झारखंड चुनाव: मुसलमान 15 फ़ीसदी फिर भी इतने उपेक्षित क्यों
झारखंड में पहला विधानसभा चुनाव 2005 में हुआ. इस विधानसभा चुनाव में केवल दो मुसलमान विधायक बने. दूसरा विधानसभा चुनाव 2009 में हुआ और इसमें सबसे ज़्यादा पाँच मुसलमान विधायक चुने गए. 2009 में झारखंड का विधानसभा चुनाव बहुकोणीय हुआ था और इसका फ़ायदा मुस्लिम प्रत्याशियों को मिला था. इन पाँच में से दो कांग्रेस
झारखंड में पहला विधानसभा चुनाव 2005 में हुआ. इस विधानसभा चुनाव में केवल दो मुसलमान विधायक बने. दूसरा विधानसभा चुनाव 2009 में हुआ और इसमें सबसे ज़्यादा पाँच मुसलमान विधायक चुने गए.
2009 में झारखंड का विधानसभा चुनाव बहुकोणीय हुआ था और इसका फ़ायदा मुस्लिम प्रत्याशियों को मिला था. इन पाँच में से दो कांग्रेस, दो झारखंड मुक्ति मोर्चा और एक बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) के थे.
2014 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर से मुसलमानों का प्रतिनिधित्व दो सीटों पर सिमट कर रह गया. आलमगीर आलम और इरफ़ान अंसारी कांग्रेस के टिकट से जीते थे.
2011 की जनगणना के अनुसार झारखंड में मुसलमानों की आबादी 15 फ़ीसदी है लेकिन विधानसभा में इनका प्रतिनिधित्व न के बराबर रहता है.
संथाल परगना के देवघर, गोड्डा, जामताड़ा, साहेबगंज और पाकुड़ के अलावा लोहरदगा और गिरिडीह में मुसलमानों की आबादी सबसे ज़्यादा है. साहेबगंज और पाकुड़ में मुसलमान कुल आबादी के 30 फ़ीसदी हैं जबकि देवघर, गोड्डा, जामताड़ा, लोहरदगा और गिरिडीह ज़िले में मुसलमानों की आबादी 20 फ़ीसदी है.
राँची में क़रीब 20 फ़ीसदी मुसलमान हैं. गोड्डा एकमात्र लोकसभा सीट है जहां से झारखंड बनने के बाद कोई मुसलमान सांसद बना. 2004 में यहाँ से कांग्रेस के टिकट पर फुरक़ान अंसारी जीते थे. इसके बाद से कोई मुसलमान झारखंड से लोकसभा सांसद नहीं बना.
फुरक़ान अंसारी अविभाजित बिहार में विधायक भी रहे हैं. वो कहते हैं कि जब तक राजनीतिक पार्टियाँ टिकट नहीं देंगी तब तक मुसलमानों का प्रतिनिधित्व नहीं बढ़ेगा.
रघुबर के तर्क, जो गले नहीं उतरता
बीजेपी ने झारखंड में आज तक किसी मुस्लिम प्रत्याशी को टिकट नहीं दिया. झारखंड के मुख्यमंत्री रघुबर दास से जब ये पूछा गया कि प्रदेश में 15 फ़ीसदी मुसलमान हैं और आपकी पार्टी ने किसी भी मुसलमान को झारखंड बनने के बाद से न लोकसभा में और न ही विधानसभा में टिकट नहीं दिया, क्या आप इससे असहज नहीं होते हैं?
उनका जवाब था, "बिल्कुल नहीं. बीजेपी किसी को भी धर्म और जाति के आधार पर टिकट नहीं देती है. बीजेपी उस उम्मीदवार को टिकट देती है जिसमें जीतने की क्षमता होती है."
हालाँकि रघुबर दास को बीजेपी ने जब पहली बार 1995 में जमशेदपुर पूर्वी से उम्मीदवार बनाया था तो उनकी जीतने की क्षमता का अंदाज़ा किसी को नहीं था. बीजेपी के दिग्गज नेता दीनानाथ पांडे को हटाकर रघुबर दास को टिकट मिला था और वो हारते-हारते जीते थे और उसके बाद से रघुबर दास लगातार जीतते रहे.
झारखंड में बीजेपी के लिए किसी व्यक्ति के जीतने की क्षमता से ज़्यादा पार्टी में जीतने की क्षमता होती है. रघुबर दास ने भी बीबीसी से बातचीत में कहा कि वो बीजेपी से अलग होने पर विधायक का चुनाव भी नहीं जीत पाएँगे. ऐसे में किसी मुसलमान को टिकट इस तर्क के आधार पर नहीं देना कि उसमें जीतने की क्षमता नहीं है गले से नहीं उतरता.
