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झारखंड में कोई भी स्पीकर आज तक नहीं जीता है चुनाव, 2019 में क्या होगा दिनेश उरांव का ?

झारखंड में कोई स्पीकर नहीं जीता चुनाव, क्या होगा दिनेश उरांव का

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नई दिल्ली। झारखंड विधानसभा चुनाव में स्पीकर दिनेश उरांव सिसई सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। उनका मुकाबला झारखंड मुक्ति मोर्चा के जिग्गा सुसारन होरो से है। 2014 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी के रूप में दिनेश उरांव ने जिग्गा होरो को 2 हजार 593 मतों से हराया था। अब सवाल ये हैं कि क्या दिनेश उरांव 2019 में भी जीत हासिल कर पाएंगे ? झारखंड विधानसभा के तीन चुनावों में अब तक कोई स्पीकर दोबारा नहीं जीत पाया है। ये इत्तेफाक की बात हो सकती है लेकिन टोटका मानने वाले नेताओं के बीच ये धारण बन गयी है कि स्पीकर के पद पर रहते चुनाव लड़ना ठीक नहीं। इस धारणा की वजह से अब ही दिनेश उरांव के राजनीतिक भविष्य को लेकर सवाल पूछा जा रहा है।

2005 में स्पीकर की हार

2005 में स्पीकर की हार

झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष मृगेन्द्र प्रताप सिंह ने जनवरी 2005 में इस्तीफा दे दिया था। उस समय राजद के विधायक डॉ. सबा अहमद उपाध्यक्ष के पद पर थे। स्पीकर का पद रिक्त होने के बाद सबा अहमद कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में कार्य करने लगे। 2005 में जब झारखंड का पहला विधानसभा चुनाव हुआ तो सबा अहमद स्पीकर के रूप में ही चुनावी मैदान में गये थे। उन्होंने अपनी परम्परागत सीट टुंडी से चुनाव लड़ा लेकिन वे झारखंड मुक्ति मोर्चा के मथुरा प्रसाद महतो से हार गये। 2000 के चुनाव में सबा अहमद ने मथुरा प्रसाद महतो को ही हराया था। सबा अहमद तब केवल 154 वोटों से ही चुनाव जीत पाये थे। पेशे से डॉक्टर सबा अहमद झारखंड के पूर्व डीजीपी नेयाज अहमद के भाई हैं। टुंडी में करीब 22 फीसदी मतदाता मुस्लिम समुदाय के हैं। तब भी सबा अहमद 2005 का चुनाव हार गये थे। झामुमो के मथुरा प्रसाद महतो ने सबा अहमद को करीब 26 हजार मतों से हराया था। बाद में सबा अहमद राजद से झाविमो में चले गये।

2009 में स्पीकर की फिर हार

2009 में स्पीकर की फिर हार

2009 के विधानसभा चुनाव के समय कांग्रेस के आलमगीर आलम झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष थे। वे पाकुड़ से चुनाव जीत कर आये थे। 2009 के चुनाव में आलमगीर आलम का मुकाबला झामुमो के अकील अख्तर से हुआ। अकील अख्तर ने आलामगीर आलाम को हरा दिया। झारखंड में स्पीकर की ये दूसरी लगातार हार थी। पश्चिम बंगाल की सीमा पर अवस्थित पाकुड झारखंड का मुस्लिम बहुल क्षेत्र है। पाकुड़ विधानसभा क्षेत्र में करीब 36 फीसदी वोटर इसी समुदाय के हैं। इनके ही रुख पर यहां का रिजल्ट निर्भर है। अकील अख्तर ने कांटे के मुकाबले में आलमगीर आलम को करीब पांच हजार वोटों से हराया था। आलमगीर आलम का पाकुड़ में मजबूत जनाधार था। वे 2000 और 2005 में यहां से जीत चुके थे। लेकिन मजबूत दावेदारी के बाद भी जब आलम हार गये तो इस हार को स्पीकर के दुर्भाग्य से जोड़ दिया गया।

2014 में तीसरी बार हारे स्पीकर

2014 में तीसरी बार हारे स्पीकर

2014 के विधानसभा चुनाव में शशांक शेखर भोक्ता स्पीकर के पद रहते हुए सारठ में चुनाव हार गये थे। तीसरे विधानसभा चुनाव के समय झामुमो के शशांक शेखर भोक्ता विधानसभा के अध्यक्ष थे। वे सारठ से चुनाव मैदान में उतरे थे। इस चुनाव में उनकी करारी हार हुई थी। वे तीसरे स्थान पर फिसल गये थे। इस सीट पर झाविमो के रणधीर कुमार सिंह जीते थे। उन्होंने भाजपा के उदय शंकर सिंह को हराया था। झारखंड विधानसभा के चुनाव में स्पीकर की ये लगातार तीसरी हार थी। 2009 में पहले चार साल तक भाजपा के सीपी सिंह स्पीकर रहे थे। यह अल्पमत सरकारों का दौर था। इसके बाद जुलाई 2013 में झामुमो के शशांक शेखर भोक्ता स्पीकर बने थे। भोक्ता ने कांग्रेस से राजनीति शुरू की थी। वे 1990 में झामुमो से जुड़े थे। वे 2000 में झामुमो के टिकट पर पहली बार विधायक चुने गये थे। 2014 में उनकी ऐसी करारी हार होगी किसी ने अनुमान भी नहीं लगाया था।

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English summary
Jharkhand assembly elections 2019 assembly speaker Dinesh Oraon bjp candidate
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