Article 370: चीन को डोकलम की भाषा में ही समझा सकता है भारत
बंगलुरू। जम्मू-कश्मीर प्रदेश विशेष प्रावधान देने वाले अनुच्छेद 370 और 35 ए के हटने के बाद चीन ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए भारत का फैसला चीनी संप्रभुता के खिलाफ है। लद्दाख और जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने पर चिंतित है चीन ने कहा है कि भारत के उक्त कदम से चीन की संप्रभुता के लिए चुनौती है, जिससे दोनों देशों के बीच सीमाई इलाके में शांति व स्थिरता कायम रखने के समझौते का उल्लंघन हुआ है।
हालांकि भारतीय विदेश मंत्री एस.जयशंकर ने चीन को आश्वस्त किया है कि लद्दाख पर फैसले से भारत की बाहरी सीमा पर कोई असर नहीं पड़ेगा और वह किसी अतिरिक्त क्षेत्रीय दावे को पेश करने की कोशिश नहीं कर रहा है, लेकिन चीन के विदेश मंत्रालय एक बयान जारी कर भारत का कदम को अवैध बताते हुए कहा कि इससे यथास्थिति में कोई बदलाव आएगा। यानी चीन का कहना है कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख पर लिए भारतीय फैसले के बावजूद अक्साई चिन पर चीनी कब्जे में फर्क नहीं पड़ेगा और वहां पर चीन की संप्रभुता और प्रशासनिक व्यवस्था बनी रहेगी।
गौरतलब है जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35 ए हटाने और राज्य के पुनर्गठन के फैसले से केंद्र शासित प्रदेश बना लद्दाख का हिस्सा अक्साई चिन तक फैला हुआ है और चीन आशंकित है कि दिल्ली के सीधे कंट्रोल में होने से वह अक्साई चिन में अपनी योजनाओं को आगे नहीं बढ़ा पाएगा। चीन ने वर्ष 1962 में एक संधि के जरिए चीन ने पाक अधिकृत कश्मीर का हिस्सा रहे अक्साई चिन पर अपना कब्जा जमा लिया था और जब भी कश्मीरी को लेकर कोई वाद-विवाद होता है, तो उसके कान खड़ हो जाते हैं।
दरअसल, वर्तमान में चीन और पाकिस्तान का व्यापार नवनिर्मित कराकोरम हाईवे से होता है, जो पश्चिमी कश्मीर क्षेत्र में दोनों देशों को जोड़ता है। अरबों डॉलर की लागत से निर्मित चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर परियोजना के तहत इस सड़क को कई लेन वाले हाईवे में विकसित कर रहा है, लेकिन भारत सरकार के उक्त कदम से चीन संभावित आशंका से हिल गया है।
चीन हमेशा से भारत-चीन सीमा के पश्चिम में स्थित चीनी क्षेत्र को भारत द्वारा अपने प्रशासनिक क्षेत्र में शामिल करने की कोशिशों का विरोध करता आया है। यही कारण है कि अनुच्छेद-370 को हटते ही चीन परेशान हो गया है और बाकयदा बयान जारी करके कहा है कि घरेलू कानून में एकतरफा बदलाव लाकर भारत चीन की क्षेत्रीय संप्रभुता को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रही है।
दिलचस्प बात यह है कि चीन भारत के जिस घरेलू कानून को अपनी संप्रुभता के लिए खतरा बता रहा है, ऐसे ही घरेलू कानून के जरिए वह विवादित दक्षिणी चीन सागर पर दावा पेश करने वाले पड़ोसी देशों पर हावी होने के लिए इस्तेमाल कर रहा है। चीन का दो मुंहेपन का जवाब भारत को डोकलम विवाद की भाषा में ही देना होगा, क्योंकि चीन सीमा विस्तार के लिए कुछ भी कर गुजरने के गुरेज नहीं करता है।
भूटान क्षेत्र में पड़ने वाले डोकलम पर कब्जा करने के इरादे से चीन ने वहां के आसपास एकाएक अपनी सैन्य ताकत बढ़ाते हुए मौके पर तोपखाने, टैंक, हथियार और भारी वाहनों के चलने लायक सड़क बनानी शुरू कर दी थी। इसी क्रम में चीनी सैनिकों ने डोकलम के आसपास वाले इलाके से भारत के बंकरों को हटाने को लेकर चेतावनी जारी करने के बाद भारतीय के दो बंकरों को बुलडोजर की मदद से नष्ट कर दिया।
भारतीय सैनिकों के विरोध करने पर चीनी सैनिकों ने उनके साथ धक्का-मुक्की भी की, लेकिन किसी भी सूरत में डोकलम से हटने को तैयार नहीं थे. पूरे 21 दिन तक चले इस गतिरोध के बाद भारत ने सिक्किम के आसपास के इलाके में और अधिक सैनिक तैनात कर दिए। भारत के लिहाज से डोकलम इसलिए बेहद महत्वपूर्ण है, जो भारत की उस सीमा से जुड़ती है, जहां से भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को रास्ता खुलता है।
चीन को बिल्कुल अंदेशा नहीं था कि भारत भूटान की सीमा की रक्षा के लिए इतने कड़क अंदाज में पेश आएगा और गतिरोध के एक महीने बाद चीन को मजबूरन डोकलम से अपने सैनिकों को वापस बुलाना पड़ गया। हालांकि चीन कहता है कि डोकलम से भारतीय सेना के हटने के बाद ही उसने अपने सैनिकों को डोकलम से वापस बुलाया।
हालांकि बाद में चीनी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने डोकलम विवाद पर भारत की प्रतिक्रिया पर भड़ास निकालते हुए लिखा कि भारत को कड़ा सबक सिखाना चाहिए और आगे लिखा कि भारत अगर चीन के साथ अपने सीमा विवादों को और हवा देता है तो उसे वर्ष 1962 से भी गंभीर नुकसान झेलना पड़ेगा. इसके जवाब में तत्कालीन रक्षा मंत्री अरूण जेटली ने चीन को देते हुए बतला दिया कि वर्ष 1962 और वर्ष 2017 के भारत में बहुत फर्क है।