दुनिया का सबसे छोटा सैटेलाइट कलामसैट सफलतापूर्वक लॉन्च कर ISRO ने रचा इतिहास
श्रीहरिकोटा। इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (इसरो) ने गुरुवार रात को इतिहास रचते हुए गणतंत्र दिवस से पहले देश को तोहफा दिया है। आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा से इसरो ने सफलतापूर्वक पीएसएलवी सी-44 की मदद से माइक्रोसैट-आर सैटेलाइट के अलावा एक सैटेलाइट कलामसैट लॉन्च किया है। इसरो के श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से सैटेलाइट लॉन्च किया है। इससे पहले गुरुवार को डीआरडीओ ने भी आईएएनएस चेन्नई से जमीन से हवा में मारने वाली मिसाइल का सफलतापूर्वक टेस्ट किया। इसरो का पीएसएलवी के साथ यह 46वां मिशन है। पहला मौका है जब किसी छात्र की ओर से तैयार किसी सैटेलाइट को लॉन्च किया गया।
'इसरो भारत के सभी छात्रों के लिए खुला है'
श्रीहरिकोटा के सतीश धवन सेंटर से सैटेलाइट लॉन्च करने के बाद इसरो ने सोशल मीडिया के माध्यम से एक-एक जानकारी देश के सामने रखी। इसरो ने सैटेलाइट के एक से लेकर चार स्टेज तक पहुंचने के जानकारी सोशल मीडिया पर शेयर की। सैटेलाइट के चारो स्टेज पार करने के बाद इसरो ने ट्वीट करते हुए कहा कि पीएसएलवी सी-44 इच्छित कक्षा में प्रवेश कर चुका है। देश की स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन ने ट्वीट करते हुए कहा, 'इसरो भारत के सभी छात्रों के लिए खुला है। अपने सैटेलाइट को हमारे पास लाओ और हम इसे आपके लिए लॉन्च करेंगे। आइए, हम भारत को एक विज्ञान-निष्पक्ष राष्ट्र बनाते हैं।' बता दें कि पीएसएलवी एक फोर्थ स्टेज का लॉन्च व्हीकल है जिसे सॉलिड और लिक्विड दोनों ही तरीकों में प्रयोग किया जा सकता है। माइक्रोसैट-आर एक मिलिट्री सैटेलाइट है और इसे डीआरडीओ के लिए तैयार किया गया है। द हिंदू की ओर से बताया गया है कि इस सैटेलाइट का वजन करीब 740 किलोग्राम है।
क्या है कलामसैट
कलामसैट सैटेलाइट को भारतीय छात्रों के एक समूह ने तैयार किया है। इसका नामकरण देश के पूर्व राष्ट्रपति और मिसाइल मैन के नाम से मशहूर डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर किया गया है। कलामसैट दुनिया का सबसे छोटा सैटेलाइट है। इसरो ने हर सैटेलाइट लॉन्चिंग मिशन में PS-4 प्लेटफॉर्म को छात्रों के बनाए सैटेलाइट के लिए प्रयोग करने का फैसला किया है। कलामसैट इतना छोटा है कि इसे 'फेम्टो' की श्रेणी में रखा गया है
जीसैट साल 2018 का आखिरी मिशन
इसरो ने इससे पहले दिसंबर में जीसैट-7ए कम्यूनिकेशन सैटेलाइट को लॉन्च किया था। इस सैटेलाइट को इंडियन एयरफोर्स की मदद के मकसद से लॉन्च किया गया था। सैटेलाइट इंडियन एयरफोर्स (आईएएफ) की और ज्यादा ताकतवर बनाएगा। अलग-अलग रडार स्टेशंस, एयरबेस और अवॉक्स एयरक्राफ्ट को आपस में जोड़ा जा सकेगा। इसकी वजह से वायुसेना की नेटवर्क आधारित युद्ध की क्षमता में इजाफा हो सकेगा।जीसैट-7ए न सिर्फ सभी एयरबेसेज को आपस में जोड़ेगा बल्कि आईएएफ के ड्रोन ऑपरेशंस में भी इजाफा करेगा।