J&K DDC polls:Article-370 हटने के बाद कश्मीर घाटी में कितना मजबूत हुआ लोकतंत्र, आंकड़ों से समझिए
नई दिल्ली- जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir) की प्रमुख पार्टियां धारा-370 (Article-370) हटाने के बाद कश्मीरी आवाम को लेकर जो दावे कर रही थीं, लगता है कि डिस्ट्रिक्ट डेवलपमेंट काउंसिल (District Development Council) के चुनावों के जरिए कश्मीरी आवाम ने उन्हें झुठला दिया है। यह पूरे जम्मू-कश्मीर या सिर्फ जम्मू क्षेत्र की बात नहीं हो रही है, कश्मीर घाटी और आतंकवाद से सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों की बात है। इन इलाकों में जहां पिछले चुनावों तक कश्मीरियों ने मतदान केंद्रों से मुंह फेरे रखा था, लेकिन जम्मू-कश्मीर से विशेषाधिकार खत्म किए जाने के बाद हुए पहले चुनाव में कहानी पूरी तरह से पलटी हुई नजर आ रही है। लोगों ने दिल खोलकर जमीनी लोकतंत्र को गले लगाया है। हम यहां आपको उन इलाकों के आंकड़े बताने जा रहे हैं, जिसे देखकर आप चौंके बिना नहीं रह सकेंगे।
आर्टिकल-370 के बाद मजबूत हुआ लोकतंत्र
शनिवार को जम्मू-कश्मीर में 8 चरणों में करवाए गए डीडीसी चुनाव (DDC Elections) का अंतिम दौर खत्म हो गया। इस चुनाव में श्रीनगर, अवंतीपोरा, शोपियां और अनंतनाग जैसे इलाकों में पिछले साल के लोकसभा चुनावों और 2018 के पंचायत चुनावों की तुलना में काफी ज्यादा वोटिंग हुई है। वैसे भी ये इलाके पहले से कम वोटिंग वाले इलाके रहे हैं। हैरानी की बात है कि ये चुनाव ना सिर्फ आर्टिकल-370 (Article-370)की समाप्ति के बाद हुए हैं, बल्कि बेहद सर्द मौसम में भी करवाए गए हैं। जम्मू इलाके में हमेशा से ज्यादा वोटिंग होती आई है और इस बार भी वहां कुल 68.4% वोटिंग हुई है। लेकिन, भारतीय लोकतंत्र के लिए सबसे ज्यादा उत्साहित करने वाली बात ये है कि कश्मीर डिविजन में भी कुल 34.4% वोटिंग दर्ज की गई है। यह आंकड़े इसलिए चौंकाने लायक हैं, क्योंकि यहां हमेशा से कम वोटिंग की परंपरा देखी गई है।
खराब मौसम के बाद भी वोट डाले निकले कश्मीरी
देश की राजनीति के लिए सुखद चीज ये है कि आतंकवाद पीड़ित पुलवामा (Pulwama) और शोपियां (Shopian) में भी आम चुनावों से कहीं ज्यादा वोटिंग हुई है। राज्य के एक अधिकारी के मुताबिक, 'ज्यादा मतदान दो वजहों से महत्वपूर्ण है। एक तो यह चुनाव आर्टिकल 370 हटाने के बाद हो रहे हैं। दूसरा, गुपकार गठबंधन (PAGD)के नेता जो आज मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं, शुरू में उनकी ओर से दावा किया जा रहा था कि इन चुनावों के कोई मायने नहीं हैं और कोई भी इसमें भाग लेने के लिए तैयार नहीं होगा।' यानि, आर्टिकल 370 के बाद आसार से ज्यादा वोटिंग से यह साफ हो गया है कि कश्मीर घाटी (Kashmir Vally) की जनता लोकतंत्र (Democracy) में विश्वास पहले से कहीं ज्यादा मजबूत हुआ है।
वोंटिंग का पैटर्न बहुत कुछ कहता है
अब आप कश्मीर घाटी (Kashmir Vally)के 13 इलाकों में हुए पिछले दो चुनावों और मौजूदा चुनाव के मतदान प्रतिशत से खुद ही देखिए कि वहां के मतदाओं का लोकतंत्र में भरोसा कैसा बढ़ा है। पहले आतंकवाद से सबसे अधिक पीड़ित पुलवामा और शोपियां के आंकड़े देख लीजिए। पुलवामा में 2018 के पंचायत चुनाव में सिर्फ 1.1% वोटिंग हुई थी और 2019 के आम चुनाव में 1.2% वोटिंग। लेकिन, डीडीसी चुनाव में 7.6% लोगों ने वोट डाले हैं। जबकि, स्वतंत्र और निष्पक्ष मतदान को प्रभावित करने के लिए पाकिस्तान समर्थक आतंकवादी संगठनों ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है। इसी तरह शोपियां में 2019 में सिर्फ 3.4% मतदान हुआ था, जबकि इस बार यह बढ़कर 15.4% पहुंच चुका है।
घाटी के इन इलाकों में कई गुना ज्यादा वोटिंग
बाकी इलाकों में वोटिंग में यह उछाल और भी ज्यादा है। मसलन, श्रीनगर में तीनों चुनावों में मतदान प्रतिशत का आंकड़ा क्रमश: 14.5% (पंचायत), 7.9% (लोकसभा) और इस बार 35.3%(DDC Elections) दर्ज किया गया है। इसी तरह गांदरबल में 27.4%, 17.5% और 44.3%, बडगाम में 21.9%,21.6% और 41.5%, अनंतनाग में 9.3%, 13.8% और 24.9%, कुलगाम में 6.4%, 10.2% और 25% वोटिंग दर्ज की गई है। वहीं अवंतीपोरा में भी क्रमश: 0.4%, 3% और 9.9%, बारामुला में 31.6% (लोकसभा) और 45.2% (डीडीसी चुनाव), कुपवाड़ा में 49.7% (लोकसभा) और 49.8% (डीडीसी) में वोटिंग हुई है। आगे का भी ट्रेंड यही है। मसलन, हंदवाड़ा में क्रमश: 44.6%, 51.1% और 54.9%, बांदीपुरा में 44%, 32% और 55.6% के अलावा सोपोर में 26%, 7.6% और मौजूदा चुनाव में 23.8 फीसदी मतदान हुए हैं।
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