रघुबर दास ने ये भी कहा कि उनकी पार्टी ने इस बार तीन ईसाई आदिवासियों को टिकट दिया है. अगर बीजेपी धर्म के आधार पर टिकट नहीं देती है तो इसे उन्होंने अलग से रेखांकित करना ज़रूरी क्यों समझा?
कांग्रेस और जेएमएम क्या कहते हैं
प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता आलोक दुबे का कहना है कि इस बार 31 सीटों पर ही कांग्रेस चुनाव लड़ रही है और इसमें भी कई सीटें आदिवासियों के लिए रिजर्व हैं ऐसे में तीन से ज्यादा गुंजाइश नहीं थी.
उन्होंने कहा कि 2014 में उनकी पार्टी ने छह मुसलमान प्रत्याशी उतारे थे लेकिन दो ही जीत पाए थे. लेकिन वे इस बात से सहमत हूँ कि मुसलमानों का प्रतिनिधित्व बढ़ना चाहिए.
जेएमएम प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य का कहना है कि उनकी पार्टी मुसलमानों को जितना टिकट देती है वो संतोषजनक है.
उन्होंने कहा कि पार्टी को हर सेक्शन को देखना होता है. भट्टाचार्य ने कहा कि पिछले बार पार्टी ने चार टिकट दिए लेकिन कोई मुस्लिम प्रत्याशी नहीं जीत पाया.
नगर निगम में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व बेहतर
राँची यूनिवर्सिटी में उर्दू भाषा और साहित्य के प्रोफ़ेसर रिज़वान अली कहते हैं, "इसे समझने के लिए आपको 1950 में राष्ट्रपति के अध्यादेश को देखना पड़ेगा. तब इस अध्यादेश के तहत संविधान के अनुच्छेद 340 में अनुसूचित जनजाति और अनुच्छेद 341 में अनुसूचित जाति को पारिभाषित किया गया."
"अनुच्छेद 340 और 341 के क्लॉज़ तीन और चार में जोड़ गया कि सिख, बौद्ध और जैन भी एससी और एसटी हो सकते हैं. लेकिन मुसलमानों और ईसाइयों को इससे बाहर रखा गया. लेकिन झारखंड में आदिवासी ईसाई परंपरागत रूप से एसटी सीट पर अब भी चुनाव लड़ते हैं. हालाँकि इस पर भी अब बहस तेज़ हो गई है और संभव है कि आने वाले दिनों में ईसाई धर्म अपनाने वाले आदिवासियों को आरक्षण के अधिकार से बाहर करने की बात ज़ोर पकड़े."
झारखंड में मुसलमानों के प्रतिनिधित्व को लेकर प्रोफ़ेसर रिज़वान कहते हैं, "झारखंड में नगर निगम के स्तर पर मुसलमानों का प्रतिनिधित्व बढ़िया है. राँची नगर निगम में 52 सीटें हैं जिनमें से 12 मुसलमान हैं. ऐसा इसलिए है कि नगर निगम का चुनाव पार्टियों के टिकट पर नहीं लड़ा जाता है. अगर पार्टियों के टिकट पर लड़ा जाता तो यहाँ भी वही स्थिति होती."
"दरअसल, झारखंड में पार्टियों के भीतर उस तरह की संवेदनशीलता नहीं है जबकि बिहार में है. जब झारखंड नहीं बना था तो मुसलमानों का प्रतिनिधित्व ज़्यादा था. बिहार में पंचायत, ज़िला परिषद और बोर्ड निगमों में भी मुसलमान पर्याप्त हैं."
"बिहार में मुसलमानों के राजनीतिक उत्थान में पंचायती राज की अहम भूमिका रही है. वहीं झारखंड में ऐसा नहीं हो पाया. झारखंड में आदिवासियों सीटें बड़ी संख्या में रिज़र्व हैं. जहां आदिवासियों की आबादी 40 फ़ीसदी भी नहीं है वहाँ भी पंचायतों में उनके लिए सीटें रिज़र्व हैं."
ओवैसी फैक्टर
प्रोफ़ेसर रिज़वान अली को लगता है कि मुसलमानों ने अपना नुक़सान धर्म को ज़्यादा प्रमुखता देकर भी किया है. वो कहते हैं, "मुसलमान केंद्र में धर्म को रखते हैं. जब तक ये धर्म से अलग कर राजनीति नहीं करेंगे तब तक अधिकार नहीं मिलेगा. इन्हें ख़ुद को धर्म से डिस्लोकेट करना होगा. यहाँ आदिवासी भी मुसलमान बने हैं लेकिन मुसलमान बनकर ये आदिवासी नहीं रहते."
"मस्जिद में जाकर बाक़ी के मुसलमानों की तरह हो जाते हैं. जो आदिवासी ईसाई बनते हैं वो अपनी जड़ो से उस तरह से नहीं कटते जैसे ये मुसलमान बनने के बाद कटते हैं. ईसाई आदिवासी अपना टाइटल तिर्की, मुंडा और मरांडी नहीं छोड़ते हैं जबकि मुसलमान बनने के बाद ये छोड़ देते हैं और इसका नुक़सान उन्हें उठाना पड़ता है. यह मुस्लिम समाज की एक विडंबना भी है. मुसलमान बनने के बाद इनका संस्कृतीकरण होता है."
