चीन के सैटेलाइट सेंटर को जवाब में इसरो का ग्राउंड स्टेशन
नई दिल्ली। भारत के साथ चीन का बॉर्डर काफी लंबा है, लेकिन उसे सबसे ज्यादा खतरा तिब्बत में महसूस होता है। भारत के अरुणाचल प्रदेश से सटे तिब्बत में चीन लगातार सैन्य ताकत बढ़ा रहा है। हाल में खबर आई कि चीन ने तिब्बत के पहाड़ी इलाके के अनुरूप लाइटवेट टैंक बनाए हैं, जिन्हें पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को सौंप दिया गया है। ये लाइटवेट टैंक जल्द ही तिब्बत में तैनात किए जाएंगे। साथ ही चीन ने तिब्बत में सैटेलाइट ट्रैकिंग एंड डेटा रिसेप्शन सेंटर भी बनाया हुआ है। भारत की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए चीन ने यह सेंटर बनाया है। चीन के इस कदम का जवाब देने के लिए अब भारत भी तैयारी कर रहा है। इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (इसरो) चीन के जैसा ही सेंटर भूटान में स्थापित करने जा रहा है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO) का भूटान में ग्राउंड स्टेशन रणनीतिक तौर पर भारतीय सेना को बेहद ताकतवर बनाएगा। इस सेंटर की लोकेशन भारत और चीन के बीच में है, जिससे न केवल इंडिया बल्कि भूटान को भी काफी मदद मिलेगी।
चीन
ने
ऐसा
ही
सेंटर
भारत
से
लगती
सीमा
यानी
वास्तविक
नियंत्रण
रेखा
(LAC)
से
125
किमी
की
दूरी
पर
तिब्बत
के
नगारी
में
बनाया
है।
ड्रैगन
का
यह
सैटेलाइट
ट्रैकिंग
सेंटर
बेहद
आधुनिक
है।
अधिकारियों
का
कहना
है
कि
तिब्बत
में
चीन
का
सेंटर
इतना
आधुनिक
है
कि
यह
न
केवल
भारतीय
सैटलाइटों
को
ट्रैक
करने
में
सक्षम
है
बल्कि
उन्हें
'ब्लाइंड'
भी
कर
सकता
है।
मतलब
ये
हुआ
कि
तिब्बत
में
अपने
सेंटर
की
मदद
से
चीन
के
पास
ऐसी
तकनीक
भी
मौजूद
है
कि
वह
भारतीय
सैटेलाइट
की
आंखों
में
धूल
झोंक
सकता
है।
ऐसे
में
भारत
को
भी
एक
हाईटेक
सेंटर
की
जरूरत
है।
इसरो का भूटान में ग्राउंड स्टेशन न केवल इस पड़ोसी को साउथ एशिया सैटेलाइट का लाभ पहुंचाने के लिए स्थापित किया गया है बल्कि तिब्बत में चीन के स्टेशन के मुकाबले रणनीतिक तौर पर संतुलन साधने में भी काम आएगा। भूटान के नए प्रधानमंत्री लोतेय शेरिंग के साथ हाल में हुई मुलाकात के बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा, 'स्पेस साइंस हमारे सहयोग (भूटान के साथ) का नया आयाम है। इस प्रोजेक्ट के पूरा होने के साथ ही भूटान को मौसम की जानकारी, टेलि-मेडिसिन और आपदा राहत से जुड़ी तमाम जानकारियां मिलने लगेंगी।'
ISRO ने 5 मई 2017 को साउथ एशिया सैटलाइट को लॉन्च किया था। अब इस दिशा में इसरो ने तेजी से कदम बढ़ाए दिए है। डोकलाम गतिरोध के दौरान चीन ने केवल भारत बल्कि भूटान को भी आंखें दिखाई थीं। ऐसे में चीन पर नकेल कसने के लिए यह कदम बेहद कारगर साबित होगा।