झारखंड चुनाव: 75 के शिबू सोरेन का चुनावी सभाओं में जलवा, क्या शरद पवार की तरह कर पाएंगे कमाल ?
झारखंड चुनाव: 75 के शिबू सोरेन क्या शरद पवार की तरह कर पाएंगे कमाल ?
नई दिल्ली। आदिवासियों के लिए जल, जंगल और जमीन की लड़ाई लड़ने वाले शिबू सोरेन 75 साल हो चुके हैं। वे जुझारू नेता रहे हैं लेकिन अब स्वास्थ्य कारणों से पहले की तरह सक्रिय नहीं रहे। पुत्र हेमंत सोरेन उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी बन चुके हैं। उम्र के इस पड़ाव पर भी शिबू सोरेन जनप्रिय नेता बने हुए हैं। चुनाव हारना जीतना अलग बात है, वे अभी भी जनता के दिलों पर राज करते हैं। आज भी उन्हें देखने–सुनने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ रही है। जनता से सीधा संवाद करने की उनकी पुरानी शैली आज भी बरकरार है। शिबू सोरेन भी महाराष्ट्र में शरद पवार की तरह सेहत की तमाम दुश्वारियों के बावजूद फ्रंट से लीड कर रहे हैं। क्या शिबू सोरेन भी झारखंड में शरद पवार की तरह चौंकाने वाला नतीजा दे सकते हैं? 79 साल के उम्रदराज शरद पवार ने महाराष्ट्र चुनाव में अकेले दम पर ने केवल राकांपा को विजय दिलायी थी बल्कि कांग्रेस का भी कायाकल्प कर दिया था। उसी तरह 75 साल के शिबू सोरेन क्या झारखंड में झामुमो और कांग्रेस के लिए कमाल कर पाएंगे ?
शिबू सोरेन को देखने सुनने के लिए भीड़
सोमवार को पोटका विधानसभा क्षेत्र के डुमरिया में शिबू सोरेन की सभा थी। जैसे ही वहां के लोगों को मालूम हुआ कि दिशोम गुरू आ रहे हैं, सभास्थल पर लोगों की भारी जुड़ने लगी। हर किसी को शिबू सोरेन को देखने और सुनने की उत्सुकता थी। लोग उनको नजदीक से देख कर उनकी सेहत के बारे में जानना चाहते थे। जैसे ही शिबू सोरेन मंच पर आये उनके पैर छूने के लिए लोगों की कतार लग गयी। आदिवासी उन्हें मसीहा की तरह आदर देते हैं। वक्त के बदलते दौर में भी उनका जलवा बरकरार है। शिबू सोरेन दिकू (बाहरी) भगाओ आंदोलन के कारण ही आदिवासियों में लोकप्रिय हुए थे। 2019 के विधानसभा चुनाव में वे उसी पुराने रंग में हैं। उन्होंने कहा कि बाहरी लोगों ने झारखंड पर कब्जा कर लिया और यहां के आदिवासी मजदूर बन कर रह गये हैं। यहां के लोग इसलिए मजबूर और मजदूर हैं क्यों के वे सत्ता से दूर हैं। दोयम दर्जे का जीवन जी रहे आदिवासी लोग अगर अपना कल्याण चाहते हैं तो रघुवर सरकार को हटाना होगा। उन्होंने कहा कि आदिवासियों का विकास झारखंड मुक्ति मोर्चा ही कर सकता है।
बाहरी बनाम आदिवासी
शिबू सोरेन की राजनीति का मूल आधार आदिवासी हैं। उनके पिता की महाजनों ने हत्या कर दी थी। तभी से उन्होंने महाजनों को उखाड़ फेंकने का बीड़ा उठा लिया था। बाहरी लोग ही महाजनी और सूदखोरी का धंधा करते थे। उन्होंने गरीब आदिवासियों का जीवन नर्क बना रखा था। महाजनी प्रथा का विरोध ही दीकू भगाओ आंदोलन में बदल गया था। उन्होंने लंबे समय बाहरी लोगों (दिकू) के खिलाफ आंदोलन चलाया है। 1975 में जामताड़ा के चिरुडीह गांव में दिकू भगाओ आंदोलन के तहत उन्होंने एक हिंसक भीड़ का नेतृत्व किया था जिसमें 11 लोग मारे गये थे। कई घरों में आग लगा दी गयी थी। इस मामले में शिबू सोरेन समेत 21 लोगों को अभियुक्त बनाया गया था। कई साल तक मुकदमा चलता रहा। इस मुकदमे की वजह से शिबू सोरेन संकटों में घिरे रहे। उन्हें 38 दिनों तक जामताड़ा की जेल में रहने पड़ा। हाईकोर्ट से जमानत मिलने के बाद वे जेल से बाहर आ पाये थे। 2004 में कोर्ट ने उनके खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी कर दिया था। उस समय शिबू सोरेन केन्द्रीय कोयला मंत्री थे। कोर्ट से वारंट जारी होने के बाद उन्हें केन्द्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा था। 2008 में कोर्ट ने उन्हें इस मामले में बरी कर दिया था।
झामुमो के लिए शिबू ही भीड़ जुटाऊ नेता
उम्रदराज हैं तो क्या हुआ झामुमो के स्टार प्रचारक शिबू सोरेन ही हैं। झामुमो की टीम में हेमंत सोरेन, स्टीफन मरांडी, हाजी हुसैन अंसारी, मथुरा प्रसाद महतो जैसे मंझे हुए नेता हैं लेकिन शिबू सोरेन जैसा भीड़ जुटाऊ नेता कोई दूसरा नहीं है। 40 साल की संघर्षमय राजनीतिक यात्रा ने उन्हें तपा तपाया नेता बना दिया है। गंभीर आरोपों के बाद भी उनकी ताकत नहीं घटी। उन पर नरसिम्हा राव सरकार को बचाने के एवज में रिश्वत लेने का आरोप लगा। अपने निजी सचिव शशिनाथ झा की हत्या का भी आरोप लगा लेकिन इन सब के बाबजूद उनकी राजनीति आगे बढ़ती रही। 8 बार सांसद और तीन बार मुख्यमंत्री रहे शिबू सोरेन उम्रदराज होने के बाद भी जनाधार वाले नेता हैं। मौजूदा विधानसभा चुनाव प्रचार में जहां भी उनकी सभा हो रही है वहां बड़ी तादाद में लोग आ रहे हैं।