राजद में बवाल का डर, जानबूझ कर दबा दी चुनावी हार की समीक्षा रिपोर्ट
पटना। अगर राजद की चुनावी हार की समीक्षा रिपोर्ट सार्वजनिक हो जाए तो पार्टी में बवाल तय है। इस लिए संभावित सियासी भूचाल को टालने के लिए यह रिपोर्ट ठंडे बस्ते में डाल दी गयी है। लोकसभा चुनाव में राजद की करारी हार की समीक्षा के लिए राजद के वरिष्ठ नेता जगदानंद सिंह की अध्क्षता में एक कमेटी गठित की गयी थी। यह कमेटी 29 मई को गठित हुई थी और इसे सात दिनों के अंदर अपनी रिपोर्ट देनी थी। इस कमेटी में जगदानंद के अलावा अब्दुल बारी सिद्दीकी और आलोक कुमार मेहता शामिल हैं। रिपोर्ट तैयार है लेकिन पार्टी में बवाल के डर से इसे सार्वजनिक नहीं किया जा रहा है । चर्चा है कि इस रिपोर्ट में पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए कुछ प्रभावशाली लोगों पर सख्त कार्रवाई की सिफारिश की गयी है। इस रिपोर्ट को जानबूझ कर दबा दिया गया है। 40 दिन से अधिक हो गये लेकिन क्यों नहीं इस रिपोर्ट को जारी किया गया है?
समीक्षा रिपोर्ट सार्वजनिक हो जाए तो पार्टी में बवाल तय
5 जुलाई को राजद का स्थापना दिवस मनाया गया। 6 जुलाई को राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक भी हुई, लेकिन जानबूझ कर जगदानंद कमेटी की सिफारिशों पर चर्चा नहीं की गयी। कहा जा रहा है कि जगदानंद कमेटी ने जहानाबाद सीट पर राजद की हार के लिए गुटबाजी को जिम्मेवार बताया है। चर्चा के मुताबिक रिपोर्ट में इसको लेकर तेजप्रताप यादव पर कार्रवाई की सिफारिश की गयी है। इतना ही नहीं राजद में सीट बंटवारे पर जिस तरह पार्टी के लोगों ने ही एक दूसरे की टांग खींची, उनकी भी पहचान की गयी है। इन नेताओं पर अगर कोई कार्रवाई होती है तो पार्टी में नये सिरे से उठापटक शुरू हो जाएगी। पहले से ही कमजोर हो चुका राजद अब किसी नये झंझट को न्योता नहीं देना चाहता। वैसे इस रिपोर्ट की जानकारी लालू यादव को है। फिलहाल उन्होंने भी इस पर चुप्पी साध ली है। खबरों के मुताबिक तेजस्वी ने लालू यादव के सामने पहले ही तेजप्रताप को पार्टी से बाहर करने की मांग रखी हुई है।
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पसोपेश में क्यों है पार्टी ?
राजद के प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे का कहना है कि जगदानंद कमेटी की रिपोर्ट तैयार है। अभी बिहार विधानमंडल का सत्र चल रहा है। सत्र के बाद इसे जारी कर दिया जाएगा। लेकिन इसके जारी होने की कम ही संभावना है। लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार की जिम्मेदारी कुछ वरिष्ठ नेताओं पर भी डाली गयी है। प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र् पूर्वे भी निशाने पर हैं। तेजप्रताप, पूर्वे पर पक्षपात करने का व्यक्तिगत आरोप लगा चुके हैं। पूर्वे को तेजस्वी कैंप का नेता माना जाता है। शिवानंद तिवारी भी कह चुके हैं कि तेजस्वी अपने ईर्द-गिर्द रहने वाले चेहरों को बदलें। अगर पार्टी को आगे ले जाना है तो तेजस्वी को सोच बदलनी होगी। 80 विधायकों वाली पार्टी अपने चार सांसदों की सीट भी गंवा बैठी। इस हार पर ईमानदारी से चिंतन करने की जरूरत है।
रिपोर्ट की क्या है अहमियत?
लालू यादव शायद खुद भी इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करना नहीं चाहते। अब इस रिपोर्ट का कोई खास महत्व इस लिए भी नहीं है क्यों कि 2020 का विधानसभा चुनाव तेजस्वी के नेतृत्व में ही लड़ने की घोषणा हो चुकी है। हार की जिम्मेवारी से तेजस्वी को मु्क्त कर दिया है। तेजप्रताप पहले ही कह चुके हैं कि हार की जिम्मेवारी उसकी है जिसने चुनाव में टिकट बांटे। यानी उन्होंने परोक्ष रूप से तेजस्वी के माथे पर ही हार का ठिकरा फोड़ दिया। अब अगर केवल तेजप्रताप पर कोई कार्रवाई की जाती है तो इसको तर्कसंगत नहीं ठहराया जा सकता है। अगर दिखावे के लिए किसी दूसरी पंक्ति के नेता पर कार्रवाई हुई तो कार्यकर्ताओं में गलत संदेश जाएगा। इसलिए पार्टी ने समीक्षा रिपोर्ट को फिलहाल फाइलों में दबा कर रख दिया है।
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