जैन थे चंद्रास्वामी, तंत्र-मंत्र, ज्योतिष कुछ नहीं जानते थे
भारत के सबसे विवादास्पद तांत्रिकों में शुमार चंद्रास्वामी का जीवन एक से बढ़कर एक रहस्यों से घिरा हुआ था, उनके जीवन से जुड़ी दिलचस्प घटनाओं की पड़ताल
दिल्ली के ओपोलो अस्पताल में बीते दो सप्ताह से चंद्रास्वामी गंभीर रूप से बीमार थे लेकिन दुनिया को इसका पता तब लगा जब 66 साल की उम्र में उनकी मौत हो गई.
जो चंद्रास्वामी एक दौर में एक साथ कई देशों की सरकार के ताकतवर लोगों के साथ उठने-बैठने के लिए मशहूर थे वो बीते कुछ सालों से लगभग गुमनामी में रह रहे थे.
आँखों में धूल झोंक कर मुरीद बनाते थे चंद्रास्वामी
भारतीय तांत्रिक ने दिखाया था थैचर को भविष्य
चंद्रास्वामी की कहानी गुमनामी से निकलकर भारतीय राजनीति के केंद्र में कई सालों तक रहे.
उनकी शख्सियत कैसी थी, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक ओर तो उन्हें भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव का सबसे नज़दीकी सलाहकार माना जाता रहा तो दूसरी तरफ उन पर राजीव गांधी की हत्या के षड्यंत्र में शामिल होने का आरोप भी लगा.
इन आरोपों के बीच में कई देशों के शासनाध्यक्षों से मधुर संबंध, हथियारों की दलाली और हवाला का कारोबार, विदेशी मुद्रा अधिनियम का उल्लंघन जैसे कई संगीन आरोपों से भी चंद्रास्वामी सुर्खियों में रहे.
कहने वाले तो ये भी कहते हैं कि पीवी नरसिम्हाराव के पांच साल के प्रधानमंत्रीत्व काल में चंद्रास्वामी को कभी प्रधानमंत्री से मिलने के लिए पहले से अप्वाइंटमेंट की ज़रूरत नहीं पड़ी. यह सिलसिला चंद्रशेखर के छोटे से कार्यकाल के दौरान भी बना रहा.
प्रधानमंत्री के करीबी
ऐसे में ये जानना बड़ा दिलचस्प है कि दिल्ली जयपुर हाईवे में ठीक मध्य में स्थित बहरोर के एक जैन परिवार का लड़का कैसे सत्ता का सामानांतर केंद्र चलाने की हैसियत में पहुंच गया.
चंद्रास्वामी के पिता धर्मचंद जैन सूद पर पैसे उठाने का काम करते थे. परिवार वैसे तो गुजरात का था, लेकिन चंद्रास्वामी के जन्म से सालों पहले परिवार राजस्थान में आ गया था और उनके जन्म के कुछ सालों बाद परिवार हैदराबाद में जाकर बस गया था.
चंद्रास्वामी के शुरुआती जीवन के बारे में हीरा लाल चौबे की जीवनी बताती है कि नेमिचंद (चंद्रास्वामी का असली नाम) ने कोई शिक्षा हासिल नहीं की थी.
बचपन से तंत्र साधना में उनकी दिलचस्पी हो गई और 16 साल की उम्र मे वे सन्यासी या कहें तांत्रिक कहलाने लगे. हीरा लाल चौबे के मुताबिक चंद्रास्वामी ने सबसे पहले जैन संत महोपाध्याय अमर मुनि के सानिध्य में आए. 23 साल की उम्र में बनारस में गोपीनाथ कविराज के पास पहुंच गए, तंत्र मंत्र की साधना करने. 26 साल की उम्र में उन्होंने पहला महायज्ञ कर लिया. बीच में बिहार में कुछ साल रहे.
तंत्र मंत्र और ज्योतिष
लेकिन वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय के मुताबिक चंद्रास्वामी को ना तो तंत्र-मंत्र आता था और ना ही उन्हें ज्योतिष का कोई ज्ञान था.
पीवी नरसिम्हाराव के सलाहकारों में रहे वरिष्ठ पत्रकार वेद प्रताप वैदिक भी कहते हैं, "चंद्रास्वामी व्यवहार कुशल तो बहुत थे लेकिन उन्हें तंत्र विद्या और ज्योतिष का ना तो ज्ञान था और ना इन विषयों पर उनका कोई अध्ययन."
चंद्रास्वामी की तंत्र साधना के बारे में राम बहादुर राय बताते हैं, "1965-1966 के दौर में हिंदुस्थान समाचार एजेंसी का दफ्तर कनाट प्लेस के फ़ायर ब्रिगेड लेन में हुआ करता था. वहां एक न्यूज़ एडिटर होते थे रामरुप गुप्त. वे बड़े ज्योतिषी थे. चंद्रास्वामी लोगों की कुंडलियां लेकर उनके पास आते रहते थे और गुप्त जी जो बताते वो चंद्रास्वामी लोगों को बताते रहे."
