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कश्मीर पर भारत के फ़ैसले का क्या कोई इसराइल कनेक्शन है?

पाकिस्तान और इसराइल के बीत राजनयिक संबंध नहीं हैं. पाकिस्तान में इसकी मांग उठ रही थी कि कश्मीर पर अरब के मुस्लिम देशों से भारत के ख़िलाफ़ समर्थन नहीं मिल रहा है तो क्यों न इसराइल से राजनयिक संबंध बहाल कर लिया जाए. दूसरी तरफ़ भारत के अरब देशों से भी अच्छे संबंध हैं और इसराइल से भी गहरी दोस्ती है. गुरुवार को इस मसले पर पाकिस्तान की तरफ़ से स्पष्टीकरण दिया गया.

By रजनीश कुमार
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कश्मीर पर मोदी सरकार की नीति को लेकर पाकिस्तान में इसराइल की चर्चा ख़ूब हो रही है. पाकिस्तान में कहा जा रहा है कि भारत की कश्मीर में आक्रामकता और आत्मविश्वास के पीछे इसराइल का बड़ा हाथ है.

पाकिस्तान और इसराइल के बीत राजनयिक संबंध नहीं हैं. पाकिस्तान में इसकी मांग उठ रही थी कि कश्मीर पर अरब के मुस्लिम देशों से भारत के ख़िलाफ़ समर्थन नहीं मिल रहा है तो क्यों न इसराइल से राजनयिक संबंध बहाल कर लिया जाए. दूसरी तरफ़ भारत के अरब देशों से भी अच्छे संबंध हैं और इसराइल से भी गहरी दोस्ती है.

गुरुवार को इस मसले पर पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की तरफ़ से स्पष्टीकरण दिया गया. पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता डॉ मोहम्मद फ़ैसल ने कहा, ''इसराइल के साथ हमारी नीति बिल्कुल स्पष्ट है और इसमें कोई बदलाव नहीं आएगा.''

पाकिस्तान ने आज तक इसराइल को मान्यता नहीं दी है. मुशर्रफ़ के वक़्त में पाकिस्तान ने इसराइल से राजनयिक संबंध बनाने की कोशिश की थी. उस वक़्त के पाकिस्तानी विदेश मंत्री ख़ुर्शीद महमूद कसूरी और इसराली विदेश मंत्री की तुर्की में मुलाक़ात भी हुई थी.

हालांकि यह कोशिश भी नाकाम रही थी क्योंकि पाकिस्तान में इसे लेकर व्यापक विरोध होने लगा था. कश्मीर में हालिया संकट को लेकर पाकिस्तान में एक बार फिर से बहस शुरू हो गई है कि इसराइल को लेकर फिर से सोचने की ज़रूरत है.

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पाकिस्तान के प्रमुख अख़बार द एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने गुरुवार को अपनी संपादकीय में लिखा कि इसराइल के कारण और उसी के पैटर्न वो कश्मीर में भारत आक्रामकता दिखा रहा है.

द एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने संपादकीय में लिखा है, ''भारत और इसराइल के बीच आतंकवाद के ख़िलाफ़ और रक्षा सौदों को लेकर कई सहयोग हुए हैं. दोनों देशों के बीच ख़ुफ़िया सूचनाओं का आदान-प्रदान और आतंकवाद के ख़िलाफ़ दोनों देशों में साझा ट्रेनिंग को लेकर भी समझौते हैं. भारत को इसराइल ने अत्याधुनिक तकनीक भी मुहैया कराई है.''

अख़बार लिखता है, ''भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी रॉ और इसराइली ख़ुफ़िया एजेंसी मोसाद के बीच दशकों से अच्छे संबंध हैं. दोनों के पारस्परिक संबंधों हमेशा गोपनीय रहे क्योंकि भारत को डर रहता था कि मुस्लिम आबादी नाख़ुश न हो जाए. लेकिन बीजेपी सरकार के आने के बाद से स्थिति बदल गई है. पीएम मोदी और नेतन्याहू एक दूसरे को दोस्त कहते हैं. इसके साथ ही भारतीय कमांडो की इसराइली ज़मीन पर ट्रेनिंग भी हुई है.''

