सोनभद्र का नाम क्या वाकई सोना पाए जाने की वजह से पड़ा है?
उत्तर प्रदेश के सोनभद्र ज़िले में सैकड़ों टन सोना जमीन में दबा होने का पता चला है. बताया जा रहा है कि राज्य सरकार को काफ़ी समय पहले ही इसकी जानकारी मिल चुकी थी. सोने की तलाश में जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया (जीएसआई) की टीम पिछले पंद्रह साल से इस मामले में सोनभद्र में काम कर रही थी. आठ साल पहले टीम ने ज़मीन के अंदर सोने के ख़जाने की पुष्टि कर दी थी.
उत्तर प्रदेश के सोनभद्र ज़िले में सैकड़ों टन सोना जमीन में दबा होने का पता चला है.
बताया जा रहा है कि राज्य सरकार को काफ़ी समय पहले ही इसकी जानकारी मिल चुकी थी.
सोने की तलाश में जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया (जीएसआई) की टीम पिछले पंद्रह साल से इस मामले में सोनभद्र में काम कर रही थी.
आठ साल पहले टीम ने ज़मीन के अंदर सोने के ख़जाने की पुष्टि कर दी थी.
यूपी सरकार ने अब इसी सोने की खुदाई करने के मक़सद से इस टीले को बेचने के लिए ई-नीलामी प्रक्रिया शुरू कर दी है.
राज्य के खनिज विभाग ने इसकी पुष्टि की है और जल्द ही विभाग इस सोने को निकालने के लिए खुदाई शुरू कर देगा.
सोन नदी की वजह से नाम
सोनभद्र ज़िले की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक़, ये भारत का एक मात्र ज़िला है जिसकी सीमा चार राज्यों से मिलती है.
ये राज्य हैं, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और बिहार. यह उत्तर प्रदेश से सुदूर दक्षिण में बसा है और एक औद्योगिक क्षेत्र है.
यहां बॉक्साइट, चूना पत्थर, कोयला, सोना जैसे बहुत सारे खनिज पदार्थ उपलब्ध हैं. सोनभद्र को ऊर्जा की राजधानी कहा जाता है क्योंकि यहां बिजली संयंत्र काफ़ी मात्रा में है.
सोनभद्र का नाम सोनभद्र क्यों पड़ा और क्या सोना से इसका कोई ताल्लुक है, इस सवाल पर बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के प्राचीन इतिहास विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर प्रभाकर उपाध्याय कहते हैं कि सोनभद्र का नाम सोन नदी की वजह से पड़ा है लेकिन इसकी वजह सिर्फ सोन नदी ही नहीं है. सोन नदी का नाम सोन नदी इसलिए पड़ा है क्योंकि इसमें सोने के अंश मिलते रहे हैं.
वो कहते हैं कि सिर्फ सोन नदी ही नहीं, मध्य प्रदेश और ओडिशा की भी कुछ नदियों की रेत में सोने के अंश मिलते रहे हैं.
पूरा क्षेत्र आयरन बेल्ट
बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, "इन नदियों के किनारे गोल्ड वाशिंग (सोना निकालना) का काम होता था. यहां चट्टानों की बनावट ऐसी है कि जब ये चट्टानें टूटती हैं और नदी के संपर्क में आती हैं तो वो टूटकर बिखरती जाती हैं और इसी वजह से इन नदियों के किनारे गोल्ड वॉशिंग का चलन बढ़ा. इन नदियों में सोने के अंश पाए जाने पर यह पता चलता है कि इधर जो चट्टानें मौजूद हैं उनमें सोना पाया जाता है. सोनभद्र में आदिवासी हाल फिलहाल तक ये करते रहे हैं."
हालांकि इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग के पूर्व प्रोफेसर जीएन पॉल के मुताबिक़, सोनभद्र का नाम सोन नदी की वजह से ही रखा गया है. इसका सोने से कोई ताल्लुक नहीं है और ना ही सोन नदी में सोने के अंश मिलने की बात सच हुई.
वो बताते हैं, "ऐसा कहा जाता है कि गोल्ड वाशिंग का काम यहां होता था लेकिन यह महज कहावतें है. इसकी कोई पुष्ट जानकारी नहीं है."
गंगा नदी के समतल इलाके जैसे आगरा और ग्वालियर से आते हुए बिहार और बंगाल तक पूरा क्षेत्र आयरन बेल्ट कहा जाता है.
पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग
प्रो. उपाध्याय कहते हैं कि इन इलाकों में आयरन बहुतायत है. दूसरा शहरीकरण गंगा के आसपास के क्षेत्र में आयरन मिलने की वजह से ही किया गया.
