झारखंड में हरियाणा-महाराष्ट्र की गलती नहीं दोहराएगी भाजपा, ठोक-बजाकर देगी टिकट
नई दिल्ली। महाराष्ट्र और हरियाणा की गलतियों से सबक लेकर भाजपा झारखंड चुनाव के लिए बेहद सतर्क है। महाराष्ट्र और हरियाणा में भाजपा को 2014 से कम सीटें मिली हैं। झारखंड में ऐसी नौबत नहीं आये इसलिए भाजपा ने यहां ठोक बजाकर टिकट देने का फैसला लिया है। भाजपा के सभी 37 विधायकों के फरफॉर्मेंस के आकलन के लिए आंतरिक सर्वे कराया गया है। इनके अलावा 12 और विधायक भाजपा में शामिल हुए हैं। इनकी भी जीतने की क्षमता की परखी जा रही है। जो सीटें भाजपा की नहीं हैं वहां दावेदारों के बारे में फीडबैक लिया गया है। चर्चा है कि करीब दस विधायकों (मंत्री भी शामिल) के टिकट कट सकते हैं। झारखंड चुनाव पर चर्चा के लिए भाजपा चुनाव प्रबंधन समिति एक बार बैठ चुकी है। उम्मीदवारों के चयन के लिए 6 नवम्बर को फिर बैठक होगी। 8 नवम्बर को केन्द्रीय चुनाव समिति प्रत्याशियों के नाम की घोषणा कर सकती है। झारखंड चुनाव प्रभारी ओम प्रकाश माथुर, सह प्रभारी नंदकिशोर यादव (बिहार के मंत्री) , भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री बीएल संतोष, मुख्यमंत्री रघुवर दास और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ पर अहम जिम्मेवारी है कि वे जिताऊ उम्मीदवाकरों की पहचान कर उन्हें टिकट दिलाएं। झारखंड की जनता ढीले-ढाले विधायकों को माफ नहीं करती। 2014 में 55 विधायकों को देखना पड़ा था हार का मुंह।
12 बाहरी विधायक कैसे होंगे एडजस्ट ?
2014 में भाजपा के 37 विधायक जीते थे। चुनाव के कुछ दिनों के बाद झाविमो के छह विधायक भाजपा में आ गये थे। चुनाव की घोषणा के ठीक पहले दूसरे दलों के छह और विधायक भाजपा में आ गये। जाहिर ये 12 विधायक टिकट की आस में ही भाजपाई बने हैं। इनके आने से भाजपा के मूल उम्मीदवारों को दिक्कत हो सकती है। हटिया विधानसभा सीट पर झाविमो के नवीन जायसवाल जीते थे। अब वे भाजपा में हैं। भाजपा की सीमा शर्मा उनसे हारी थीं। अब टिकट को किसको मिलेगा, सोच विचार चल रहा है। इसी तरह बरही और लोहरदगा के कांग्रेस विधायक भाजपा में आ गये हैं। वे भाजपा को को हरा कर ही विधायक बने थे। इन दोनों सीटों पर भी भाजपा के मूल उम्मीदवारों ने अपना दावा ठोक रखा है। इसी तरह सिमरिया से गणेश गंझू, लातेहार से प्रकाश राम, सारठ से रणधीर सिंह, बरकट्ठा से जानकी यादव, चंदनक्यारी अमर बाउरी झाविमो के टिकट पर विधायक बने थे। लेकिन ये अब भाजपा में हैं। बरहगोड़ा के झामुमो विधायक कुणाल षाडंगी भी भाजपा में आ गये हैं। अगर इन सभी बाहरी नेताओं को भाजपा से टिकट मिलता है तो क्या स्थानीय कार्यकर्ता इनका सहयोग करेंगे ? हरियाणा और महाराष्ट्र में ऐसी ही परिस्थितियों के कारण भाजपा को बहुत नुकसान हुआ था।
भ्रष्टाचार के आरोपी विधायक भी भाजपा में
भवनाथपुर के विधायक भानु प्रताप शाही भी भाजपा में शामिल हुए हैं। वे मधु कोड़ा सरकार में स्वास्थ्य मंत्री थे। कोड़ा सरकार का कार्यकाल घोटालों के कारण सुर्खियों में रहा था। कोड़ा सरकार में मंत्री रहे भानु प्रताप शाही 130 करोड़ के दवा घोटाला के आरोपी हैं। उनके खिलाफ ट्रायल चल रहा है। अब देखना है कि राजनीतिक मूल्यों की बात करने वाली भाजपा भानुप्रताप शाही को टिकट देती है कि नहीं। भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की बात करने वाली भाजपा अगर शाही को टिकट देती है तो महागठबंधन इसे मुद्दा बना सकता है। सिसई और गुमला सीट पर भाजपा का कब्जा है। इस बीच पूर्व आइपीएस अधिकारी और कांग्रेस नेता अरुण उरांव भी भाजपा में आ गये हैं। वे सिसई या गुमला से टिकट चाहते हैं। भाजपा के लिए यह फैसला भी आसान नहीं होगा।
स्थानीय मुद्दों पर जोर
महाराष्ट्र और हरियाणा में भाजपा ने स्थानीय मुद्दों पर कम और राष्ट्रीय मुद्दों पर अधिक फोकस किया था। इसकी उसे कीमत चुकानी पड़ी थी। इसलिए झारखंड में भाजपा स्थानीय मुद्दों पर ज्यादा जोर देगी। इस चुनाव में आदिवासी हितों पर उसका खास ध्यान रहेगा। भाजपा का आरोप है कि झामुमो आदिवासियों में अफवाह फैला रहा है कि अगर भाजपा फिर सत्ता में आयी तो वह उनकी जमीन छीन लेगी। भाजपा ने इस अफवाह से निबटने की तैयारी की है। नक्सलवाद पर नियंत्रण, स्थिर सरकार और धर्मांतरण के मुद्दे पर भी भाजपा का जोर रहेगा। 2017 में रघुवर सरकार ने जबरन या लालच दे कर किये धर्मांतरण को अपराध घोषित किया है। नये कानून में दोषियों को चार साल कैद और एक लाख रुपये जुर्माना का प्रावधान है। अब भाजपा प्रचारित रही है उसने आदिवासी संस्कृति को बचाये रखने के लिए इस नये कानून को लागू किया है। भाजपा के मुताबिक ईसाई मिशनरियां गरीब और निरक्षर आदिवासियों को लालच देकर धर्मांतरण करा देती थीं। अब ऐसी गतिविधियों पर अंकुश लगा है।