2017 में 31 अक्टूबर को इसराइल के चीफ़ ऑफ़ ग्राउंड फोर्स कमांड मेजर जनरल याकोव बराक जम्मू-कश्मीर में उधमपुर के आर्मी बेस पर गए थे. यहां जनरल याकोव की भारतीय सेना के अधिकारियों से बात हुई थी. जनरल याकोव के साथ उनकी पत्नी और नई दिल्ली में इसराइली दूतावास के अधिकारी भी थे. तब दावा किया गया था कि दोनों देशों के सैन्य हितों से जुड़ा यह दौरा था.

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इस दौरे ने पाकिस्तान का भी ध्यान खींचा था. पाकिस्तानी मीडिया में भी इस दौरे को काफ़ी तवज्जो दी गई थी.

अब सवाल ये है कि क्या वाक़ई कश्मीर में हालिया घटनाक्रम और पाकिस्तान के प्रति मोदी सरकार की बदली रणनीति में इसराइल की कोई भूमिका है?

इस सवाल के जवाब में रक्षा विशेषज्ञ राहुल बेदी कहते हैं, ''भारत और इसराइल का सहयोग पुराना है लेकिन अब खुलकर दोनों देश साथ आए हैं. इसराइल भारत को तकनीक मुहैया करा रहा है और कश्मीर में बाड़ लगाने में भी इसराइल ने तकनीकी मदद की है. हम ये नहीं कह सकते कि भारत इसराइल के इशारे पर चल रहा है लेकिन दोनों देशों के बीच सहयोग बेहतरीन है. भारत को इसराइल से अहम ख़ुफ़िया सूचानाएं मिलती हैं.''

राहुल बेदी कहते हैं, ''इसराइल ने वाजपेयी सरकार के दौर में कारगिल युद्ध के दौरान भी मदद की थी. जब-जब बीजेपी सरकार सत्ता में आती है तो भारत का इसराइल के सहयोग बढ़ जाता है. इसमें कोई शक नहीं है कि मोदी शासन में इसराइल से रक्षा सहयोग बढ़ा है. इसराइल लड़ाकू विमान नहीं बनाता. टैंक बनाता है लेकिन निर्यात नहीं करता. वो असलहा बनाता है. हम इसराइल से मिसाइल और रडार सिस्टम लेते हैं. बालाकोट में भारत ने जो बम इस्तेमाल किए थे वो इसराइली किट ही था. अभी इसराइली किट और आने वाले हैं. अगले कुछ हफ़्तों में इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू फिर से भारत के दौरे पर आने वाले हैं. आने वाले वक़्त में दोनों देश और क़रीब आएंगे.''

मध्य-पूर्व में वॉर ज़ोन को कवर करने वाले मशहूर अमरीकी पत्रकार रॉबर्ट फिस्क ने फ़रवरी 2019 में द इंडिपेंडेंट में रिपोर्ट लिखी थी. इस रिपोर्ट में भारत और इसराइल के संबंधों को पाकिस्तान और कश्मीर के बरक्स देखा गया है.

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रॉबर्ट फिस्क ने उस रिपोर्ट में लिखा है, ''जब मैंने पहली बार रिपोर्ट सुनी तो मुझे लगा कि गज़ा में इसराइल ने रेड की है. या सीरिया में. मैंने पहला शब्द सुना था कि आतंकवादी कैंप पर एयरस्ट्राइक. आतंकी ठिकाने नष्ट कर दिए गए हैं और कई आतंकवादी मारे गए. फिर मैंने जगह का नाम बालाकोट सुना. फिर लगा कि ये जगह न तो गज़ा में है, न ही सीरिया में और न ही लेबनान में. पता चला कि ये तो पाकिस्तान में है. क्या इसराइल और इंडिया में कोई घालमेल कर सकता है.''

