झारखंड: 14 सीटों पर आजसू का भाजपा से 36 का आंकड़ा, बिन सुदेश कैसे होगी रघुवर की वापसी?
नई दिल्ली। झारखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा और आजसू 14 सीटों पर एक दूसरे को टक्कर दे रहे हैं। दोनों दलों का गठबंधन टूट गया है। आजसू ने अभी तक 19 सीटों पर प्रत्याशी दिये हैं जिनमें 14 पर भाजपा के भी उम्मीदवार हैं। यानी आजसू ने अधिकतर उन्ही सीटों पर उम्मीदवार दिये हैं जहां भाजपा पहले से खड़ी है। आजसू की चुनौती से भाजपा को नुकसान की आशंका जतायी जा रही है। आजसू ने 26 सीटों पर लड़ने की बात कही है। गठबंधन टूटने से भाजपा का हस्र क्या होगा ? कैसे होगी रघुवर की वापसी ? '65 पार' का भाजपाई नारा कैसे बदलेगा हकीकत में ? 2014 में भाजपा ने आजसू से गठबंधन कर के ही 37 का अपना हाईएस्ट स्कोर बनाया था। अब जो भी करना होगा, भाजपा को अपने दम पर करना होगा। वैसे भाजपा के झारखंड चुनाव प्रभारी ओम माथुर बड़ा रणनीतिकार माना जाता है। उन्होंने दावा किया है कि आज तक उनकी चुनावी रणनीति कभी फेल नहीं हुई है। क्या भाजपा के नेता अतिआत्मविश्वास में ऐसा बोल रहे हैं ?
14 सीटों पर भाजपा – आजसू में टकराव
हटिया - आजसू से भरत काशी साहू, भाजपा से नवीन जायसवाल
घाटशिला - आजसू से प्रदीप बलमुचू, भाजपा से लखन मार्डी
मंझगांव - आजसू से नंदलाल बिरुआ, भाजपा से भूषण पथ पिंगला
ईचागढ़ - आजसू से हरेलाल महतो, भाजपा से साधु चरण महतो
पोटका - आजसू से बुलू रानी सिंह, भाजपा से मेनका सरदार
मांडर - आजसू से हेमलता उरांव, भाजपा से देव कुमार धान
चक्रधरपुर - आजसू से रामलाल मुंडा, भाजपा से लक्ष्मण गिलुआ
सिंदरी - आजसू से सदानंद महतो, भाजपा से इंद्रजीत महतो
मांडू - आजसू के तिवारी महतो, भाजपा से जयप्रकाश भाई पटेल
छतरपुर - आजसू से राधाकृष्ण किशोर, भाजपा से पुष्पा देवी
चंदनकियारी - आजसू से उमाकांत रजक, भाजपा से अमर कुमार बाउरी
सिमरिया - आजसू से मनोज चंद्रा, भाजपा से किशुन कुमार दास
लोहरदगा - आजसू से नीरू शांति भगत, भाजपा से सुखदेव भगत
हुसैनाबाद - आजसू से कुशवाहा शिवपूजन मेहता, भाजपा समर्थित विनोद सिंह
लोकसभा चुनाव में जीत से बढ़ा आजसू का हौसला
2019 के लोकसभा चुनाव में आजसू के चंद्रप्रकाश चौधरी ने गिरिडीह से जीत हासिल की थी। भाजपा ने दरियादिली दिखाते हुए अपने सीटिंग सांसद रवीन्द्र पांडेय का टिकट काट कर आजसू को ये सीट दी थी। आजसू ने मोदी लहर में पहली बार लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की। इस जीत से आजसू को बहुत ताकत मिली। इसके पहले पांच चुनावों में उसे मुंह की खानी पड़ी थी और पार्टी में निराशा छा गयी थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में आजसू अध्यक्ष सुदेश महतो ने रांची से चुनाव लड़ा था लेकिन हार गये थे। तब उनका भाजपा से मेल नहीं हुआ था। लेकिन 2019 में भाजपा के सहयोग से आजसू को जीत मिली। इसके बाद आजसू ने अपने संगठन को मजबूत बनाने पर जोर दिया। क्षेत्रीय दल होने की वजह से आजसू खुद का वजूद बनाना चाहता है। वह भाजपा का सेटेलाइट बन कर नहीं रहना चाहता। विधानसभा चुनाव में 19 सीटों पर लड़ने की जिद भी इस नीति का हिस्सा थी।
हार से निराश था आजसू
पिछले पांच चुनावों में हार से आजसू में हताशा थी। 2014 में जब विधानसभा के चुनाव हुए तो सुदेश महतो अपने गढ़ सिल्ली में हार गये। रघुवर सरकार में शामिल होने के बाद आजसू ने सिल्ली, गोमिया और लातेहार का उपचुनाव लड़ा जिसमें उसे हार का सामना करना पड़ा। सिल्ली और गोमिया में मई 2018 में उपचुनाव हुआ था। इन दिनो सीटों के झामुमो विधायक आपराधिक मामले में दोषी करार दिये गये थे जिसकी वजह से उनकी सदस्यता खत्म हो गयी थी। सिल्ली में उपचुनाव हुआ तो सुदेश महतो फिर खड़ा हुए। लेकिन इस बार भी उन्हें झामुमो की सीमा महतो ने उन्हें हरा दिया। 2014 में सुदेश, सीमा महतो के पति अमित महतो से हारे थे। गोमिया उपचुनाव में भी झामुमो की बबिता देवी ने आजसू के लम्बोदर महतो का हरा दिया था। यहां भाजपा ने भी चुनाव लड़ा था और भाजपा के प्रत्याशी माधवलाल सिंह तीसरे स्थान पर रहे थे। सुदेश महतो की दोबारा हार से आजसू की प्रतिष्ठा धूल में मिल गयी थी। गोमिया में उसे भाजपा की वजह से हार झेलनी पड़ी।
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भाजपा से दबना नहीं चाहता आजसू
दिसम्बर 2015 में लोहरदगा में उपचुनाव हुआ था। यहां के आजसू विधायक कमल किशोर भगत एक आपराधिक मामले में सजायाफ्ता होने की वजह से सदस्यता गंवा बैठे थे। इसकी वजह से उपचुनाव कराना पड़ा था। आजसू ने उपचुनाव में कमल किशोर का पत्नी नीरू शांति भगत को खड़ा किया था। कांग्रेस के सुखदेव भगत ने नीरू शांति को करीब साढ़े सात हजार वोटों से हरा दिया था। आजसू को अपनी सीट गंवानी पड़ी थी। विधानसभा के तीन उपचुनावों में हार से आजसू को गहरा धक्का लगा था। भाजपा भी आजसू को कमजोर समझने लगी थी। 2019 के विधानसभा चुनाव में आजसू भाजपा से दबना नहीं चाहता था। पिछले एक साल में उसने अपने संगठन को मजबूत बनाने के लिए बहुत मेहनत की है। आजसू का जनाधार बढ़ा है। यही कारण है कि दल बदलने वाले बड़े नेताओं के लिए आजसू पहली पसंद बन गया है। आजसू को भी बैठे-बिठाये मजबूत उम्मीदवार मिल रहे हैं जिससे उसने अपनी सीटों का दायरा बढ़ा दिया है।
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