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एडल्टरी पर फैसले में भी जस्टिस चंद्रचूड़ ने रखे अपने क्रांतिकारी विचार, फिर पलटा अपने पिता का फैसला

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नई दिल्ली। एडल्टरी पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने ऐतिहासिक फैसला दिया है। कोर्ट ने आईपीसी के सेक्शन 497 पर फैसला देते हुए कहा कि शादी के बाद किसी गैर से शारीरिक संबंध बनाना अपराध नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि अगर ऐसे संबंधों से पति या पत्नीा में से किसी को आपत्ति है तो उसके लिए तलाक लेने का दरवाजा खुला है। इस फैसले पर संविधान पीठ के जजों ने जो अपना फैसला लिखा उसमें जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कई अहम बातें कहीं हैं। इतना ही नहीं धारा 497 पर अपना फैसला देते हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने एक बार फिर अपने पिता जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ का दिया फैसला पलट दिया।

justice Chandrachud
सीनियर चंद्रचूड़ बनाम जूनियर चंद्रचूड़
1985 में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के पिता न्यायमूर्ति वाईवी चंद्रचूड़ ने फैसला दिया था कि कुछ खास मामलों में अनुचित यौन संबंधों के लिए सजा का प्रावधान जरूर होना चाहिए यानी उन्होंने धारा 497 को वैध करार दिया था। इधर जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में कहा, "एक महिला की यौन स्वायत्तता से समझौता नहीं किया जा सकता है, ये उसका अधिकार है और इसके लिए कोई शर्त नहीं हो सकती है।" उन्होंने कहा कि व्यभिचार कानून ने महिलाओं की गरिमा और अधिकारों को नष्ट कर दिया क्योंकि उन्हें अपने पति की संपत्ति के रूप में माना जाता है।

पिता ने एडल्टरी को माना था अपराध

पिता ने एडल्टरी को माना था अपराध

1985 में एक महिला की याचिका पर फैसला करते हुए उनके पिता के विचार पूरी तरह से अलग थे। उनके सामने एक मामला था जिसमें एक महिला के पति ने उस व्यक्ति के खिलाफ अदालत का रुख किया था जिसके उसकी पत्नी के साथ संबंध थे। महिला की ओर से कहा गया था कि ये कानून लिंग भेदभाव का एक प्रमुख उदाहरण था। उस वक्त जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के पिता न्यायमूर्ति वाईवी चंद्रचूड़ ने कहा था कि ये आमतौर पर स्वीकार किया जाता है कि ये आदमी है जो महिला को ऐसे संबंध बनाने के लिए उकसाता है ना की खुद महिला। उन्होंने ये भी माना था कि व्यभिचार को अपराध मानना, विवाह की स्थिरता को बढ़ाता है।
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बेटे ने कहा गरिमा को ठेस

बेटे ने कहा गरिमा को ठेस

अब उनके बेटे जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि धारा 497 महिला के आत्मसम्मान एवं गरिमा को ठेस पहुंचाती है। ये धारा महिला को पति के गुलाम की तरह देखती है। धारा 497 महिला को उसकी पसंद के अनुसार सेक्स करने से रोकती है इसलिए ये असंवैधानिक है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ आगे कहते हैं कि समाज महिला को एक उंचे स्थान पर बैठता है, कहता है उसे पवित्र होना चाहिए लेकिन उससे बलात्कार, उस पर हमला करने, भ्रूणहत्या करने और घर के अंदर उसके खिलाफ भेदभाव करने में कोई हिचक नहीं दिखाता है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा महिला को विवाह में यौन स्वायत्तता है। विवाह का मतलब एक दूसरी के स्वायत्तता को खत्म करना नहीं है।

पलटा था 1975 का भी फैसला

पलटा था 1975 का भी फैसला

तैंतीस साल पहले पिता ने जो फैसला दिया था उसे बेटे ने पलट दिया और ऐसा बेटे ने दूसरी बार किया। इससे पहले पिछले साल जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने निजता के मामले पर 1975 में पांच जजों की पीठ के फैसले को पलट दिया था और उसे "गंभीर रूप से त्रुटिपूर्ण" कहा था। 1975 में आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया था। पांच जजों की सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने इसका समर्थन किया था और कहा था कि निजता नागरिकों के लिए मौलिक अधिकार नहीं है। उस पीठ में उनके पिता न्यायमूर्ति वाईवी चंद्रचूड़ शामिल थे। 2017 मे ये फैसला पलट दिया गया और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने निजता के अधिकार पर अपने फैसले में कहा कि जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को मानव अधिकारों से अलग नहीं किया जा सकता है। कोई सभ्य राज्य जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता में अतिक्रमण करने पर विचार नहीं कर सकता। इस फैसले के बाद निजता का अधिकार अब भारत में मौलिक अधिकार है।

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English summary
Its father vs son, Justice D Y Chandrachud overrules his father Justice Y V Chandrachud again
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