झारखंड चुनाव : 50 सीटों पर वोटिंग के बाद ही होने लगे बहुमत के दावे, कौन बनेगा मुख्यमंत्री ?
नई दिल्ली। झारखंड में तीन तरणों के चुनाव सम्पन्न हो गये हैं। 81 में से 50 सीटों पर उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में कैद हो चुकी है। 31 सीटों पर चुनाव अभी बाकी है। 16 दिसम्बर को 15 सीटों पर और 20 दिसम्बर को 16 सीटों पर वोटिंग होगी। फाइनल रिजल्ट निकलने में भी 9 दिन बाकी हैं। लेकिन अभी से ही राजनीति दल अपनी-अपनी जीत के दावे करने लगे हैं। झारखंड मुक्ति मोर्चा का कहना है कि महागठबंधन को 50 में करीब 41 सीटें मिलने की उम्मीदें हैं। यानी महागठबंधन तीन चरणों में ही बहुमत का आंकड़ा मिलने का दावा कर रहा है। तो दूसरी तरफ भाजपा दो चरणों के चुनाव में ही 31 सीटें मिलने की बात कर रही है। जहां तक चुनावी हकीकत का सवाल है तो वह इन दावों से अलग है। अब तक के चुनाव में ये बात सामने आ रही है कि भाजपा और महागठबंधन, दोनों को ही 'अपनों’ से परेशानी हो रही है। अगर आजसू भाजपा का खेल बिगाड़ रहा है तो झाविमो महागठबंधन की राह में रोड़ा अटका रहा है। रघुवर की सत्ता कायम रहेगी या हेमंत फिर बनेंगे सीएम ? इस सवाल का जवाब उतना आसान नहीं है जैसा कि राजनीतिक दल बता रहे हैं।
झामुमो ने अभी ही कर दिया बहुमत का दावा
झामुमो के प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्च ने दावा किया है कि अब तक हुए तीन चरणों के चुनाव में महागठबंधन के प्रत्याशी 50 में 41 सीटों पर जीत दर्ज करेंगे। बाकी के बचे दो चरणों के चुनाव में भाजपा की ऐसी हालत होगी कि वह विपक्षी दल की मान्यता भी हासिल नहीं कर पाएगी। भाजपा संभावित हार से डर गयी है इसलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बार बार झारखंड आ रहे हैं। अगर ऐसा ही है तो नरेन्द्र मोदी को झारखंड में स्थायी रूप से रह जाना चाहिए। दूसरी तरफ कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता आलोक कुमार दुबे और किशोरनाथ शाहदेव ने दाव किया है कि तीसरे चरण की 17 में से 14 सीटें गठबंधन के पाले में जा रही हैं। कांग्रेस का कहना है कि अभी महागठबंधन के पक्ष में लहर चल रही है। महागठबंधन को उम्मीद है कि रघुवर सरकार एंटी इनक्बेंसी फैक्टर के कारण सत्ता से बेदखल हो जाएगी। राहुल गांधी की रैलियों के बाद महागठबंधन में एक नये जोश का संचार हुआ है। घटक दलों को लग रहा है कि झारखंड में भी महाराष्ट्र की तरह कमाल हो सकता है।
भाजपा भी पीछे नहीं
जीत का दावा करने में भाजपा तो दो कदम आगे है। प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ ने दूसरे चरण की सभी 20 सीटों पर जीत का दावा किया है। इसके पहले भाजपा ने पहले चरण की 13 में से 11 सीटों पर जीतने की उम्मीद जाहिर की थी। यानी उसने दो चरणों के चुनाव में ही अपना आंकड़ा 31 सीटों पर पहुंचा दिया है। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने धनबाद की रैली में कहा था कि सेकेंड फेज के चुनाव तक भाजपा के पक्ष में अभूतपूर्व मतदान हुआ है। भाजपा के विश्लेषकों ने उम्मीद जाहिर की है कि तीसरे चरण की 17 में 10 सीटों पर उसे जीत मिल सकती है। यानी भाजपा ने भी 50 सीटों के चुनाव में ही अपने आप को बहुमत मिलता दिखा दिया है। भाजपा ने झामुमो को रोकने के लिए पूरा जोर लगा रखा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 15 दिसम्बर को दुमका और 17 दिसम्बर को बरहेट आ रहे हैं। महागठबंधन के सीएम पद के उम्मीदवार हेमंत सोरेन दुमका और बरहेट से ही चुनाव लड़ रहे हैं। हेमंत को घेरने के लिए ही यहां पीएम की रैली रखी गयी है।
दावों की हकीकत
भाजपा हो या महागठबंधन, इनके जीत के दावे राजनीति बयान से अधिक कुछ और नहीं। झारखंड में पूरे चुनाव के बाद जब आज तक किसी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला तो बीच चुनाव में इसकी बात करना ही बेमानी है। 41 के मैजिक फिगर को छूना आसान नहीं है। ये दिगर बात है कि राजनीति दल मनौवैज्ञानिक बढ़त बनाने के लिए अभी से बहुमत की बात करने लगे हैं। ऐसा कर के वे अपने समर्थकों में जोश भरना चाहते हैं ताकि बाकी के चुनाव में उन्हें लाभ मिल सके। लेकिन सच दोनों के लिए चिंतजनक है। अभी तक वोटिंग पैटर्न से संकेत मिल रहा है कि भाजपा को आजसू से तो महागठबंधन को झाविमो से नुकसान उठाना पड़ रहा है। झाविमो को मिलने वाले भाजपा विरोधी मत महागठबंधन के खाते से ही डेबिट हो रहे हैं। अगर मरांडी महागठबंधन में होते तो भाजपा की हार संभावित थी। लेकिन हेमंत सोरेन की महत्वाकांक्षा ने ऐसा होने नहीं दिया। महागठबंधन को ओवैसी से भी नुकसान हो रहा है। अल्पसंख्यक बहुल सीटों पर ओवैसी ने उम्मीदवार उतार कर महागठबंधन का समीकरण बिगाड़ दिया है। ओवैसी ने कुल 14 उम्मीदवार उतारे हैं। दूसरी तरफ भाजपा भी आजसू के छिटकने से असहाय नजर आ रही है। आजसू ने 50 से अधिक सीटों पर उम्मीदवार दिये हैं जो भाजपा के लिए घाटे का सौदा साबित हो रहा है। किसी के लिए बहुमत जुटाना आसान नहीं है।