जम्मू-कश्मीर से 143 वर्ष बाद अब खत्म होगी 'दरबार मूव' की परंपरा
बंगलुरू। 31 अक्टूबर, 2019 की तारीख भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा जब जम्मू कश्मीर प्रदेश में 143 वर्ष पुरानी परंपरा का अंत हो जाएगा। जी हां, 31 अक्टूबर को दो भागों में विभाजित जम्मू-कश्मीर और लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश के रूप में तब्दील हो जाएंगे। यह सब संभव हुआ जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35 ए के हटने के बाद। दरबार मूव परंपरा की शुरूआत महाराजा रणवीर सिंह ने वर्ष 1872 में की थी।
इसी परंपरा के तहत गर्मियों और सर्दियों के मौसम में राज्य की राजधानी को 6-6 महीने के लिए जम्मू और श्रीनगर में अब तक स्थानांतरित किया जाता रहा है। इस 'दरबार मूव (Darbar Move) परंपरा को खत्म करने के लिए बीजेपी लगातार प्रयास कर रही, जिसके पीछे प्रतिवर्ष सरकारी खजाने से तकरीबन 600 करोड़ रुपए अनाश्यक खर्च होता था।
हालांकि राजा रणवीर सिंह ने वर्ष 1872 में जब दरबार मूव परंपरा की शुरूआत की थी, तो इसके पीछे उनका मकसद जम्मू और कश्मीर के लोगों के बीच आपसी भाईचारा व सौहार्द कायम करना था, लेकिन आज के जमाने में यह अप्रासंगिक हो चली है और अब जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के रूप में दो केंद्रशासित प्रदेश के रूप में गठित होने के बाद यह परंपरा बेतुकी हो गई है।
दरबार मूव परंपरा के साथ ही अब जम्मू-कश्मीर विधानसभा का कार्यकाल भी छह से पांच साल कर दिया जाएगा, जिसके तहत ही छह-छह महीने बाद दरबार मूव की प्रक्रिया पर अमल किया जाता रहा है। दशकों से प्रभावी दोनों व्यवस्थाएं कश्मीर केंद्रित पार्टियों को भाती रही हैं, लेकिन जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा छिनने और दो केंद्रशासित प्रदेश के रूप में गठने होने के बाद प्रदेश में लागू कुल 23 व्यवस्थाएं 31 अक्टूबर को बदल जाएगी, जिनमें दरबार मूव और राजधानी स्थानांतरित की व्यवस्थाएं शामिल हैं।
परंपरा
की
आहुति
में
निकले
अरबों
रुपए
से
होगा
विकास
दरबार
मूव
परंपरा
के
खत्म
होने
से
राजधानी
स्थानांतिरत
करने
में
आने
वाले
खर्चों
से
ही
जम्मू-कश्मीर
के
खजाने
को
बचाया
जा
सकेगा,
जिसे
राज्य
के
विकास
में
लगाया
जा
सकेगा।
इससे
राजधानी
स्थानांतरण
के
दौरान
स्थानांतिरत
होने
वाले
दोनों
क्षेत्रों
के
अधिकारी
और
कर्मचारी
जम्मू
और
श्रीनगर
में
स्थायित्व
भी
मिलेगा,
जो
प्रत्येक
वर्ष
6
महीने
के
अंतराल
पर
श्रीनगर
और
जम्मू
के
बीच
में
झूलते
रहते
थे।
दरबार परंपरा के खात्मे के बाद अब सरकार के साथ सिर्फ मुख्य सचिव व प्रशासनिक सचिव राजधानी में बैठेंगे, जिससे दरबार को एक जगह से दूसरी जगह पर लाने-ले जाने और सुरक्षा कर्मियों को ठहराने पर खर्च होने वाले अरबों रुपए आसानी से बचाए जा सकेंगे। कहा जाता है दरबार मूव परंपरा ने प्रदेश वीआईपी कल्चर को बढ़ावा मिलता था, लेकिन जम्मू-कश्मीर में शासित किसी भी सरकार ने इसको खत्म करने को लेकर कोई पहल नहीं की।
भाजपा बुद्धिजीवी सम्मेलन में उठा था दरबार मूव का मुद्दा
पिछले 143 वर्ष से सिर पर मैला ढोने जैसी पंरपरा के खिलाफ भाजपा के बुद्धिजीवी सम्मेलन में उठाया गया था। हालांकि बीजेपी की जम्मू यूनिट लगातार इसके खात्मे के खिलाफ आंदोलन करती रही है। इस पंरपरा के खिलाफ सेवानिवृत्त एसएसपी भूपेन्द्र सिंह ने प्रधानमंत्री कार्यालय के राज्यमंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह की मौजूदगी में उठाया था।
