झारखंड विधानसभा चुनाव: हटिया में हैट्रिक लगाने वाले दिग्गज सुबोधकांत रह गये खाली हाथ
झारखंड: हटिया में हैट्रिक लगाने वाले दिग्गज सुबोधकांत रह गये खाली हाथ
नई दिल्ली। कांग्रेस ने झारखंड चुनाव में वरिष्ठ नेताओं को मौका देने की बात कही थी। कुछ को दिया भी। लेकिन पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय की किस्मत दगा दे गयी। वे हटिया या रांची से टिकट चाह रहे थे लेकिन उन्हें निराश होना पड़ा। हटिया से कांग्रेस ने अजयनाथ शाहदेव को टिकट दे दिया तो रांची सीट झामुमो के खाते में चली गयी। सुबोधकांत सहाय को सोनिया गांधी का करीबी माना जाता है। कांग्रेस के नेताओं ने उन्हें टिकट का भरोसा दिलाया था लेकिन किंतु-परंतु में उनका मामला फंस गया।
हटिया में खारिज हुई दावेदारी
उम्मीदवारों के चयन के लिए 5 नवम्बर को रांची में कांग्रेस कमेटी की बैठक हुई थी। इस बैठक में सुबोधकांत सहाय ने खुलेआम अपनी नाराजगी जाहिर की थी। उम्मीदवारों के नाम पर जब चर्चा होने लगी तो सुबोधकांत ने महागामा सीट से फुरकान अंसारी के नाम का प्रस्ताव रखा। इसकी देखादेखी फुरकान अंसारी ने सुबोधकांत सहाय का नाम हटिया सीट के आगे बढ़ा दिया। हटिया सीट से चुनाव लड़ने के लिए 16 नेताओं ने आवेदन दिये थे। केन्द्रीय चुनाव समिति के पास हटिया से 16 नाम भेजे गये थे जिसमें अजयनाथ शाहदेव बाजी मार गये। रसूख रखने के बाद भी सुबोधकांत सहाय टिकट से चूक गये। अजयनाथ शाहदेव रांची के पूर्व डिप्टी मेयर रहे हैं। उन्हें भी टिकट का पक्का भरोसा नहीं था। इसलिए उन्होंने बैकअप के लिए झाविमो से सम्पर्क साध रखा था। अगर शाहदेव को कांग्रेस से टिकट नहीं मिलता तो वे झाविमो का रुख कर सकते थे। लेकिन ऐसी नौबत नहीं आयी। 2012 में अजयनाथ शाहदेव झाविमो में ही थे। उन्होंने तब हटिया का उपचुनाव लड़ा था। उस वक्त वे आजसू के नवीन जायसवाल से हार गये थे। 2019 में कांग्रेस ने शाहदेव के लिए सुबोधकांत को कुर्बान कर दिया।
रांची झामुमो के खाते में
सीट शेयरिंग फार्मूला के कारण रांची सीट सुबोधकांत के हाथों से फिसल गयी। हारी हुई सीट पर जो दल दूसरे नम्बर रहा, दावा उसी का माना गया। 2014 में रांची सीट पर भाजपा के सीपी सिंह विजयी हुए थे। दूसरे नम्बर पर झामुमो की महुआ मांजी रही थीं। उन्हें करीब 36 हजार वोट मिले थे। इस चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी सुरेन्द्र सिंह को केवल 7 हजार 935 वोट मिले थे। कांग्रेस तीसरे स्थान पर रही थी और बहुत बड़े अंतर से पीछे थी। चूंकि झामुमो दूसरे स्थान पर रहा था इस लिए रांची सीट उसके खाते में चली गयी। कांग्रेस के आग्रह के बाद भी झामुमो इस सीट पर समझौता करने के लिए राजी नहीं हुआ।
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सुबोधकांत सहाय की हटिया में हैट्रिक
सुबोधकांत सहाय का सियासी सफर हटिया से ही शुरू हुआ है। जेपी आंदोलन के समय सुबोधकांत पटना में पढ़ाई कर रहे थे। वे छात्र आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल थे। सत्येन्द्र नारायण सिन्हा और ठाकुर प्रसाद जैसे नेताओं से उनकी करीबी थी। 1977 में जनता पार्टी के गठन के बाद जब बिहार विधानसभा के चुनाव हुए तो सुबोधकांत सहाय को हटिया से जनता पार्टी का उम्मीदवार बनाया गया। कांग्रेस के अमानत अली को हरा कर पहली बार वे विधायक बने थे। उस समय सुबोधकांत की उम्र सिर्फ 28 साल ही थी। 1980 में इंदिरा लहर के बावजूद सुबोधकांत हटिया से लगातार दूसरी बार विधायक चुने गये थे। उन्होंने जनता पार्टी जेपी से चुनाव लड़ कर कांग्रेस के पीएन सिंह को हराया था। 1985 के बिहार विधानसभा चुनाव में सुबोधकांत ने हटिया में हैट्रिक लगायी थी। लगातार तीसरी बार वे विधायक चुने गये थे। कांग्रेस का बोलबाला था उसके बाद भी उन्होंने जनता पार्टी जेपी के टिकट पर चुनाव लड़ कर कांग्रेस के शुभांश झा को हराया था। तभी से सुबोधकांत हटिया को अपनी राजनीतिक जमीन मानते रहे हैं। बाद में वे कांग्रेस में शामिल हो गये। 2012 में जब हटिया सीट पर उपचुनाव हुआ था उस समय सुबोधकांत सहाय केन्द्रीय पर्यटन मंत्री थे। वे रांची के सांसद थे। उस समय उनकी कांग्रेस में तूती बोलती थी। वे अपने छोटे भाई सुनील सहाय को उपचुनाव में टिकट दिलाने में कामयाब हुए थे। हालांकि सुनील सहाय को हटिया उपचुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। 2019 में सुबोधकांत खुद अपनी जमीन वापस पाना चाहते थे लेकिन हसरत पूरी नहीं हुई।