केंद्र सरकार से अलगाव, बीजेपी से नहीं, क्या है नायडू की रणनीति?
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने बुधवार रात अमरावती में बुलाई एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में तेलगू देशम पार्टी के केंद्र सरकार से अलग होने का ऐलान किया.
टीडीपी केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई में सरकार चला रहे एनडीए का तीसरा सबसे बड़ा दल है. लोकसभा में टीडीपी के 16 सांसद है.
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने बुधवार रात अमरावती में बुलाई एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में तेलगू देशम पार्टी के केंद्र सरकार से अलग होने का ऐलान किया.
टीडीपी केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई में सरकार चला रहे एनडीए का तीसरा सबसे बड़ा दल है. लोकसभा में टीडीपी के 16 सांसद है.
केंद्र सरकार में शामिल टीडीपी के दो मंत्री अशोक गजपति राजू और वाई एस चौधरी गुरुवार को इस्तीफ़ा देंगे.
आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य के दर्ज़े के मुद्दे पर केंद्र सरकार से नाता तोड़ने का चंद्रबाबू नायडू का फ़ैसला अप्रत्याशित नहीं है.
रात साढ़े 10 बजे करीब की गई प्रेस कॉन्फ्रेंस के पहले बुधवार को दिनभर टीडीपी के एनडीए से अलग होने को लेकर अटकलें लगाई जाती रहीं.
विशेष दर्ज़े की मांग
राजनेता और राजनीति पर नज़र रखने वालों का अनुमान था कि बुधवार को राज्यपाल के अभिभाषण पर धन्यवाद देते समय चंद्रबाबू नायडू इसका ऐलान कर सकते हैं.
कई लोगों को हैरानी भी हुई कि चंद्रबाबू नायडू ने दो घंटे लंबा भाषण दिया लेकिन इस बारे में कोई बात नहीं की.
हालांकि उन्होंने केंद्र सरकार को आगाह किया कि किसी भी परिस्थिति में 'हम राज्य के विशेष दर्ज़े को लेकर कोई समझौता नहीं कर सकते'. उन्होंने कहा, "ये हमारा अधिकार है."
उन्होंने कहा, "केंद्र सरकार ने भरोसा दिलाया था कि वो विशेष दर्ज़ा नहीं दे सकते लेकिन समान वित्तीय मदद और सब्सिडी देंगे" और अब अपने वादे को पूरा नहीं कर रहे हैं. उन्होंने अपनी बात समझाने के लिए सदस्यों के सामने तमाम आंकड़े भी रखे.
चंद्रबाबू नायडू ने ये भी कहा, "मैं लगातार केंद्र सरकार पर दबाव बना रहा हूं और मेरी तरफ से कोई ढील नहीं है." खामी केंद्र सरकार और उसकी क्षमता में है.
मुख्यमंत्री के पहले बीजेपी नेता विष्णु कुमार राजू बोले और तभी साफ हो गया कि इस वक्त अलगाव का कोई ऐलान नहीं होगा. उन्होंने कहा कि चंद्रबाबू नायडू जैसा मुख्यमंत्री मिलना राज्य का सौभाग्य है और वो भी आंध्र प्रदेश के अधिकार और विकास के लिए दिल्ली के साथ संघर्ष करेंगे.
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टीडीपी पर दबाव
इन दिनों विशेष राज्य के मुद्दे के गर्म होने की पर्याप्त वजहें हैं. विशेष दर्ज़े की मांग केंद्र और राज्य के बीच शुरुआत से ही दिक्कत की वजह रही है. कुछ वक्त तक इसे लेकर टीडीपी, एनडीए और आंध्र प्रदेश की विरोधी पार्टियों के बीच तीन तरफा बहस जारी रही.
फिलहाल टीडीपी के साथ आंध्र प्रदेश के विपक्षी दल भी पूछ रहे हैं कि तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ओर से दिलाए गए भरोसे को क्यों नहीं पूरा किया जा रहा है जबकि भारतीय जनता पार्टी ने ये सहमति जताई थी कि सत्ता में आने पर वो इसे पूरा करेंगे.
एनडीए ने कहा था, "विशेष दर्ज़ा देना संभव नहीं है लेकिन आंध्र प्रदेश को इसके बराबर की सहूलियतें दी जाएंगी."
