। लोकसभा चुनाव में जब ये विधायक उतरे थे, तब इन्हें इस बात का भरोसा था कि उनके अपने विधानसभा क्षेत्र में तो उन्हें कुछ करने की जरूरत नहीं है। शायद यही अति आत्मविश्वास उन्हें ले डूबा और जब परिणाम घोषित हुआ, तो ये चारों विधायक चारों खाने चित हो गये। अब जबकि विधानसभा चुनाव की आहट मिलने लगी है, इन विधायकों को अपनी राजनीतिक जमीन बचाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। लोकसभा चुनाव परिणाम का सीधा-सीधा राजनीतिक मतलब यह है कि इन विधायकों की इनके ही क्षेत्र में लोकप्रियता बेहद कम हो चुकी है। बता दें कि राज्य के केवल दो विधायक, गीता कोड़ा और चंद्रप्रकाश चौधरी ही सांसद बनने में कामयाब हो सके।
पोड़ैयाहाट से विधायक हैं प्रदीप यादव
प्रदीप यादव पोड़ैयाहाट से विधायक हैं और इस बार गोड्डा संसदीय सीट से मैदान में उतरे थे। सुखदेव भगत लोहरदगा से विधायक हैं और इसी संसदीय सीट से उम्मीदवार थे। चंपई सोरेन सरायकेला से विधायक हैं और जमशेदपुर संसदीय सीट से प्रत्याशी थे, जबकि डुमरी के विधायक जगरनाथ महतो ने गिरिडीह सीट से किस्मत आजमायी थी। प्रदीप यादव 2014 के विधानसभा चुनाव में वह पोड़ैयाहाट से विधायक चुने गये थे। उन्हें 73 हजार 859 वोट मिले थे। इस बार के लोकसभा चुनाव में महागठबंधन के तहत झाविमो ने गोड्डा सीट पर दावेदारी की और उसके कोटे में यह सीट आ गयी। प्रदीप यादव अपनी पार्टी की ओर से भाजपा के निशिकांत दुबे के खिलाफ मैदान में उतरे और डेढ़ लाख के अधिक मतों के अंतर से हार गये। लोकसभा चुनाव में उन्हें अपने विधानसभा क्षेत्र से 78 हजार 277 वोट मिले, जबकि निशिकांत दुबे को 90 हजार 841 वोट हासिल हुए। इस तरह अपने ही विधानसभा क्षेत्र से प्रदीप यादव 22 हजार से अधिक वोट से पिछड़ गये।
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सुखदेव भगत भी अपने विधानसभा क्षेत्र में पिछड़े
इसी तरह लोहरदगा संसदीय सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़नेवाले सुखदेव भगत भी अपने विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के प्रत्याशी सुदर्शन भगत से करीब 12 हजार मतों से पिछड़ गये। सुखदेव भगत को यहां से 68 हजार 577 वोट मिले, जबकि सुखदेव भगत ने 80 हजार 698 वोट हासिल कर लिये। सुखदेव भगत को लोहरदगा विधानसभा क्षेत्र में हुए उपचुनाव में 64 हजार 36 वोट मिले थे।
डुमरी के झामुमो विधायक भी रहे पीछे
गिरिडीह संसदीय सीट के रास्ते लोकसभा तक पहुंचने की कोशिश करनेवाले डुमरी के झामुमो विधायक के साथ भी ऐसा ही हुआ। वह आजसू प्रत्याशी चंद्रप्रकाश चौधरी को चुनौती देने मैदान में उतरे थे और ढाई लाख से अधिक मतों के अंतर से चुनाव हार गये। डुमरी विधानसभा क्षेत्र से उन्हें 71 हजार 173 वोट मिले, जबकि आजसू प्रत्याशी को एक लाख आठ हजार 877 वोट हासिल हुए। विधानसभा के पिछले चुनाव में जगरनाथ महतो को 77 हजार 984 वोट मिले थे। इस तरह देखा जाये, तो पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले इस बार उन्हें कम वोट मिले।
झामुमो के चंपई सोरेन भी मोदी लहर में हारे चुनाव
झामुमो ने जमशेदपुर संसदीय सीट से भाजपा के विद्युत वरण महतो को चुनौती देने के लिए सरायकेला के अपने विधायक चंपई सोरेन को मैदान में उतारा था, लेकिन मोदी की सुनामी में वह तीन लाख से अधिक वोटों के अंतर से चुनाव हार गये। सरायकेला विधानसभा क्षेत्र सिंहभूम संसदीय क्षेत्र के तहत आता है और यहां से चंपई सोरेन महागठबंधन की कांग्रेस प्रत्याशी गीता कोड़ा को 77 हजार 644 वोट ही दिला सके। विधानसभा के पिछले चुनाव में चंपई सोरेन को 94 हजार 746 वोट मिले थे। इस तरह वह भी पिछली बार की तुलना में इस बार कम वोट ही पा सके।
भाकपा माले विधायक राजकुमार यादव भी बड़े अंतर से हारे
धनवार के भाकपा माले विधायक राजकुमार यादव कोडरमा संसदीय सीट से चुनाव मैदान में थे और मुकाबले को तिकोना बना रहे थे। उनका मुकाबला भाजपा की अन्नपूर्णा देवी और झाविमो के बाबूलाल मरांडी से था। भाजपा प्रत्याशी ने यहां से साढ़े चार लाख से अधिक वोटों के अंतर से जीत हासिल की। राजकुमार यादव तीसरे स्थान पर रहे। धनवार विधानसभा क्षेत्र से उन्हें पिछली बार 50 हजार 634 वोट मिले थे, जबकि इस बार उन्हें पूरे कोडरमा संसदीय सीट से 68 हजार 207 मत मिले। इन नतीजों से साफ हो जाता है कि इन विधायकों ने अपने ही विधानसभा क्षेत्र में जनता की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे हैं और इसलिए मतदाताओं ने उन्हें सुधरने का चेतावनी भरा संकेत दे दिया है। यदि अब भी इन्होंने इस संकेत को नहीं समझा, तो आनेवाले विधानसभा चुनाव में इन्हें परेशानी हो सकती है।