भूपेंद्र सिंह ने केंद्र शासित प्रदेश के रूप में जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के बाद दरबार मूव की प्रक्रिया को रोक लगाने की अपील की थी। दरबार परंपरा के खात्मे के बाद कश्मीर की फाइलें कश्मीर में और जम्मू की फाइलों को स्थायी तौर पर जम्मू में रखने का प्रस्ताव रखा। वहीं, सचिवालय का कामकाज ई-फाइलों के जरिए निपटाने की सिफारिश की गई।
अप्रासंगिक पंरपरा के खिलाफ 143 वर्ष में नहीं उठी आवाज
वर्ष 1872 में जब राजा रणवीर सिंह ने दरबार मूव की परंपरा की शुरूआत की थी, तब से कितना पानी झेलम और चिनाब में बह चुका है, लेकिन सत्ता में बैठी किसी भी सरकार ने यह जहमत नहीं उठाया कि दरबार मूव परंपरा पर हो रहे बेहिसाब खर्च और मुश्किलों को देखते हुए इसको खत्म करने के लिए पहल करे।
दरबार मूव परंपरा से वीआईपी कल्चर को ही शह नहीं मिलती थी बल्कि यह शाह खर्च सरकारी खजाने को खोखला करने के लिए काफी था। इस पंरपरा के तहत राज्य की राजधानी छह महीने जम्मू और छह महीने श्रीनगर रहती थी और दोनों राजधानियों के हर छह महीने में किया जाने वाला स्थानांतरण और स्थानांतरण के लिए राज्य के खजाने किया जाने वाला खर्च नॉन प्रोडेक्टिव था।
सचिवालय,
हाईकोर्ट
व
अन्य
विभागों
का
होता
था
स्थानांतरण
अनुच्छेद
370
और
35
ए
हटने
से
पहले
जम्मू
कश्मीर
भारत
का
एक
अकेला
ऐसा
राज्य
था,
जहां
सचिवालय,
हाईकोर्ट
समेत
अन्य
विभागों
के
कार्यालयों
को
छह-छह
महीने
के
अंतराल
पर
खानाबदोश
की
तरह
कभी
श्रीनगर
और
कभी
जम्मू
में
स्थानांतरित
होनो
पड़ता
था।
राजधानी
स्थानांतरण
की
प्रक्रिया
गर्मियों
में
जम्मू-कश्मीर
की
राजधानी
श्रीनगर
में
अप्रैल
माह
की
आखिरी
सप्ताह
में
शिफ्ट
किया
जाता
था
और
सर्दियों
से
पहले
ही
अक्टूबर
माह
की
आखिरी
सप्ताह
में
राजधानी
को
जम्मू
में
शिफ्ट
कर
दिया
जाता
था।
प्राकृतिक एवं भौगोलिक परिस्थितियों के चलते शुरू हुई थी परंपरा
वर्ष 1872 में जम्मू-कश्मीर के डोगरा शासनकाल के दौरान महाराजा गुलाब सिंह ने इसकी शुरूआत की थी. इसके पीछे तर्क यह था कि राज्य की प्राकृतिक एवं भौगोलिक परिस्थितियां के चलते ऐसा किया जा रहा है। वहीं यह भी कहा गया कि दोनों क्षेत्रों के बीच आपसी भाईचारा व सौहार्द कायम करने के लिए ऐसा किया था। तब दरबार मूव की परंपरा पर हर साल करीब 300 करोड़ रुपए खर्च किए जाते थे।
सचिवालय सहित अन्य प्रमुख कार्यालयों में कार्य करने वाले करीब 8000 कर्मचारियों का स्थानांतरण हर छह महीने करने से सरकारी खजाने पर जोर पड़ता था। इस दौरान कर्मचारियों को टीए भत्ते के तौर पर ही 10 हजार रुपए भी दिए जाते थे। उस समय राजधानी स्थानांतरण का काम बैलगाड़ी और घोड़ागाड़ी के जरिए किया जाता था और महाराजा का दरबार शिफ्ट होने के बाद हर छह महीन में एक बड़ा समारोह भी आयोजित किया जाता था।
स्थायी
सचिवालय
से
कम
होगी
जम्मू-श्रीनगर
के
लोगों
की
परेशानी
कहां
जाता
है
जब
वर्ष
1872
में
राजा
रणवीर
सिंह
ने
दरबार
परंपरा
की
शुरूआत
की
थी,
तो
इसके
पीछे
यह
सोच
थी
कि
लोगों
को
सुविधा
होगी
और
इससे
उन्हें
एक
अच्छा
शासन
चलाने
में
भी
मदद
मिलेगी,
लेकिन
मौजूदा
समय
में
ई-गर्वनेंस
जैसी
तकनीकी
ने
हर
उस
समस्या
का
हल
ढूंढ
लिया
है,
जो
बीते
जमाने
में
दुष्कर
थी।
आज
के
जमाने
में
जब
सूचना
एवं
प्रौद्योगिकी
ने
इतनी
तरक्की
कर
ली
है,
ऐसे
समय
में
लोगों
की
सुविधा
के
लिए
राजधानी
स्थानांतरण
बेतुकी
ही
नहीं,
बेवकूफी
वाली
पंरपरा
लगती
है।
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