उन्होंने कहा, "सोनभद्र में एक जगह सोनकोरवा है. यहां सोना तलाशने के लिए लोगों ने काफ़ी खुदाई की है और उसके अवशेष अब तक मिल रहे हैं. लेकिन ये खुदाई बहुत गहरी नहीं हुई. करीब 20 फीट तक ही लोगों को खोदा और जितना भी थोड़ा बहुत सोना मिला वो रख लिया. लोगों को ऊपर-ऊपर सोना मिला उन्होंने निकाल लिया लेकिन इस बात के संकेत हमेशा से मिले हैं कि उस इलाके में सोना काफ़ी मात्रा में मौजूद है."
प्रो. उपाध्याय बताते हैं कि पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने उस इलाके में काफ़ी गहरी खुदाई कराई थी लेकिन उसमें जो सोना मिला वो आर्थिक तौर पर उतना कारगर नहीं था. यानी जितनी मेहनत और खर्च के बाद सोना निकला उसकी कीमत बहुत ज़्यादा नहीं थी, जबकि खुदाई और सोने की तलाश में जो खर्च हो रहा था वो काफ़ी अधिक था. इसलिए इसे काम को आगे नहीं बढ़ाया गया.
सोनभद्र की संस्कृति
उपाध्याय कहते हैं, "मैं पीएचडी के लिए वहां गया था. वहां कुछ चट्टानों के अवशेष ऐसे मिले थे जिनमें सोने के अंश मौजूद थे. हम लोग कुछ-कुछ चीज़ें लेकर भी आए थे. पेपरवेट के तौर पर उसका इस्तेमाल करते हैं."
प्रो. प्रभाकर उपाध्याय साल 2005 में 'माइनिंग एंड मिनरल्स इन एंसिएंट इंडिया' नाम की किताब भी लिख चुके हैं. इसमें सोनभद्र और आसपास के इलाके में सोना मौजूद होने के अलावा खनन और खनिजों की मौजूदगी का ज़िक्र है.
सोनभद्र काफ़ी पिछड़ा इलाका माना जाता रहा है और मूल रूप से आदिवासी इलाका ही था. हालांकि अब यहां काफ़ी विकास हो चुका है. यहां की संस्कृति भी आदिवासी ही रही है. अब यहां सीमेंट, बालू, थर्मल पावर प्लांट जैसे कई उद्योग स्थापित हो चुके हैं.
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'यूरेनियम मिलने की बात सच हो सकती है'
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के प्राचीन इतिहास विभाग से रिटायर हो चुके प्रो जीएन पाल का कहना है कि प्रागैतिहासिक युग के लोगों ने यहां किस तरह अपना सांस्कृतिक विकास किया, पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की खुदाई में यहां पुरानी सभ्यता और आबादी के साक्ष्य मिले हैं. ऐसा कहा जाता है कि गोल्ड वाशिंग का काम यहां होता था लेकिन यह महज कहावतें है.
वो कहते हैं, "अशोक के शिलालेख यहां मिले हैं इसलिए ये साबित होता है कि अशोक के शासन के दौरान यहां लोग रहते थे. मौर्य काल और गुप्तकाल की भी चीज़ें मिलती हैं. हालांकि सोना मिलने की बात पहली बार है."
वो मानते हैं कि यहां ज़मीन के अंदर सोने के अलावा यूरेनियम भी मौजूद होने की बात सच साबित हो सकती है.
प्रो. पाल बताते हैं कि वो 1980 के दशक में पुरातत्व शोध के लिए सोनभद्र इलाके में गए थे. वहां किसी धातु के स्रोत को लेकर शोध किए गए लेकिन तब सोना मौजूद होने के संकेत नहीं मिले थे. आयरन की मौजूदगी के सबूत पहले भी मिलते रहे हैं.
विरासत और संस्कृति
सोनभद्र ज़िले की सरकारी वेबसाइट के मुताबिक ज़िले के दक्षिण में छत्तीसगढ़ राज्य और मध्य प्रदेश राज्य के सिंगराउली जिले पश्चिम में हैं.
इसका ज़िला मुख्यालय रॉबर्ट्सगंज शहर में है.
सोनभद्र ज़िला विंध्य क्षेत्र में पाई जाने वाली कई गुफा चित्रकारी साइटों के लिए जाना जाता है.
लखानिया गुफाएं कैमूर की पहाड़ियों में स्थित हैं और ये रॉक पेंटिंग्स के लिए जानी जाती हैं.
ये ऐतिहासिक चित्र लगभग 4000 वर्ष पुराने बताए जाते हैं और एक युग की संस्कृति और विश्वास को दर्शाते हैं.
यहां खोडवा पहाड़ या घोरमंगार एक और प्रसिद्ध प्राचीन गुफा चित्रकला साइट है.
इस क्षेत्र में दो बांध, रिहंद बांध और बरकंधरा बांध भी हैं. यहां लोरी का रॉक भी है जो एक ऐतिहासिक विशाल चट्टान है.