बिहार में JDU-BJP गठबंधन में दरार, ऐसे कितने दिल चलेगी सरकार?
नई दिल्ली- बिहार में जेडीयू-बीजेपी गठबंधन सरकार में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। हालात यहां तक पहुंच चुके हैं कि अब अकेले चुनाव लड़कर दिखाने की चुनौतियां भी दी जाने लगी हैं। बीजेपी में नाराजगी इस बात को लेकर है कि सरकार में रहते हुए मुख्यमंत्री ने आरएसएस के खिलाफ खुफिया जानकारी जुटाने की कोशिश क्यों की। कुछ नेता ऐसे भी सामने आए जिन्होंने नीतीश सरकार से समर्थन वापस लेने की मांग करनी शुरू कर दी। जवाब में जेडीयू की ओर से गठबंधन सरकार के खिलाफ बयान देने वालों के खिलाफ ऐक्शन लेने की मांग सीधे बीजेपी लीडरशिप से की जाने लगी है। आइए समझने की कोशिश करते हैं कि दोनों पार्टियों के नेताओं की तल्खी के तात्कालिक कारण क्या हैं और सरकार की सेहत के लिए यह कितने खतरनाक हैं?
जासूसी ने बिगाड़ी बात
बिहार में आरएसएस जासूसी कांड की जैसे ही भनक लगी, बीजेपी की तरफ से केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने अपने अंदाज में राज्य सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। उनकी नाराजगी का अंदाजा इसी से लगता है कि इसको लेकर उन्होंने अपनी पार्टी के डिप्टी सीएम सुशील मोदी को ही घेरना शुरू कर दिया। सवाल उठाए गए कि सरकार में उनके रहते सीएम नीतीश कुमार ने ये फैसला कैसे कर लिया। उनके जेहन में एक ही बात है कि उनके राष्ट्रवादी संगठन के खिलाफ नीतीश सरकार ने जैसा कदम उठाया है, क्या वो कभी किसी मुस्लिम संगठन के लिए भी ऐसा ही आदेश जारी कर सकती है? संघ और भाजपा में यह आम भावन बनी हुई है कि इस तरह की जांच का मकसद सिर्फ राजनीतिक है। इसी कड़ी में बीजेपी के विधान पार्षद सच्चिदानंद राय भी नीतीश सरकार के विरोध में उतर आए और उन्होंने पार्टी लीडरशिप से बिहार में गठबंधन सरकार पर तत्कालीक फैसला लेने की मांग तक कर डाली। उन्होंने यहां तक कह दिया है कि प्रदेश में भाजपा इतनी मजबूत है कि अपने दम पर बहुमत भी ला सकती है।
जेडीयू ने भी जवाब में तल्ख किए तेवर
भाजपा की ओर से लगातार हो रहे हमले के खिलाफ बैटिंग करने के लिए जेडीयू ने अपने राष्ट्रीय महासचिव पवन वर्मा को उतार दिया। उन्होंने कह दिया है कि अगर बीजेपी को लगता है कि वह बिहार में अकेले चुनाव लड़ सकती है तो लड़कर देख ले। उन्होंने कहा, "हम लोग देख रहे हैं कि बीजेपी के कुछ नेता नीतीश सरकार से समर्थन वापसी की धमकी दे रहे है। उन्हें अकेले होकर एक बार चुनाव लड़ लेना चाहिए, चुनाव परिणाम से समझ आ जाएगा।" उन्होंने भाजपा नेतृत्व से कहा है कि गठबंधन में इस तरह का व्यवहार स्वीकार नहीं किया जा सकता, इसलिए वो सरकार के खिलाफ बयानबाजी करने वाले नेताओं पर लगाम लगाए। उन्होंने यहां तक कहा कि भाजपा नेतृत्व ये साफ करे कि उसके नेताओं के गठबंधन विरोधी बयान निजी तौर पर आ रहे हैं या उनकी सहमति से दिए जा रहे हैं।
असमंजस में बीजेपी
बिहार में दोनों पार्टियों के नेताओं की ओर से रोजाना जो तल्ख बयान सामने आ रहे हैं, उससे बीजेपी लीडेरशिफ भी असमंजस में पड़ी दिख रही है। एक तरफ भाजपा पवन वर्मा के बयान को ज्यादा तबज्जो न देकर बात को ज्यादा हवा नहीं देना चाहती। बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता आनंद कुमार झा ने वन इंडिया से खास बातचीत में कहा है कि 'बीजेपी पवन वर्मा की राय को ज्यादा भाव नहीं देना चाहती। भाजपा उसी बयान को जेडीयू के आधिकारिक बयान के तौर पर लेगी जो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार या जेडीयू अध्यक्ष की ओर से दिया जाएगा।' लेकिन इसी दौरान ये भी खबर है कि पार्टी के अनुशासन समिति ने सच्चिदानंद राय को नोटिस थमाकर 10 दिनों के भीतर उनके बयान पर जवाब मांग लिया है। ऐसे में यही लगता है कि एक तरफ गिरिराज जैसे नेताओं को जहां बोलने के लिए खुला छोड़ दिया गया है, वहीं दूसरी तरफ जेडीयू से तुरंत बात न बिगड़ जाए, इसलिए पार्टी कोई ज्यादा सख्त तेवर दिखा भी नहीं रही है।
दोधारी तलवार पर चल रही है बीजेपी!
अगर देखा जाय तो मौजूदा गठबंधन में नीतीश कुमार ने बीजेपी को पहला तगड़ा झटका तब दिया था, जब उन्होंने 30 मई को मोदी सरकार में पार्टी का कोई प्रतिनिधि देने से मना कर दिया था। उसके बाद उन्होंने बाद में खुद के मंत्रिमंडल का जो विस्तार भी किया, समें बीजेपी के किसी नेता को मंत्री न बनाकर स्पष्ट रूप से बीजेपी से अलग लाइन लेने का सियासी संकेत दे दिया। नीतीश ये सब तब करते रहे हैं, जब उपमुख्यमंत्री के तौर पर बिहार बीजेपी के सबसे कद्दावर नेता सुशील कुमार मोदी मौजूद हैं। यही कारण है कि खुफिया चिट्ठी एपिसोड में जितनी तल्खी दिल्ली में बैठे गिरिराज ने दिखाई, उसके रत्ती भर बराबर फर्क भी सुशील मोदी को पड़ता नहीं दिखा। ऐसे में बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व के सामने परेशानी ये है कि नीतीश क्या सियासी दांव चल रहे हैं, इसपर सलाह करे तो किससे करे। क्योंकि, सुशील मोदी तो बड़े मजे से सत्ता में बैठे हुए हैं। ये वही सुशील मोदी हैं, जो उपेंद्र कुशवाहा के साथ नीतीश कुमार के हुए 'नीच' विवाद में छाती ठोककर नीतीश के साथ खड़े हो गए थे। जबकि उस विवाद से तब उनका कोई सीधा लेना-देना भी नहीं था। ऐसे में भाजपा जबतक अपने घर को नहीं सहेजती, उसके लिए बिहार में गठबंधन के साथ चलना, दोधारी तलवार पर चलने के समान रहेगा।