सुप्रीम कोर्ट पहुंचा जमीयत उलेमा-ए-हिंद, तीन तलाक कानून की संवैधानिक वैधता को दी चुनौती
नई दिल्ली। जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने तीन तालाक कानून की संवैधानिक वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए याचिका दायर की है। जमीयत उलेमा ने याचिका दायर कर कहा है तीन तलाक कानून का केवल एक ही उद्देश्य है और वो है मुस्लिम पतियों को दंडित करना। ऐसे में यह मुस्लिम पतियों के साथ अन्याय है। बता दें कि इस संगठन ने तीन तलाक को लेकर बनाए गए नए कानून को मानने से इंकार कर चुका है।
इससे पहले पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी सरकार के एक मंत्री ने मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) कानून-2019 को नहीं मानने का ऐलान किया था। ममता सरकार में मंत्री सिद्दिकुल्लाह चौधरी ने कहा है कि वे मानते हैं कि नया कानून इस्लाम पर हमला है, इसलिए उसे स्वीकार नहीं करेंगे। उन्होंने बिल पास होने के बारे में कहा है कि "यह बहुत दुख का विषय है, यह इस्लाम पर हमला है। हम इसे स्वीकार नहीं करेंगे। जब सेंट्रल कमिटी की बैठक होगी, तब हम आगे की कार्रवाई पर फैसला करेंगे।" गौरतलब है कि ममता के ये मंत्री जमीयत उलेमा-ए-हिंद के पश्चिम बंगाल यूनिट के अध्यक्ष भी हैं।
बता दें कि मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) कानून-2019 के तहत अब एक साथ तीन तलाक गैर-कानूनी हो चुका है और इस अपराध के जुर्म में अपराधी को 3 साल तक की सजा के साथ-साथ जुर्माना भी देना पड़ सकता है। अब मुस्लिम पति बोलकर, लिखित या किसी भी माध्यम से बीवी को तीन तलाक नहीं दे सकता, क्योंकि यह संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आ चुका है। यही नहीं अगर पीड़िता पुलिस के पास शिकायत लेकर जाती है तो आरोपी को मैजिस्ट्रेट भी तभी बेल दे पाएगा, जब वह पीड़िता का पक्ष भी सुन ले। यही नहीं मैजिस्ट्रेट की इजाजत से तलाक हो जाने की स्थिति में भी पत्नी अपने पति से गुजारा भत्ता मांग सकती है। ये वो प्रावधान हैं जिनका मौलाना शुरू से विरोध करते रहे थे, लेकिन अब सरकार ने इस कड़े कानूनी प्रावधान को लागू कर दिया है।
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