झारखंड चुनाव : आजसू-भाजपा ने लड़ाई के बीच इस तरह बाकी रखी है दोस्ती की गुंजाइश
झारखंड: आजसू-भाजपा ने लड़ाई के बीच बाकी रखी है दोस्ती की गुंजाइश
नई दिल्ली। 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा और आजसू ने लड़ाई के बीच दोस्ती की गुंजाइश बाकी रखी है। दोनों ने एक दूसरे के खिलाफ 14 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं लेकिन गठबंधन टूटने की औपचारिक घोषणा कोई नहीं कर रहा। शुरू में परस्पर विरोधी बयान देने वाले नेता अब संयम बरत रहे हैं। दोनों दलों को जैसे ही भविष्य की चिंता हुई उन्होंने अदावत के बीच मोहब्बत के गलियारे की जगह छोड़ दी। भाजपा ने आजसू प्रमुख सुदेश महतो के खिलाफ सिल्ली में उम्मीदवार नहीं दिया तो आजसू ने मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ जमशेदपुर पूर्वी से अपने उम्मीदवार को खड़ा नहीं किया। दोनों के बीच झगड़े की नींव तब पड़ गयी थी जब आजसू ने चक्रधरपुर में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ के खिलाफ अपना उम्मीदवार(राम लाल मुंडा) खड़ा कर दिया था। लेकिन बाद में दोनों ने जिद की लगाम ढीली छोड़ दी।
भाजपा की सुदेश पर इनायत
जमशेदपुर पूर्वी और सिल्ली सीट पर भाजपा और आजसू ने जो दरियादिली दिखायी है वह भविष्य की राजनीति का हिस्सा है। भाजपा ने कुल 81 में से 79 सीटों पर उम्मीदवार खड़े कर दिये हैं। दो सीटों पर वह चुनाव नहीं लड़ रही। सिल्ली में उसने सुदेश महतो के लिए कैंडिडेट नहीं दिया तो हुसैनाबाद में उसने निर्दलीय विनोद सिंह को समर्थन दिया है। वैसे तो भाजपा 65 पार के नारे पर चुनाव लड़ रही है लेकिन गठबंधन के नाकाम होने से वह भी आशंकित है। अगर 2019 का चुनाव परिणाम उम्मीदों के मुताबिक नहीं आता तो भाजपा भविष्य के लिए रास्ता खुला रखना चाहती है। अगर भाजपा को बहुमत से कुछ कम आंकड़ा मिलता है तो वह आजसू के साथ मिल कर सरकार बनाने गुंजाइश बाकी रखना चाहती है। पहले भी भाजपा और आजसू ने एक दूसरे खिलाफ चुनाव लड़ कर बाद में संयुक्त सरकार बनायी है।
रघुवर पर मेहरबान सुदेश
आजसू ने अभी तक 31 उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतार दिया है। भाजपा उसे 10-11 सीट देना चाहती थी। लेकिन झारखंड में अपनी हैसियत बनाने के लिए बेचैन आजसू अधिक सीटों पर लड़ना चाहता था। शुरू में उसने भाजपा से 19 सीटें मांगी थी। जब भाजपा ने इंकार कर दिया तो उसने गठबंधन को दरकिनार करते हुए 31 सीटों पर प्रत्याशी दे दिये। आजसू को भी भविष्य की चिंता है। वह अधिक से अधिक सीटें जीतना तो चाहता है लेकिन अगर कम सीटें मिलीं तो वह सुरक्षित ठिकाना भी बनाये रखना चाहता है। इसी सोच के साथ उसने रघुवर दास के लिए सेफ पैसेज छोड़ दिया। आजसू ने जमशेदपुर पश्चिमी सीट पर तो उम्मीदवार दिया लेकिन उसने जमशेदपुर पूर्वी सीट यूं ही छोड़ दी। यानी सुदेश महतो और रघुवर दास की चुनावी स्थिति यही है कि तू मेरी पीठ खुजा, मैं तेरी पीठ खुजाऊंगा। चुनाव बाद अगर मिल सरकार बनाने की स्थिति हो तो दोनों आंखों में इतनी शर्म बाकी रहनी चाहिए ताकि आगे बात हो सके। आजसू को भी मालूम है कि वह सरकार में रह कर ही अपने संगठन का बेहतर विस्तार कर सकता है।
भाजपा- आजसू गठबंधन में ही बेहतर
भाजपा और आजसू ने पहली बार 2014 में वास्तविक गठबंधन किया था। भाजपा 72 सीटों पर लड़ी और आजसू 8 सीटों पर लड़ा था। एक सीट लोजपा के लिए छोड़ी गयी थी। इस गठबंधन में दोनों की जीत का प्रतिशत सर्वोच्च स्तर पर था। भाजपा ने 72 में 37 सीटें जीती थी जो उसका झारखंड में बेस्ट स्कोर है। आजसू ने भी 8 में से 5 सीटें जीत कर बेहतर प्रदर्शन किया था। इसके पहले आजसू ने 2005 के चुनाव में 40 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन केवल 2 सीटें ही जीत पाया था। 2009 के चुनाव में भी 54 सीटों पर लड़ने के बाद भी उसके खाते में सिर्फ 5 सीटें ही आयीं थीं। दूसरी तरफ भाजपा ने भी अलग हो कर अपनी किस्मत आजमायी है लेकिन कभी 37 तक नहीं पहुंच पायी है। अब दोनों फिर एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं। इसलिए दोनों के नुकसान की आशंका जतायी जा रही है।