चंद्रास्वामी के जीवन से इतर भी उनके जीवन के बारे में कुछ जानकारियां मौजूद हैं. स्टोरीज ऑफ इंडियाज लीडिंग बाबाज़ की लेखिका भवदीप कांग से मोहन गुरुस्वामी ने कहा है, "हम चंद्रास्वामी को हैदराबाद के सिटी कॉलेज के बाहर आवारागर्दी करते देखा करते थे."
उन्होंने ये भी कहा है कि चंद्रास्वामी नागार्जुन सागर डैम प्रोजेक्ट में स्क्रैप डीलर का काम भी करने लगे थे, फिर किसी धांधली में फंसे और थोड़े ही साल में राज्य के मुख्यमंत्री पीवी नरसम्हिाराव के साथ स्वामी के तौर पर नजर आने लगे.
नरसिम्हाराव से क़रीबी
पीवी नरसिम्हाराव 1971 से 1973 के बीच आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री हुआ करते थे. चंद्रास्वामी की तबसे नरसिम्हा राव से नजदीकियां बन गई थीं. राजनीतिक गलियारों में चंद्रास्वामी के आने का क़िस्सा 1971 से थोड़ा पुराना है.
वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय बताते हैं, "सिद्धेश्वर प्रसाद बिहार से 1962 में लोकसभा के लिए चुनकर आ गए थे. जमीनी नेता हैं, 90 साल के हैं. 1965-66 के आसपास में उनके सर्वेंट क्वार्टर में दो लड़के रहा करते थे- एक थे चतुर्भुज गौतम, जो बाद में चंद्रशेखर के निजी सचिव बने और दूसरे थे चंद्रास्वामी."
राम बहादुर राय के मुताबिक वो दौर ऐसा था जब चंद्रास्वामी कांग्रेसी नेताओं के घरों के चक्कर लगाते, रामगुप्त जी से कुंडली बनवाते और धीरे धीरे सत्ता की दलाली में लिप्त होते गए और आंध्र प्रदेश से लेकर राजस्थान, हरियाणा सब ओर जगह बनाते गए.
अपने लंबे बाल-दाढ़ी, पीले वस्त्रों और रुद्राक्ष की माला के साथ चंद्रास्वामी में काफ़ी कुछ ऐसा था जिसका जादू दूसरों के सिर पर चढ़कर बोलने लगा था. प्रसिद्ध इतिहासकार पैट्रिक फ्रैंच ने इंडिया- ए पोट्रेट में चंद्रास्वामी के बारे में लिखा है- "वो कोई सभ्य आदमी तो नहीं थे, लेकिन उनमें दूसरों के दिमाग को जीतने का हुनर था. वे दूसरों की कमजोरियां पढ़ लेते थे, ख़ासकर वैसे लोग जो बहुत पॉवरफुल जगहों पर थे. ऐसे लोगों को पैसे और ताक़त की वजह से लोगों के धोखा देने का डर सताता रहता था."
ख़ास बात ये है कि चंद्रास्वामी ख़ुद अंग्रेजी नहीं पढ़ पाते थे और न ही बोल पाते थे, लेकिन दुनिया के कई देशों के ताक़तवर हुक्मरानों पर उनका ख़ासा प्रभाव हो चला था.
पूर्व विदेश मंत्री के नटवर सिंह ने अपनी पुस्तक 'वाकिंग विद लाइंस' में लिखा है, "1979-80 में मैं पेरिस में बीमार पड़ा था. चंद्रास्वामी उस वक्त फ्रांसीसी राष्ट्रपति के निजी फिजिशयन के साथ मुझसे मिलने आए थे, ये देखकर ही मैं सकते में था कि उन्होंने मुझसे कहा कि वे सीधे यूगोस्लाविया से फ्रांसीसी राष्ट्रपति से मिलने आए हुए हैं. फ्रांसीसी राष्ट्रपति ने लेने कि लिए अपना निजी विमान भेजा था."
इसी पुस्तक में नटवर सिंह ने उस वाकये का भी जिक्र किया है जिसमें किस तरह से मार्गरेट थैचर के ब्रिटिश प्रधानमंत्री बनने की भविष्यवाणी की थी जो बाद में सच साबित हुई.
ब्रिटिश प्रधानमंत्री ही नहीं, बल्कि ब्रूनेई के सुल्तान, बहरीन के शासक, जायरे के राष्ट्राध्यक्ष भी चंद्रास्वामी के भक्त हो गए थे.