राजनीतिक दलों के साथ आम लोग भी सवाल कर रहे हैं कि आंध्र प्रदेश के साथ किया गया वादा पूरा क्यों नहीं किया जा रहा है. वहीं केंद्र सरकार का कहना है, " जल्दी आंध्र प्रदेश को विशेष पैकेज दिया जाएगा."
तथ्यों की बात की जाए तो आंध्र प्रदेश के लोग विशेष दर्ज़े के बजाए मानसिक तौर पर विशेष पैकेज के लिए तैयार हो चुके हैं.
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2019 पर नज़र
गौरतलब ये भी है कि साल 2019 के चुनाव करीब हैं और राजनेताओं ने अपनी राजनीति को चमकाना शुरु कर दिया है.
एक तरफ जगनमोहन रेड्डी की अगुवाई वाली वाईएसआरसीपी और दूसरे बुद्धिजीवी विशेष दर्ज़े के लिए मांग उठा रहे हैं. दूसरी तरफ पवन कल्याण की अगुवाई वाली जनसेना ने भी आंदोलन शुरू कर दिया है.
इसे लेकर चंद्रबाबू नायडू पर राजनीतिक दबाव बढ़ गया है. बीजेपी भी दबाव में है. वाईएसआरसीपी के मुक़ाबले टीडीपी मजबूत है. लेकिन दोनों के बीच ज़्यादा अंतर नहीं है.
निचले तबके और रायलसीमा के लोगों में टीडीपी को लेकर असंतोष बढ़ रहा है.
ऐसी परिस्थिति के बीच विशेष दर्ज़े और पैकेज के मुद्दे भावनात्मक तौर पर अहम हो गए हैं.
भावनात्मक मुद्दे चुनाव में भी अहम भूमिका निभाते हैं. अपने लंबे अनुभव की वजह से चंद्रबाबू नायडू ये बात समझते हैं. वो जगनमोहन रेड्डी और दूसरे दलों को इस मांग के जरिए बढ़त बनाने का कोई मौका नहीं देना चाहते हैं और ख़ुद विशेष दर्ज़े की मांग उठा रहे हैं.
उनकी रणनीति मोदी सरकार पर संसद के अंदर दबाव बनाने और आंध्र प्रदेश में टीडीपी के नेताओं को हर दिन केंद्र सरकार की तीखी आलोचना के लिए तैयार करने की है.
इसी रणनीति के तहत उन्होंने टीडीपी के मंत्रियों से कहा है कि वो केंद्र सरकार से इस्तीफ़ा दे दें.
अगला कदम क्या?
चंद्रबाबू नायडू चुनाव के पहले ज्यादा से ज्यादा हासिल करने के इरादे में हैं. हालांकि, आश्वासन के बाद भी केंद्रीय बजट से उन्हें ज़्यादा कुछ हासिल नहीं हुआ.
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने हाल में कहा है कि आंध्र प्रदेश के विशेष दर्ज़े की फाइल पर वो सबसे पहले दस्तख़त करेंगे. अब ये केंद्र सरकार को चेतावनी देने के लिए चंद्रबाबू नायडू का नया हथियार बन गया है.
टीडीपी ने अभी सिर्फ केंद्र सरकार से नाता तोड़ने की बात की है. लेकिन क्या वो बीजेपी से भी अलग हो सकती है? अगर ऐसा हुआ तो उनका गठबंधन किसके साथ होगा? चंद्रबाबू नायडू के दिमाग में भी ये बड़ा सवाल होगा. अगर साल 2014 में उनका बीजेपी से गठबंधन न होता और उनके साथ पवन कल्याण का समर्थन नहीं होता तो वो चुनाव नहीं जीतते.
यही वजह है कि हालात माकूल नहीं होने के बाद भी चंद्रबाबू नायडू बीजेपी से अलग होने की जल्दी में नहीं हैं.
उनके सामने बड़ी दिक्कत ये है कि जगन मोहन और दूसरे दलों से मिल रही चुनौती का मुक़ाबला कैसे करें और बीजेपी को कैसे अपनी बात मानने के लिए राज़ी करें.
चंद्रबाबू नायडू ने बुधवार देर रात एक अहम कदम बढ़ा दिया है. अब देखते हैं वो अगला कदम किस दिशा में उठाते हैं.
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