इस बार झारखंड में हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने भी 14 सीटों पर अपनी पार्टी के उम्मीदवार उतारे हैं. ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम का निशाना यहाँ की मुस्लिम आबादी है. प्रोफ़ेसर रिज़वान को लगता है कि ओवैसी के कारण झारखंड के मुसलमानों में उग्र दक्षिणपंथी विचारधारा बढ़ेगी और इससे यहाँ के मुसलमानों को ही परेशानी होगी.
रिज़वान कहते हैं, "मुस्लिम लड़के मोटरसाइकिलों में अपने पैसे से तेल भरवाकर ओवैसी को सुनने जा रहे हैं. धर्म के आधार पर मुसलमान गोलबंद होकर अपना अधिकार नहीं पा सकते. ओवैसी ऐसा ही करने की कोशिश कर रहे हैं."
"ओवैसी के कारण मुसलमानों का प्रतिनिधित्व नहीं बढ़ेगा, घट ज़रूर सकता है. मुस्लिम लीडरशीप एक सांप्रदायिक सोच है. इस सोच पर मुसलमान प्रतिनिधित्व हासिल नहीं कर सकते हैं."
झारखंड में एआईएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष हुबान मलिक कहते हैं कि हर पार्टी ने झारखंड में मुसलमानों की उपेक्षा की है इसलिए ख़ालीपन को भरने के लिए दस्तक ज़रूरी थी.
वो कहते हैं, "मुसलमानों का वोट कोई बिरयानी नहीं है कि बाँट कर खा लो. हम तो पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं. अगर हमलोग की वजह से बीजेपी को फ़ायदा मिलेगा तो पहले किससे फ़ायदा मिलता था?"
मुस्लिम बहुल इलाक़ों का जोड़-घटाव
झारखंड में मुसलमानों के प्रतिनिधत्व के सवाल पर राँची से प्रकाशित होने वाला उर्दू दैनिक रोज़नामा अलहयात के संपादक मोहम्मद रहमतुल्लाह कहते हैं, ''झारखंड पाँच कमिश्नरी में बँटा हुआ है और सबके अपने मसले हैं. दक्षिणी छोटानागपुर में क़रीब 20 लाख मुस्लिम आबादी है."
"हैरान करने वाली बात ये लोहरदग्गा में जहां 23 फ़ीसदी मुस्लिम आबादी है, गुमला में 13 फ़ीसदी, शिमडेगा में आठ फ़ीसदी, खूँटी में छह फ़ीसदी और राँची में 20 फ़ीसदी मुस्लिम आबादी है. लेकिन यहाँ की सीटें आदिवासियों और अनुसूचित जातियों के लिए रिज़र्व हैं. इनमें केवल राँची और हटिया ही रिज़र्व सीट नहीं है."
"दक्षिणी छोटानागपुर में 20 लाख मुस्लिम आबादी आज़ादी के बाद से ही बहरी और गूँगी है. इनकी आवाज़ उठाने वाला कोई नहीं है. आज तक उनकी आवाज़ कोई नहीं बन पाया. वो आज तक मेयर नहीं बन पाए. झारखंड बनने के बाद से महज़ तीन मंत्री बने लेकिन उनसे भी कोई फ़ायदा नहीं हुआ. मुसलमानों में आत्ममंथन का दौर चल रहा है इसीलिए ओवैसी घुसने में कामयाब रहे हैं."
झारखंड में मुसलमानों के बीच ओवैसी की मौजूदगी बढ़ रही है. राँची के हरमू में एक मुस्लिम महिला से पूछा कि झारखंड के मुख्यमंत्री कौन हैं तो उनका जवाब था ओवौसी साहब.
उनसे पूछा कि ओवैसी का नाम कहां सुना, तो उन्होंने कहा, "घर में टीवी और मोबाइल पर उनका भाषण सुनती हूँ."
इस बार कांग्रेस और जेएमएम ने तीन और बाबूलाल मरांडी की पार्टी जेवीएम ने छह मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है.
बाबूलाल मरांडी से पूछा कि अगर वो अपनी पुरानी पार्टी बीजेपी में होते तब भी छह मुसलमान प्रत्याशी उतारते?
इस सवाल के जवाब में मरांडी ने मुस्कुराते हुए कहा, "इसीलिए तो बीजेपी को छोड़ अलग पार्टी बनाई. ज़ाहिर सी बात है नहीं दे पाता. इन्हें दूसरे मज़हब के लोगों से डर लगता है. अरे आपका धर्म इतना कमज़ोर है? डरते क्यों हो भाई?"