हथियार डीलर अदनान ख़ शोगी से नज़दीकी
इस स्थिति में पहुंचने की एक वजह चंद्रास्वामी की सऊदी अरब के हथियार कारोबारी अदनान खशोगी से कारोबारी संबंधों की अहम भूमिका रही.
राम बहादुर राय कहते हैं, "अदनान खाशोगी को भारत में लाने वाले चंद्रास्वामी ही थे. हथियारों की खरीद बिक्री में कमीशनखोरी का खेल शुरू हो चुका था. लेकिन मुझे ये भी लगता है कि भारत की खुफिया एजेंसी रॉ ने भी चंद्रास्वामी का इस्तेमाल अपने हितों के लिए किया. उन्हें जिस तरह का एक्सेस दिया जा रहा था, उससे लगता है कि सरकार उनके मेल-जोल से अपने लिए भी जानकारियां जुटाती रही."
वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी एक वाकये का जिक्र करते हैं, "1993-94 में चंद्रास्वामी की मां का निधन हुआ था, राजस्थान के बहरोर में तेरहवीं को कवर करने के लिए उस वक्त के इकलौते चैनल ज़ी न्यूज की ओर से मुझे भेजा गया था. 40-45 हज़ार लोग शामिल हुए थे और बॉलीवुड के कम से कम 20 सितारे वहां मौजूद थे."
राम मंदिर मामले में मध्यस्थता
विजय त्रिवेदी चंद्रास्वामी के बारे में बताते हैं, "वे बेहद विवादास्पद थे लेकिन सभी पार्टियों में उनकी एक तरह से स्वीकार्यता थी. राम मंदिर निर्माण कराने के लिए वे जब मध्यस्थता कर रहे थे तो उनकी बात मुलायम सिंह भी सुन रहे थे, नरसिम्हा राव भी और भाजपा की ओर से भैरो सिंह शेखावत भी. राजनीति में ऐसे फिक्सर समय के साथ सामने आते रहते हैं."
राम मंदिर के निर्माण के लिए 1993 में चंद्रास्वामी ने अयोध्या में सोम यज्ञ का आयोजन किया था. इस आयोजन में शामिल होने के लिए दुनिया भर से हिंदू जुटे थे.
इस यज्ञ को कवर कर चुके वरिष्ठ पत्रकार शरद गुप्ता बताते हैं, "उस दौर में लखनऊ में कोहिनूर होटल हुआ करता था. उस होटल का मालिक भी चंद्रास्वामी का शिष्य हुआ करता था. चंद्रास्वामी के कहने पर पूरा होटल ही इन लोगों के लिए बुक था और हर तरफ़ वोदका पीकर झूमते विदेशी सन्यासी नजर आ रहे थे. और सबके सब चंद्रास्वामी के भक्त."
पामेला बोर्डेस की कहानी 1989 में ही सामने आ चुकी थी कि किस तरह से चंद्रास्वामी की सोहबत में वो पैसे और सेक्स की दुनिया में डूबती चली गई थीं.
1982 की मिस इंडिया रहीं पामेला बोर्डेस ने 'डेली मेल' को दिए इंटरव्यू में बताया था कि अदनान ख़ाशोगी और चंद्रास्वामी के लिए वो सेक्सुअल प्रजेंट के तौर पर काम करती रहीं.
जेल तक जाना पड़ा
चंद्रास्वामी ने पावर, सेक्स, हथियार, मनी, और पॉवर ब्रोकिंग को वो काकटेल बना लिया था, जिसमें वे फिक्सिंग के किंग बनकर उभर चुके थे.
लेकिन इस दौड़ में हमेशा एक सा वक्त नहीं रहता. 1996 के बाद चंद्रास्वामी का बुरा दौर शुरू हुआ और एक के बाद एक उन पर मुकदमे चलने शुरू हो गए तो उन्हें तिहाड़ जेल जाना पड़ गया.
चंद्रास्वामी सत्ता के केंद्र से बाहर हो गए लेकिन उनके दोस्त हर जगह मौजूद थे लिहाजा तमाम मुकदमों के बावजूद वे दिल्ली के आलीशान इलाके में बने फॉर्म हाउस में जमे रहे.
वेद प्रताप वैदिक चंद्रास्वामी से अपने आत्मीय संबंधों का हवाला देते हुए कहते हैं, "उसमें अपनी सारी ऊर्जा उलटे सीधे कामों में लगा दी थी, वो चाहता तो बेहतर कर सकता था."
राम बहादुर राय कहते हैं, "लोग ये भूल जाएंगे कि कभी चंद्रास्वामी की हैसियत प्रधानमंत्री के सबसे खास आदमी की थी, लोगों को बोफोर्स, सेंट किट्स, विदेशी मुद्रा का उल्लंघन, ईरान कोन्ट्रा हथियार डील, पैसों की धोखाधड़ी जैसे मामले याद आएंगे."