लोकसभा चुनाव में अदृश्य हुई आदिवासियों की जयस पार्टी
भोपाल। विधानसभा चुनाव के पहले मध्यप्रदेश में धूम मचा देने वाली जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस) पार्टी की लोकसभा में कोई पूछ नहीं बची। मध्यप्रदेश में बड़ी संख्या में आदिवासी मतदाता है, लेकिन वे नई पार्टी के बजाय भाजपा और कांग्रेस में ही भरोसा करते है। यही कारण है कि विधानसभा चुनाव के पहले अपने पक्ष में माहौल बनाने वाली जयस इस चुनाव में अदृश्य नजर आ रही है। विधानसभा चुनाव के पहले 80 उम्मीदवार खड़े करने का दावा करने और फिर कांग्रेस से गठबंधन के बाद एक सीट पर चुनाव लड़ने और जीतने वाली जयस मध्यप्रदेश के आदिवासियों की पसंद नहीं बन पाई।
मध्यप्रदेश
की
सुरक्षित
सीटें
मध्यप्रदेश
की
29
लोकसभा
सीटों
में
से
6
सीटें
एसटी
वर्ग
के
लिए
और
4
सीटें
एससी
के
लिए
आरक्षित
हैं।
पिछले
विधानसभा
चुनाव
में
मध्यप्रदेश
की
आदिवासी
सुरक्षित
सीटों
पर
जय
आदिवासी
युवा
शक्ति
(जयस)
ने
काफी
जोर
आजमाइश
की
थी
और
बाद
में
कांग्रेस
से
समझौता
कर
लिया
था।
जयस
के
नेता
चुने
भी
गए,
लेकिन
उनमें
से
किसी
को
भी
मंत्री
नहीं
बनाया
गया।
अब
लोकसभा
चुनाव
में
जयस
के
नेता
टिकट
तो
मांग
रहे
हैं,
लेकिन
उनकी
चल
नहीं
रही।
विधानसभा
चुनाव
के
पहले
जयस
ने
अनेक
आदिवासी
आंदोलन
खड़े
किए
थे।
इस
बार
वे
ठंडे
पड़े
हुए
हैं।
आदिवासी सीटों पर भाजपा का एकछत्र राज
2014 के लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश की सभी आरक्षित सीटों पर भाजपा जीती थी। कांग्रेस की कोशिश है कि इस बार ऐसा नहीं हो। मुख्यमंत्री कमलनाथ के चुनाव क्षेत्र से सटा हुआ बैतूल भारतीय जनता पार्टी का गढ़ है। ज्योति धुर्वे लगातार यहां से 2 बार से जीत रही है। कांग्रेस ने यहां से पिछली बार भारतीय जनता पार्टी के पूर्व केबिनेट मंत्री विजय शाह के भाई अजय शाह को टिकट दिया था, लेकिन वे चुनाव जीत नहीं पाए। गत विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने यहां से अच्छा प्रदर्शन किया और 8 में से 4 सीटें अपने कब्जे में की। इससे कांग्रेस के नेताओं को आशा की किरण नजर आ रही है।
रतलाम-झाबुआ संसदीय सीट से कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया जीतते चले आ रहे है। कांतिलाल भूरिया के अलावा यहां से उन्हीं के एक और करीबी दिलीप सिंह भूरिया भाजपा से चुनाव जीत चुके है। 2014 में यहां से कांतिलाल भूरिया को हार का सामना करना पड़ा था। अब विधानसभा चुनाव में 8 में से 5 सीटें जीतने के बाद कांग्रेस का मनोबल अच्छा है।
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मोदी लहर में हवा हुई कांग्रेस
झाबुआ से लगी हुई धार-महू लोकसभा सीट भी मोदी की लहर में भाजपा ने जीत ली थी। धार परंपरागत रूप से कांग्रेस का गढ़ रहा है, जहां से 7 बार कांग्रेस और 3 बार भाजपा चुनाव जीती थी। क्षेत्र परिसीमन के पहले भी यह कांग्रेस का गढ़ रहा है। इस बार जिले की 6 विधानसभा सीटें कांग्रेस के खाते में है, जिस कारण भाजपा वर्तमान सांसद सावित्री ठाकुर को टिकट देने के बारे में सोच रही है।
शहडोल भी कभी कांग्रेस का गढ़ रहा था, लेकिन अब यहां भाजपा का बोलबाला है। कांग्रेस शहडोल को आशा की निगाहों से देख रही है। शहडोल में लोकसभा चुनाव के नतीजे हमेशा चौकाने वाले रहे है। धीरे-धीरे यहां कांग्रेस की पेठ बनती जा रही है, जिस कारण भाजपा की चुनौतियां बढ़ गई लगती है।
विधानसभा के बाद लोकसभा में भी जयस की पूछ नहीं
जयस के नेता कांग्रेस से मांग कर रहे है कि उन्हें आदिवासी सीटों पर उम्मीदवार बनाया जाए। कांग्रेस के नेता उन्हें ज्यादा तवज्जों नहीं दे रहे, क्योंकि उन्हें लगता है कि कांग्रेस की पेठ आदिवासी इलाकों में पहले से ही है। अब जयस के नेताओं को टिकट देने का मतलब होगा कि कांग्रेस ने अपनी कमजोरी मान ली है। जयस के नेता विधानसभा चुनाव के पहले बढ़-चढ़कर दावे कर रहे थे और कह रहे थे कि विधानसभा चुनाव के बाद मध्यप्रदेश में जयस की ही सरकार होगी।
जयस ने बाद में विधानसभा की 80 सीटों पर चुनाव लड़ने के इरादे से प्रत्याशी खड़े किए थे, लेकिन आधा दर्जन जयस प्रत्याशी को छोड़कर सबकी जमानत जब्त हो गई। विधानसभा चुनावों में सवर्णों की पार्टी सपाक्स ने भी अपने उम्मीदवार खड़े किए थे, लेकिन उनमें से एक भी नहीं जीत पाया। विधानसभा चुनावों में जयस कांग्रेस के साथ मोल-भाव करने की स्थिति में तो थी, लेकिन इस बार वह कांग्रेस के साथ मोल-भाव करने के लायक भी नहीं बची।
विधानसभा चुनाव में जयस ने कांग्रेस से समझौता कर लिया था और उसके उम्मीदवार कांग्रेस टिकट पर चुनाव में खड़े हुए थे, इस कारण जयस की उनकी अपनी पहचान भी इस चुनाव में नजर नहीं आ रही। जब जयस और कांग्रेस में समझौते की बात हो रही थी, तब जयस ने विधानसभा की 80 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने की बात कही थी। चुनाव में कांग्रेस ने जयस को उसकी राजनीतिक स्थिति बता दी। चुनाव के बाद भी जयस के किसी नेता को मंत्री नहीं बनाया गया। विधानसभा में जयस यह दावा करता रहा कि हमारा उम्मीदवार खड़ा होने से कांग्रेस को परेशानियां होंगी। इसलिए समझौता जरूरी है। अब समझौते की बात भी नजर नहीं आ रही। जयस के नेता डॉ. हीरालाल अलावा को उनकी मनचाही सीट से भी टिकट नहीं मिला था। अब एक सीट वाली जयस लोकसभा चुनाव में टिकट का दावा करेगी, तो किस मुंह से।
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