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जलियांवाला बाग़ का वो मंज़र और ज़ख़्मों के निशां

जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड के 99 साल हो चुके हैं, लेकिन पीड़ित परिवारों के ज़हन में उसका दर्द आज भी मौजूद है. 13 अप्रैल 1919 को हुए उस नरसंहार का समूचे भारत में विरोध हुआ और इस घटना ने आजादी की लड़ाई को नया रंग दिया.

जनरल डायर के आदेश पर 50 बंदूकधारियों ने बैसाखी का उत्सव मनाने जुटी निहत्थी भीड़ पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाईं.

By BBC News हिन्दी
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Ravinder Singh Robin/BBC
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जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड के 99 साल हो चुके हैं, लेकिन पीड़ित परिवारों के ज़हन में उसका दर्द आज भी मौजूद है. 13 अप्रैल 1919 को हुए उस नरसंहार का समूचे भारत में विरोध हुआ और इस घटना ने आजादी की लड़ाई को नया रंग दिया.

जनरल डायर के आदेश पर 50 बंदूकधारियों ने बैसाखी का उत्सव मनाने जुटी निहत्थी भीड़ पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाईं.

इतिहासकार कहते हैं कि उस नरसंहार में एक हज़ार से अधिक निर्दोष भारतीय मारे गए और 1100 से अधिक घायल हुए.

बिना किसी चेतावनी के गोलियां चलवाईं थीं डायर ने

डेविड कैमरन, जालियाँवाला बाग़ हत्याकांड
Getty Images
डेविड कैमरन, जालियाँवाला बाग़ हत्याकांड

हालांकि ब्रिटिश सरकार ने बहुत बाद में जाकर 2013 में तात्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन की यात्रा के दौरान इस हत्याकांड को 'शर्मनाक' घटना के रूप में वर्णित किया.

क़रीब एक शताब्दी बीत चुकी है, लेकिन जलियाँवाला बाग़ के पीड़ितों के रिश्तेदारों के ज़हन में आज भी अपने प्रियजनों की यादें मौजूद हैं. इनमें से कुछ ने बीबीसी को दिल को छूने वाली उनकी कहानियां सुनाईं.

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जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड
Ravinder Singh Robin/BBC
जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड

रिटायर्ड हेडमास्टर सतपाल शर्मा ने बताया कि उनके दादा अमीन चंद, जो तब 45 साल के थे, यह जानते हुए भी कि शहर में तनाव का माहौल है उस बैठक में शामिल होने लंबे काले कोट और सफ़ेद पायजामे में जलियाँवाला बाग़ में गए थे.

इस दास्तां को सुनाते हुए उनके पिता ने उनसे कहा था कि उनके दादा, जो पेशे से एक हकीम थे, मंच के पास ही खड़े थे जब उन्हें गोली लगी.

सतपाल कहते हैं, "शहर में कर्फ्यू लगा था, इसलिए मेरे पिता उस दिन दादाजी का हाल जानने नहीं जा सके, लेकिन अगले दिन शवों के ढेर से उनकी भी बॉडी मिली."

जलियाँवाला बाग़ कांड: कब क्या हुआ?

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Ravinder Singh Robin/BBC
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मंदिरों से अधिक जलियाँवाला बाग पवित्र

सतपाल शर्मा बताते हैं कि उनके दादा के निधन के बाद से उस हत्याकांड में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देने उनकी दादी और उनके पिता हमेशा जलियाँवाला बाग़ जाते हैं. इस बाग़ को लेकर भावनाएं इतनी गहरी हैं कि सतपाल शर्मा की पत्नी कृष्णा शर्मा की नज़र में जलियाँवाला बाग़ किसी अन्य मंदिर से अधिक पवित्र स्थान है.

सतपाल शर्मा की पत्नी कृष्ण शर्मा कहती हैं, "इसे लेकर जज़्बात इतने अधिक हैं कि शर्मा जी की शादी के तुरंत बाद मेरे ससुर ने स्वर्ण मंदिर जाकर ईश्वर का आशीर्वाद लेने से पहले जलियाँवाला बाग़ ले जाकर शहीदों को श्रद्धांजलि दी."

