वो शहीद हैं, पर जिंदा हैं, रोज प्रेस होती है वर्दी, अकेले मारे थे 300 चीनी, 72 घंटे लड़ी थी जंग
नई दिल्ली। सूरज की पहली किरण के साथ ही उन्हें बेड टी दी जाती है। नौ बजे नाश्ता और फिर रात का खाना भी मिलता है। उनके बूट रोज पॉलिश होते हैं और वर्दी पर प्रेस की जाती है। आप सोच रहे होंगे कि एक सेना के अफसर के लिए यह सब दिनचर्या का हिस्सा हो सकता है, लेकिन यह जानकर आप हैरान रह जाएंगे कि हम जिनका जिक्र कर रहे हैं वो शहीद हो चुके हैं। इसके बाद भी उन्हें जीवीत सैनिक की तरह सम्मान दिया जाता है। बाकायदा उनका मंदिर है जिसमें रोज पूजा-अर्चना होती है। ऐसा भी कहा जाता है कि शहीद हो चुका यह सैनिक आज भी चीन बॉर्डर पर पहरा देता है। हम बात कर रहे हैं राइफल मैन जसवंत सिंह रावत की जो 1962 में नूरारंग की लड़ाई में असाधारण वीरता दिखाते हुए मारे गए थे। उन्हें उनकी बहादुरी के लिए मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
अकेले किया 72 घंटे तक चीनी सेना का सामना, 300 सैनिक मार गिराए
1962 के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए जसवंत सिंह की शहादत से जुड़ी सच्चाई बहुत कम लोगों को पता हैं। उन्होंने अकेले 72 घंटे चीनी सैनिकों का मुकाबला किया और विभिन्न चौकियों से दुश्मनों पर लगातार हमले करते रहे। उन्होंने अकेले 300 चीनी सैनिकों को मारा गिराया था। उनसे जुड़ा यह वाकया 17 नवंबर 1962 का है, जब चीनी सेना तवांग से आगे निकलते हुए नूरानांग पहुंच गई थी।
12000 फीट की ऊंचाई पर बना है स्मारक
जसवंत सिंह लोहे की चादरों से बने जिन कमरों में रहा करते थे, वही स्मारक का मुख्य केंद्र बना.गुवाहाटी से तवांग जाने के रास्ते में लगभग 12,000 फीट की ऊंचाई पर बना जसवंत युद्ध स्मारक भारत और चीन के बीच 1962 में हुए युद्ध में शहीद हुए महावीर चक्र विजेता सूबेदार जसवंत सिंह रावत के शौर्य व बलिदान की गाथा बयां करता है।
जसवंत सिंह रावत का सिर काट ले गए थे चीनी सैनिक
जब चीनी सैनिकों ने देखा कि एक अकेले सैनिक ने तीन दिनों तक उनकी नाक में दम कर रखा था तो इस खीझ में चीनियों ने जसवंत सिंह को बंधक बना लिया और जब कुछ न मिला तो टेलीफोन तार के सहारे उन्हें फांसी पर लटका दिया। फिर उनका सिर काटकर अपने साथ ले गए।
मरने के बाद भी करते हैं ड्यूटी
जसवंत सिंह रावत के मारे जाने के बाद भी उनके नाम के आगे न तो शहीद लगता है और ना ही स्वर्गीय। ऐसा इसलिए क्योंकि सेना का यह जाबाज जवान आज भी ड्यूटी करता है। ऐसा कहा जाता है कि अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले के जिस इलाके में जसवंत ने जंग लड़ी थी उस जगह वो आज भी ड्यूटी करते हैं और भूत प्रेत में यकीन न रखने वाली सेना और सरकार भी उनकी मौजूदगी को चुनौती देने का दम नहीं रखते। जसवंत सिंह का ये रुतबा सिर्फ भारत में नहीं बल्कि सीमा के उस पार चीन में भी है। हर दिन उनका जूता पॅालिश होता है लेकिन जब रात में जूते को देखा जाता है तो ऐसा लगता है जैसे जूता पहनकर कोई कहीं गया था।
बॉर्डर पर सैनिकों को करते हैं आगाह
स्थानीय लोगों के मुताबिक पोस्ट पर तैनात किसी सैनिक को जब झपकी आती है तो कोई उन्हें यह कहकर थप्पड़ मारता है कि जगे रहो सीमाओं की सुरक्षा तुम्हारे हाथ में है। इतना ही नहीं एक किंवदंती यह भी है कि उस राह से गुजरने वाला कोई राहगीर उनकी शहादत स्थली पर बगैर नमन किए आगे बढ़ता है तो उसे कोई न कोई नुकसान जरूर होता है।
प्रमोशन भी मिलता है, छुट्टियां भी होती हैं मंजूर
जसवंत सिंह भारतीय सेना के अकेले सैनिक हैं जिन्हें मौत के बाद प्रमोशन मिलना शुरू हुआ। पहले नायक फिर कैप्टन और अब वह मेजर जनरल के पद पर पहुंच चुके हैं। उनके परिवार वाले जब जरूरत होती है, उनकी तरफ से छुट्टी की दर्खास्त देते हैं। जब छुट्टी मंज़ूर हो जाती है तो सेना के जवान उनके चित्र को पूरे सैनिक सम्मान के साथ उनके उत्तराखंड के पुश्तैनी गांव ले जाते हैं और जब उनकी छुट्टी समाप्त हो जाती है तो उस चित्र को ससम्मान वापस उसके असली स्थान पर ले जाया जाता है।