J&K:जानिए मोदी सरकार ने मनोज सिन्हा को ही LG क्यों बनाया
नई दिल्ली- मोदी सरकार अबतक ज्यादातर बड़े फैसले चौंकाकर ही लेती रही है। इसलिए जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल गिरिश चंद्र मुर्मू के इस्तीफे और उनकी जगह मनोज सिन्हा की तैनाती के भी फैसले ने लोगों को जरूर चौंकाया है। खास बात ये भी है कि ये सारा घटनाक्रम जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल-370 के खात्मे की पहली वर्षगांठ पर हुआ है। लेकिन, इतना तो तय है कि भले ही ऐसा लग रहा हो कि ये सब कुछ अचानक हुआ है, लेकिन ऐसा है नहीं। आइए आपको बताते हैं कि 1985 बैच के गुजरात कैडर के आईएएस अधिकारी की जगह पर एक इंजीनियर से राजनेता बने मनोज सिन्हा की तैनाती की असल वजह क्या है।
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मनोज सिन्हा का सियासी और प्रशासनिक अनुभव
जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने के एक साल बाद एक नौकरशाह की जगह राजनेता को वहां का उपराज्यपाल बनाकर मोदी सरकार ने ये संकेत दे दिया है कि अब वहां आने वाले दिनों में राजनीतिक गतिविधियों को बढ़ावा देने की तैयारी है। 61 साल के मनोज सिन्हा के पक्ष में जो बातें है वह ये कि वो यूपी के गाजीपुर से तीन बार लोकसभा के सांसद रह चुके हैं, उनके पास केंद्र में रेल राज्यमंत्री जैसे पद पर रहने का प्रसासनिक अनुभव भी है। यही नहीं उनके पक्ष में एक बात ये भी जाती है कि वो पेशे से इंजीनियर भी रहे हैं और उनकी छवि भी बेदाग है और राजनीति का उनका अनुभव भी छात्र जमाने से रहा है और जिसमें वो हमेशा से तेज-तर्रार माने जाते रहे हैं। ये तो हुई वो खासियत जो जम्मू-कश्मीर जैसे संघ शासित प्रदेश के उपराज्यपाल की चुनौतियों को देखते हुए जरूरी माना जा सकता है। लेकिन, अगर पीएम मोदी और अमित शाह ने उनके नाम पर मुहर लगाई है तो उनके दिमाग में जरूर इससे भी कुछ और ज्यादा बातें रही होंगी और हम यहां उसी पर बात करने वाले हैं।
राजनीति में छात्र जीवन से ही तेज-तर्रार
यूपी में मनोज सिन्हा की छवि विकास पुरुष की रही है। वो गाजीपुर से 1998,1999 और 2014 में लोकसभा के सांसद रहे हैं। 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में भाजपा ने उन्हें अपना स्टार प्रचारक बनाया था और आखिरी वक्त तक वह मुख्यमंत्री पद के सबसे प्रबल दावेदार माने जा रहे थे। आईआईटी-बीएचयू के पूर्व छात्र रहे सिन्हा ने वहां 1970 के दशक में सिविल इंजीनियरिंग में दाखिला लिया। वह उस जमाने में भाजपा की युवा इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के भी सक्रिय सदस्य रह चुके हैं और 1982 में महज 23 साल की उम्र में छात्र राजनीति में इतने सक्रिय हो चुके थे कि बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी छात्र संघ के अध्यक्ष भी बन गए। यानि वो टेक्नोक्रैट हैं तो मंजे हुए राजनीतिज्ञ भी।
मोदी-शाह के बेहद भरोसेमंद
जहां तक जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल के लिए पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने उनका नाम क्यों तय किया जैसा सवाल है तो वन इंडिया से ही बातचीत में भाजपा सूत्रों ने बताया है कि वो पार्टी के दोनों ही शीर्ष नेताओं के बेहद प्रिय और भरोसेमंद हैं। उनका अनुभव, उनकी साफ-सुथरी छवि और हमेशा से विवादों से दूर रहने वाला उनका व्यक्तित्व वरिष्ठ नेताओं को काफी पसंद है। इसके अलावा इनकी विशेषता है कि टेक्नोक्रैट होने के बावजूद पूर्वांचल के ग्रामीण इलाकों में इनकी आम जनता में गहरी पकड़ है। 2019 के लोकसभा चुनाव में अगर इनकी हार न हुई होती तो मोदी कैबिनेट में इनको प्रमोशन मिलना भी तय था। लेकिन, संयोग से ये गाजीपुर सीट निकाल नहीं सके और तब से प्रधानमंत्री इनको एडजस्ट करने का कोई रास्ता खोज रहे थे। क्योंकि, पहले कार्यकाल में इन्होंने अपने काम से पीएम मोदी को खूब प्रभावित किया था।
जम्मू-कश्मीर के साथ-साथ बिहार चुनाव पर नजर
अगर जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल बनाए जाने के तत्कालिक कारण की बात करें तो लगता है कि जम्मू-कश्मीर में चुनाव करवाए जाने की तैयारी शुरू हो रही है। पूर्व उपराज्यपाल जीसी मुर्मू इस संबंध में बयान देकर विवादों में भी आ चुके हैं और चुनाव आयोग ने कहा था कि चुनाव की घोषणा पर सिर्फ उसी का एकाधिकार है। ऐसे में अगर वहां चुनाव होने हैं तो एक अफसरशाह के मुकाबले राजनेता उपराज्यपाल केंद्र को ज्यादा सूट कर सकता है। यही नहीं चुनाव बिहार में भी होने हैं। मनोज सिन्हा के साथ प्लस प्वाइंट ये है कि वो रहने वाले तो उत्तर प्रदेश के हैं, लेकिन ससुराल बिहार के भागलपुर जिले के सुलतानगंज में पड़ता है। इससे भी बढ़कर बात ये है कि वो जाति से भुमिहार भी हैं, जो बिहार में बहुत ही प्रभावी प्रेशर ग्रुप है। यानि मोदी-शाह की नजर में मनोज सिन्हा ही शायद ऐसे सबसे प्रभावी नाम थे, जिनसे एक साथ इतने सियासी और सामाजिक समीकरणों को साधा जा सकता था।
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