जब उन्होंने अपने पति और ससुर से उस ख़ौफ़नाक दास्तां को सुना तो खुद भी बिना रोए नहीं रह सकीं. वो कहती हैं, "जब भी मेरे ससुर जलियाँवाला बाग़ जाते हैं वो रो पड़ते हैं."

कृष्ण शर्मा को शिकायत है कि पाठ्यक्रम में इस पर विस्तृत अध्याय नहीं है. लेकिन वो नियमित रूप से बच्चों को जलियाँवाला बाग़ ले जाती हैं ताकि उन्हें इस त्रासदी के बारे में बता सकें.

इस नरसंहार के पीड़ितों के रिश्तेदार अपने खोए हुए प्रियजनों को याद करते हुए भावुक हो उठते हैं.

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Ravinder Singh Robin/BBC
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ख़ौफ़नाक त्रासदी की यादें

लाला हरि राम के पोते महेश बहल कहते हैं कि उनकी दादी अक्सर उनके साथ अपना दुख साझा करते हुए उस ख़ौफ़नाक त्रासदी का वर्णन करती थीं.

महेश बहल ने पुरानी दुखद यादें ताज़ा करते हुए कहा, "मेरे दादा को जब घर लाया गया था तो उनकी छाती और पैर में गोलियां लगी थीं और बेहद ख़ून बह रहा था. शहर शोरगुल से भरा था और यहां तक कि कोई चिकित्सा सहायता उपलब्ध नहीं थी. उनके आखिरी शब्द थे कि वो देश के लिए मर रहे हैं और उनके बेटों को भी देश के लिए अपना जीवन कुर्बान करने के रास्ते पर चलना चाहिए."

उन्होंने भारी मन से याद किया कि कैसे उनकी दादी ने खीर बनाई थी क्योंकि उस दिन दादाजी घर आकर खीर खाना चाहते थे. लेकिन वो फिर कभी घर नहीं लौटे.

वो कहते हैं, "हमारे परिवार ने बहुत कष्ट उठाए हैं. मेरे दादाजी की मृत्यु के बाद हमने उनके कहे अनुसार तात्कालीन ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ लड़ाई जारी रखी. 1997 में जब क्वीन एलिज़ाबेथ भारत आईं तो हमने दिल्ली में अपने हाथों में तख्तियां लेकर विरोध प्रदर्शन किया, जिस पर लिखा था 'बिन प्रायश्चित, महारानी की अमृतसर यात्रा अर्थहीन'."

बहल यह बताते-बताते देशभक्ति के गीत गाने लगते हैं.

त्रासदी के 100वें साल को याद करने के लिए सरकार ने कई कार्यक्रम शुरू किए हैं, लेकिन इन परिवारों को इसे लेकर बहुत दिलचस्पी नहीं है.

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'बिना शर्त माफ़ी मांगे ब्रिटेन'

यह दो साल पहले की बात है जब पंजाब सरकार ने महेश बहल और सतपाल शर्मा को पहचान पत्र जारी किया है.

वो अफ़सोस से कहते हैं, "हमें इस कार्ड के लाभ की जानकारी नहीं है, सिवाय इसके कि हमें इसके ज़रिए पंजाब के कई टोल प्लाज़ा पर टोल देने से छूट मिली है."

पीड़ित परिवारों को लगता है कि ब्रिटिश सरकार को ब्रिटेन की संसद में इस मुद्दे पर निश्चित ही बिना शर्त माफ़ी मांगनी चाहिए.

एस. के. मुखर्जी लंबे समय से जलियाँवाला बाग़ की देखभाल कर रहे हैं. मुखर्जी के दादा जलियाँवाला बाग़ नरसंहार में जीवित बचे कुछ लोगों में से एक थे.

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Ravinder Singh Robin/BBC
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1997 में जलियाँवाला बाग़ की यात्रा के दौरान क्वीन एलिज़ाबेथ और ड्यूक ऑफ़ एडिनबरा के हस्ताक्षर को दिखाते हुए मुखर्जी ने कहा, "मुझे ज़्यादा नहीं मालूम, माफ़ी से घाव भरे जा सकते हैं क्या, लेकिन अब इससे आगे बढ़ते हुए स्मारक को विकसित करने पर ध्यान देना चाहिए और उन काले दिनों की यादों को बचाए रखना चाहिए."

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English summary
Jail Jawala Gardens and the injuries to the wounds
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