फिस्क ने लिखा है, ''नई दिल्ली के रक्षा मंत्रालय से ढाई हज़ार मिल दूर तेल अवीव में स्थिति इसराइल का रक्षा मंत्रालय है लेकिन दोनों के क़रीब आने की कई वजहें हैं. इसराइल ने भारत की राष्ट्रवादी बीजेपी सरकार से नज़दीकी बनाई है. यह राजनीतिक रूप से ख़तरनाक है. इसराइल में बने हथियारों का भारत सबसे बड़ा बाज़ार बन गया है. यह कोई संयोग नहीं है कि भारतीय प्रेस में बताया गया कि इसराइल में बने रफ़ायल स्पाइस-2000 स्मार्ट बम का इस्तेमाल भारतीय एयर फ़ोर्स ने पाकिस्तान के भीतर जैश-ए-मोहम्मद के ख़िलाफ़ हमले में किया.''

रॉबर्ट फिक्स ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है 2017 में भारत इसराइल का सबसे बड़ा हथियार ग्राहक था. भारत ने इस साल क़रीब 64 करोड़ 54 लाख डॉलर का एयर डिफेंस, रेडार सिस्टम और एयर टु ग्राउंड मिसाइल का सौदा किया था. इनमें से सारे हथियारों का इस्तेमाल इसराइल ने फ़लस्तीनियों के ख़िलाफ़ और सीरिया में किया है. इसराइल ने भारतीय कमांडो को ट्रेनिंग भी दी है कि कैसे वॉर ज़ोन में लड़ा जाता है. नेतन्याहू ने 2008 में मुंबई में हुए आतंकी हमले का ज़िक्र नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में किया था और कहा था कि भारत और इसराइल दोनों ने आतंकवाद का दर्द झेला है.''

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भारत और इसराइल की दोस्ती में इस्लाम को मुख्य प्रेरणा के तौर पर देखा जाता है. रॉबर्ट फिस्क इसे मुस्लिम विरोधी दोस्ती भी कहते हैं.

तेलअवीव में मौजूद पत्रकार हरेंद्र मिश्र का मानते हैं कि इसराइल और भारत की दोस्ती पारस्परिक हितों को लेकर है न कि इस्लाम विरोधी. वो कहते हैं, ''भारत की खाड़ी के इस्लामिक देशों से गहरी दोस्ती है. इसराइल से भी अच्छी दोस्ती है. अगर मजहब का मसला होता तो भारत की दोस्ती किसी एक से ही होती. यहां तक कि इसराइल की दोस्ती भी ईरान को छोड़कर बाक़ी के मुस्लिम देशों से बढ़ रही है.''

पाकिस्तान इसराइल को लेकर द्वंद्व में रहता है कि वो इसराइल से संबंध बनाए या नहीं बनाए. हरेंद्र मिश्र भी मानते हैं कि पाकिस्तान चाहता है कि वो इसराइल से क़रीब आकर भारत के दोस्ती कम करे लेकिन पाकिस्तान की जनता ऐसा होने नहीं देती है. इसराइल भी चाहता है कि इस्लामिक देशों में उसकी स्वीकार्यता बढ़े और वो पाकिस्तान के क़रीब भी आना चाहेगा.''

मिश्र कहते हैं कि 9 सितंबर को नेतन्याहू भारत के दौरे पर जा रहे हैं और संभव है कि वो कश्मीर पर भी कुछ बोलेंगे. इसराइल ने अब तक अनुच्छेद 370 ख़त्म किए जाने को लेकर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है लेकिन वहां की मीडिया रिपोर्ट में भारत का इसे साहसिक क़दम बताया गया है.

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English summary
Is there any Israel connection to India's decision on Kashmir
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