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Chandrayaan 2: चंद्रयान -2 की लैंडिंग के साथ इतिहास रचेंगे तमिलनाडु के ये दो गांव

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नई दिल्ली। भारत का चंद्रयान-2 अब से कुछ घंटों के बाद चांद की सतह पर लैंड करेगा, चंद्रयान-2 का विक्रम लैंडर चांद की सतह पर उतरेगा, जिसके बाद भारतीय वैज्ञानिकों का मिशन चांद शुरू होगा, 48 दिन के सफर के बाद आज रात करीब दो बजे चंद्रयान 2 की चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग कराई जाएगी। ये एक ऐसा पल होगा जब दुनिया भर की नजरें इसपर टिकी होंगी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की अपील

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की अपील

इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ हाईस्‍कूल में पढ़ने वाले 60 बच्‍चे इसरो के बेंगलुरु सेंटर पर मौजूद होंगे। चंद्रयान-2 की सफल लैंडिंग के साथ ही भारत ऐसा करने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा, अभी तक अमेरिका, रूस और चीन ने ही ये कारनामा किया है।

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सीतमपोंडी और कुन्नामलाई

सीतमपोंडी और कुन्नामलाई

लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि चंद्रयान-2 का विक्रम लैंडर उतरने के साथ ही तमिलनाडु के दो गांव और सीतमपोंडी और कुन्नामलाई भी इतिहास रच देंगे, अब आप पूछेंगे कि क्यों और कैसे तो सुनिए, इस गांव की मिट्टी के इस्तेमाल से ही निश्चित हुआ था कि चंद्रयान-2 की लैंडिग चांद पर सुरक्षित होगी या नहीं।

विक्रम लैंडर

विक्रम लैंडर

दरअसल चंद्रयान-2 तीन हिस्सों से मिलकर बना है, जिसमें पहला- ऑर्बिटर, दूसरा- विक्रम लैंडर और तीसरा- प्रज्ञान रोवर, इसरो ने सफलतापूर्वक विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर को चांद की सतह पर उतारने के लिए बेंगलुरु की प्रयोगशाला में कई बार परीक्षण किया था, इसके लिए उसने आर्टिफिशियल चांद की सतह बनाई थी, जिसके लिए उसे मिट्टी की जरूरत थी, इसलिए उसने सीतमपोंडी और कुन्नामलाई से मिट्टी मंगाई थी, क्योंकि इस गांव की मिट्टी चांद की मिट्टी से काफी मिलती-जुलती है, खास बात ये है कि चांद और धरती की मिट्टी अलग-अलग है।

ऑर्बिटर एक साल तक काम करेगा

ऑर्बिटर एक साल तक काम करेगा

चांद की कक्षा में पहुंचने के बाद ऑर्बिटर एक साल तक काम करेगा। इसका मुख्य उद्देश्य पृथ्वी और लैंडर के बीच कम्युनिकेशन करना है। ऑर्बिटर चांद की सतह का नक्शा तैयार करेगा, ताकि चांद के अस्तित्व और विकास का पता लगाया जा सके। वहीं, लैंडर और रोवर चांद पर एक दिन (पृथ्वी के 14 दिन के बराबर) काम करेंगे, लैंडर यह जांचेगा कि चांद पर भूकंप आते हैं या नहीं।

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English summary
The surface of the earth and that of the moon are entirely different. So we had to create an artificial moon surface and test our rover and lander, M. Annadurai, who retired as Director, U.R. Rao Satellite Centre (URSC), formerly ISRO Satellite Centre.
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