झारखंड चुनाव परिणाम: अकेले पीएम मोदी की लोकप्रियता के दम पर विधानसभा चुनाव जीतने का दौर खत्म हुआ?
नई दिल्ली- पिछले दो महीनों के भीतर देश के तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए हैं। महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड। इन तीनों राज्यों में बीजेपी की सरकारें थीं, जिनमें से दो राज्यों महाराष्ट्र और झारखंड में बीजेपी सत्ता से बाहर हो चुकी है। हरियाणा में उसने सरकार बना तो ली है, लेकिन इसके लिए उसे चुनाव के बाद जननायक जनता पार्टी से हाथ मिलाना पड़ा है। इन तीनों राज्यों में भाजपा का प्रदर्शन 2014 के विधानसभा चुनावों के मुकाबले सीटों के हिसाब से खराब रहा है और तीनों जगहों पर उसकी सीटें कम हुई हैं। भाजपा के रणनीतिकारों ने सोचा था कि इन तीनों प्रदेशों में वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के दम पर सत्ता में वापसी कर लेगी, लेकिन आखिरकार उसका गणित फेल हो गया। मतलब, इन तीनों राज्यों के नतीजे यही बताते हैं कि विधानसभा चुनावों में जीत के लिए सिर्फ मोदी फैक्टर ही काफी नहीं है, बल्कि स्थानीय उम्मीदवार, स्थानीय मुद्दे और प्रदेश नेतृत्व का भी रोल बहुत बड़ा है।
झारखंड में सत्ता से बाहर हुई बीजेपी
झारखंड के इतिहास में पहली बार बीजेपी ने रघुबर दास की अगुवाई में पूरे पांच साल का कार्यकाल पूरा किया है। यहां की रैलियों में बीजेपी ने प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे को आगे रखकर सत्ता में वापसी की पूरी कोशिश की। जगह-जगह केंद्र और राज्य में एक पार्टी की सरकार के नाम पर डबल इंजन से विकास वाली दलीलें दी गईं। लेकिन, भाजपा की सीटें पिछले चुनाव की 37 से घटकर 30 से भी नीचे रहने का अनुमान दिख रहा है। यानि, झारखंड विधानसभा चुनाव में अकेले पीएम मोदी की लोकप्रियता को पार्टी रघुबर दास के पक्ष में नहीं भुना सकी। इसमें स्थानीय मुद्दों, उम्मीदवारों और प्रदेश नेतृत्व ने भी बड़ा रोल निभाया है।
महाराष्ट्र में घट गईं बीजेपी की सीटें
महाराष्ट्र में बीजेपी और शिवसेना गठबंधन को जनादेश मिला, लेकिन बीजेपी की सीटें 2014 की 122 सीटों से घटकर 105 ही रह गईं हैं। हालांकि, ये बात अलग है कि बीजेपी पिछले चुनाव के मुकाबले इसबार वहां बहुत कम सीटों पर चुनाव लड़ी थी और उसकी स्ट्राइक रेट काफी बढ़िया रही थाी। लेकिन, तथ्य ये है कि सीटों के हिसाब से वहां पार्टी को नुकसान हुआ है। जबकि, बीजेपी की ओर से हर रैली में ये नारा दिया जाता था कि दिल्ली में नरेंद्र और महाराष्ट्र में देवेंद्र। लेकिन, यह नारा मतदाताओं पर उतना असरदार साबित नहीं हुआ। अलबत्ता, बीजेपी सीटें घटने से भी ज्यादा झटका तब लगा, जब शिवसेना ने ही उसे झटका दे दिया और उसने कांग्रेस-एनसीपी के साथ हाथ मिलाकर सरकार बना लिया।
हरियाणा में अपने दम पर नहीं बना पाई सरकार
हरियाणा में भी मनोहर लाल खट्टर की अगुवाई में भाजपा सरकार ने कार्यकाल पूरा किया था। बीजेपी अबकी बार 70 पार जैसे नारे लगाते हुए चुनाव मैदान में उतरी थी। यहां भी भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता को भुनाने की पूरजोर कोशिश की थी, डबल इंजन की सरकार की दुहाई दी गई थी, लेकिन मतदाताओं पर राज्य में अकेले पीएम मोदी का जादू चलता नहीं दिखा। क्योंकि, 2014 के मुकाबले पार्टी की सीटें 46 से घटकर मात्र 40 पर अटक गई और उसे जननायक जनता पार्टी के दुष्यंत चौटाला से सहारा लेकर सरकार बनानी पड़ी। इसकी वजह ये रही कि हरियाणा के वोटरों ने विधानसभा चुनाव के लिए सिर्फ पीएम मोदी की लोकप्रियता पर नहीं, उम्मीदवारों के चयन और स्थानीय मुद्दों को भी अपने दिमाग में रखकर वोट डाले।
तीन राज्यों के नतीजे क्या कहते हैं?
अगर महाराष्ट्र, झारखंड और हरियाणा विधानसभा चुनावों का विश्लेषण करें तो यह बात सामने आती है कि राज्यों पीएम मोदी का जादू चलने के लिए यह जरूरी है कि पार्टी प्रदेश नेतृत्व, स्थानीय मुद्दों और हर चुनाव क्षेत्र के मुताबिक बेहतर उम्मीदवारों पर भी फोकस करे। क्योंकि, सिर्फ राष्ट्रीय मुद्दे पर पीएम मोदी का चेहरा प्रदेश में जीत के लिए भी बीजेपी का ट्रंप कार्ड साबित होगा, यह अब बड़ा सवाल बन चुका है।
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