क्या RJD की छवि बदलने के लिए लालू-राबड़ी से भी पीछा छुड़ाने की कोशिश में हैं तेजस्वी यादव ?
नई दिल्ली- पिता के जेल में होने और मां के पारिवारिक विवादों में उलझे होने की वजह से लगता है कि बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को राजद पर पूरा नियंत्रण बना पाने का मौका मिल गया है। पार्टी की ओर से बार-बार साफ किया जा चुका है कि इस साल के अंत में होने वाला बिहार विधानसभा चुनाव उन्हीं की अगुवाई में लड़ा जाएगा और तेजस्वी ही पार्टी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार होंगे। लेकिन, इस बीच तेजस्वी की ओर से कई ऐसे संकेत मिल रहे हैं, जिससे लगता है कि वह लालू-राबड़ी के जमाने वाली छवि से आरजेडी को बाहर निकालना चाहते हैं, ताकि जिनके जेहन में अभी भी उस कथित 'जंगलराज' वाले आरोपों की दौर की गूंज मौजूद है, उनकी नाराजगी को दूर किया जा सके।
तेजस्वी के मंच से लालू-राबड़ी की तस्वीर गायब
तेजस्वी यादव अपने पिता लालू यादव और मां राबड़ी देवी के शासनकाल वाली छवि से पार्टी को बाहर निकालना चाहते हैं, इसका सबसे बड़ा सबूत रविवार को पटना में हुई उनकी एक सभा में देखने को मिला। 'बेरोजगारी हटाओ यात्रा' के आगाज के लिए उसी वेटनरी कॉलेज ग्राउंड में मंच बनाया गया था, जहां से कभी खुद लालू यादव ने राजनीति का ककहरा सीखा था। लेकिन, ताज्जुब की बात ये रही कि कुछ दशकत तक लालू की सियासत की पहचान बन चुके इलाके में मौजूद इस मैदान में उनके बेटे के मंच पर ही लालू-राबड़ी की पहचान गायब कर दी गई। मतलब, उस मंच पर लालू-राबड़ी की कोई तस्वीर नहीं नजर आई। मंच पर सिर्फ और सिर्फ तेजस्वी छाए हुए थे। 1997 के बाद यह पहला मौका था जब राजद सुप्रीमो सीन से पूरी तरह गायब कर दिए गए।
आरजेडी के नए अवतार हैं तेजस्वी ?
सबसे बड़ी बात ये है कि मंच पर तेजस्वी के बड़े भैया तेजप्रताप यादव भी मौजूद थे, लेकिन तस्वीर उनकी भी नहीं लगाई गई थी। जबकि, नीतीश सरकार में तेजस्वी के साथ-साथ कैबिनेट में वो भी शोभा बढ़ा रहे थे। वह अभी भी राजद के नेता हैं और पार्टी के चुने हुए विधायक भी। तेजप्रताप ने तो छोटे भाई को सीएम बनाने के लिए अपना खून बहाने तक का दावा किया था। तेजप्रताप ही नहीं, बहन मीसा भारती की भी कहीं कोई तस्वीर नजर नहीं आई। जबकि, वह राज्यभा में पार्टी की प्रतिनिधि हैं और तेजस्वी से पहले लालू-राबड़ी की सियासी उत्तराधिकारी बनने की सबसे मजबूत दावेदार भी रह चुकी हैं। मतलब, साफ है कि वह कार्यकर्ताओं के बीच अपने अलावा लालू-राबड़ी के कुनबे के किसी भी सदस्य की छवि नहीं उभरने देना चाहते और खुद को आरजेडी के एक नए अवतार के रूप में पेश करना चाहते हैं।
लालू-राबड़ी के कार्यकाल में गलतियां हुईं
राजद के जरिए अपनी छवि बदलने की तेजस्वी यादव की कोशिश का एक और सबूत तब देखने को मिला जब उन्होंने भी मान लिया कि उनके माता-पिता यानि लालू-राबड़ी के कार्यकाल में कुछ गलतियां हुई थीं। आरजेडी के मंच से लालू-राबड़ी के कार्यकाल में गलतियों की बात कबूल करना बिहार की राजनीति के लिए सामान्य घटना नहीं है। लालू यादव चारा घोटाले में दोषी साबित होकर सलाखों के पीछे पहुंच गए, लेकिन उन्हें अपनी करनी पर कभी पछतावा नहीं हुआ। न ही कभी राबड़ी देवी ने माना कि उन दोनों के कार्यकाल से नाराजगी की वजह से ही जनता का उनसे मोहभंग हुआ था। लेकिन, अब तेजस्वी यादव को सार्वजनिक मंच से यह स्वीकार करने में कोई दिक्कत नहीं हो रही है कि उनके माता-पिता से भी कुछ गलतियां हुई थीं।
'नई सोच, नया बिहार' का नारा
'बेरोजगारी हटाओ यात्रा' में तेजस्वी पार्टी के जिस रथ पर सवार हुए, उस पर नारा लिखा था, नई सोच नया बिहार। मतलब, लालू-राबड़ी की पार्टी आज सत्ता में 15 साल से बाहर रहने के बाद (बीच में कुछ समय को छोड़कर) अपनी सोच बदलने के लिए मजबूर हुई है। 2005 के विधानसभा चुनाव में बिहार के मतदाताओं ने इसीलिए सत्ता से लालू के परिवार को दूर कर दिया था, क्योंकि तब विपक्ष लालू-राबड़ी के शासनकाल को जनता के बीच 'जंगलराज' वाली छवि कायम करने में सफल रहा था। उससे पहले के लालू के परिवार और पार्टी के लोगों की कथित दबंगता के किस्से बिहार की सियासत में आज भी मशहूर हैं। उस समय शासन करने के लिए राजद ने एक ही मंत्र कायम किया था, जिसे आज भी 'माय (MY)'समीकरण के नाम से जानते हैं। यानि, लालू-राबड़ी की पूरा राजनीति मुस्लिम-यादव समीकरण के भरोसे टिकी थी, जिसके चलते बाकी कई सारी जातियां और समाज ने उनसे दूरी बना ली। हाल के दिनों में आरजेडी के रघुवंश प्रसाद सिंह और शिवानंद तिवारी जैसे ऊंची जाति से आने वाले बड़े नेताओं ने भी सलाह देने की कोशिश की है कि सत्ता में आने के लिए पार्टी को उन वर्गों में भी पैठ बनानी पड़ेगी, जो किसी वजह से दूर हो गए थे। यही वजह है कि तेजस्वी फिलहाल अपनी नई छवि दिखाने की कोशिश में हैं, लेकिन यह कितने दिन कायम रह पाएगी, यह बड़ा सवाल है?
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