पीएसएलवी सी23 ने बढ़ाया भारत पर दुनिया का भरोसा
श्रीहरिकोटा। सोमवार को भारत अतंरिक्ष के क्षेत्र में पीएसएलवी सी 23 के लांच के साथ ही एक नया इतिहास लिखने की तैयारी में है।
पीएसएलवी यानी पोलर सैटेलाइट लांच व्हीकल, सोमवार को होने वाला लांच भारत के लिए कई मायनों में अहम है।
दुनिया के चार बड़े देश जर्मनी, फ्रांस, कनाडा और सिंगापुर के सैटेलाइट्स को अपने साथ अंतरिक्ष में लेकर जाने वाले पीएसएलवी पर भारत के साथ ही पूरी दुनिया की नजरें लगी हुई हैं।
आगे की स्लाइड्स में देखिए कि क्यों है भारत और इसरो के लिए पीएसएलवी सी 23 की लाचिंग इतनी खास है और क्या है उन चार बड़े देशों के सैटेलाइट्स की खूबियां।
इसरो की बड़ी कामयाबी
पीएसएलवी सी 23 इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन यानी इसरो का एक अहम मिशन है क्योंकि इसके साथ ही इसरो के अध्याय में 114 मिशन सफलतापूर्वक जुड़ जाएंगे। पीएसएलवी सी 23 की लाचिंग के साथ ही भारत के कुल 71 सैटेलाइट मिशन पूरे हो चुके हैं जिनमें 43 रॉकेट्स का प्रयोग हुआ है।
दुनिया का बढ़ा आत्मविश्वास
आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से पीएसएलवी सी 23 की लांचिंग के साथ ही भारत ने दुनिया के सामने अपनी ताकत को साबित किया है। श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से फ्रांस, जर्मनी, कनाडा और सिंगापुर के पांच उपग्रह को पीएसएलवी सी-23 के जरिए अंतरिक्ष में भेजा जाएगा।
धरती पर नजर रखने वाला फ्रेंच सैटेलाइट
पीएसएलवी सी 23 का मेन पेलोड 714 किलोग्राम का है। यह फ्रेंच सैटेलाइट SPOT-7 714 किलोग्राम वजन का है। यह फ्रेंच सैटेलाइट अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट है यानी यह धरती से जुड़ी गतिविधियों पर अपनी नजर रखेगा।
बंदरगाहों और समंदर की हलचल पर नजर
वहीं जर्मन सैटेलाइट जर्मनी का उपग्रह AISAT का वजन 14 किलोग्राम है। जर्मनी के इस सैटेलाइट को जर्मनी के डीएलआर इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने तैयार किया है। इस सैटेलाइट को तैयार करने वाले वैज्ञानिकों की मानें तो यह सैटेलाइट बड़े देशों के बंदरगाहों पर अपनी नजर रख सकेगा। जर्मनी का यह सैटेलाइट एक बार में 100 रेडियो स्टेशनों को सुनने और उनकी फ्रीक्वेंसी को कैप्चर करने की ताकत रखता है।
टोरंटो यूनिवर्सिटी की उपलब्धि
कनाडा की टोरंटो यूनिवर्सिटी और कनाडा के इंस्टीट्यूट ऑफ एरोस्पेस स्टडीज/ स्पेस फ्लाइट लैबोरट्री में डेवलप्ड होने वाले एनएलएस 7.1 और एनएलएस 7.2 दोनों का वजन मिलाकर 30 किलोग्राम है। यह सैटेलाइट्स दो अलग-अलग तरह के जीपीएस सिस्टम के साथ तैयार हुए हैं। इन जीपीएस सिस्टम के जरिए मौसम और दूसरी जरूरी बातों के बारे में जानकारी हासिल हो सकेगी।
इंजीनियरिंग के छात्रों के लिए VELOX-1
सिंगापुर का सात किलोग्राम के वजन वाला VELOX-1 सैटेलाइट न सिर्फ सिंगापुर बल्कि इंजीनियरिंग के छात्रों के लिए काफी अहम है। इस सैटेलाइट के जरिए इंजीनियरिंग के छात्रों को स्पेस से जुड़े कई अलग-अलग तरह के प्रोजेक्ट्स पर रिसर्च करने का मौका मिल सकेगा।
वर्ष 2012 में भी फ्रेंच सैटेलाइट गया था अतंरिक्ष
इन सैटेलाइट्स को उनके देशों की जरूरत के हिसाब से अंतरिक्ष में अलग-अलग ऊंचाई और कक्षा में स्थापित किया जाएगा।इसरो 2012 में भी फ्रांस का एक सैटेलाइट अंतरिक्ष में भेज चुका है। इससे साफ होता है कि भारतीय वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में दुनिया के तमाम देशों का भरोसा जीतने में कामयाबी हासिल की है।