JDU's PK: क्या NRC और CAA पर JDU की खींची लाइन जानबूझकर लांघ रहे हैं प्रशांत किशोर?
बेंगलुरू। बिहार में सत्तारूढ़ जनता दल-युनाइटेड (जदयू) पार्टी लाइन से हटकर बयानबाजी करने और पार्टी के फैसले की सार्वजनिक आलोचना करने पर उतारू पार्टी उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर औए पूर्व सांसद पवन वर्मा को जदयू से जल्द बाहर का रास्ता दिखा सकता है।
यह खबर हर बीजेपी और जदयू के बिहार में संभावित गठबंधन के लिहाज से सही हो सकती है, लेकिन सीएए और एनआरसी के विरोध में प्रशांत किशोर की मुहिम की सच्चाई यह है कि पीके यानी प्रशांत किशोर की यह पीपड़ी एक रणनीति का हिस्सा हो सकता है, जिसके जरिए पार्टी मुस्लिम वोटरों को नाराज और निराश नहीं करना चाह रही है।
एक तरफ जहां जदयू के मुखिया नीतीश कुमार प्रशांत किशोर के खिलाफ कार्रवाई को कह चुके हैं, लेकिन प्रशांत किशोर बेहिचक विरोध की पीपड़ी बजाने से बाज नहीं आ रहे हैं। प्रशांत किशोर का साथ कोरस के रूप में पूर्व जदयू सांसद पवन वर्मा भी बखूबी दे रहे हैं।
नीतीश कुमार के अंदरूनी रणनीति को अमलीजामा पहनाने के लिए ही जदयू के बिहार प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह सामने आए और पीके और पवन वर्मा पर कार्रवाई की जुगाली की। जदयू प्रमुख और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसी मुहिम के तहत पार्टी के दोनों नेताओं पर सीधी कार्रवाई के बजाय उनपर छोड़ दिया है कि वो जब चाहें तो पार्टी छोड़कर जा सकते हैं।
हालांकि जदयू के पूर्व प्रवक्ता अजय आलोक ने बिना नाम लिए दोनों नेताओं को थेथर बताकर जरूर लोगों का उलझा दिया है कि पार्टी की रणनीति क्या है। अजय आलोक ने दोनों नेताओं को थेथर के वृक्ष करार देते हुए कहा कि थेथर के वृक्ष पर कितना भी डंडा मारिए, थेथर इंसान को कितना भी प्यार से समझाइए कोई असर नहीं होता हैं, जिनको अपने से काट कर ही अलग करना ही हितकर होता हैं। बिना मान लिए अजय आलोक ने कहा कि ऐसे दो थेथर अभी तक हमारे दल में हैं जिनसे कुछ भी उम्मीद रखना बेमानी हैं।
जदयू नेता अजय आलोक निः संदेह प्रशांत किशोर और पवन वर्मा की ही बात कर रहे थे। जदयू नेता ने ट्वीट में लिखा है कि ऐसे थेथरो को जैसे ही अपने से अलग करेंगे वो अपने वास्तविक जगह यानी थेथर पार्टी में चले जाएंगे, जहां इनसे भी महान थेथर लोग मौजूद हैं। वहां इन लोगों को कोई पूछेगा नहीं, यही डर इनको सताता हैं इसलिए दोनों लोग यही (जदयू) जमे हुए हैं।
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प्रशांत किशोर को पार्टी लाइन से इतर बोलने पर नीतीश की दो टूकरशांत किशोर और पवन वर्मा को जल्द पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है।
बिहार के मुख्यमंत्री और JDU अध्यक्ष नीतीश कुमार ने दो टूक शब्दों में कहा था कि जिन्हें जहां अच्छा लगे वहां चले जाएं। इसके बाद अटकलें शुरू हो गई हैं कि सीएए मुद्दे पर पार्टी लाइन के इतर जाने वाले पार्टी उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर और पवन वर्मा को जल्द पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है।
नीतीश कुमार की सीएए पर हां और एनआरसी पर न?
उन्होंने बिहार में एनआरसी लागू करने से सीधे-सीधे नकार दिया था। चूंकि एनआरसी लागू करने से पीछे अभी केंद्र की सरकार खुद हट गई है, इसलिए नीतीश की पार्टी को बिहार विधानसभा चुनाव 2020 से पहले लाइफ लाइन मिल गई है। केंद्रीय सूची में निर्मित नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ कोई भी राज्य विधानसभा में प्रस्ताव लाना तो दूर विधानसभा में चर्चा करना भी अंसैधानिक माना जाता है, क्योंकि नागरिकता राज्यों का नहीं, केंद्र का विषय है। यह बात कांग्रेस नेता और पूर्व कानून मंत्री कपिल सिब्बल भी दिए एक बयान में स्पष्ट कर चुके हैं।
सीएए के खिलाफ प्रस्ताव ला चुके हैं केरल, पंजाब और राजस्थान सरकार
अभी तक केरल, पंजाब और राजस्थान सरकार सीएए के खिलाफ प्रस्ताव ला चुकी है, जो पूरी तरह से असंवैधानिक है। चूंकि पंजाब और राजस्थान में कांग्रेस सरकार है और दोनों राज्यों ने मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए ऐसा किया है जबकि दोनों राज्यों को अच्छी तरह से पता है कि प्रस्ताव संविधान की अवहेलना कर रही है, जिससे दोनों राज्य सरकारे बर्खास्त तक हो सकती हैं। जदयू प्रमुख नीतीश कुमार बखूबी जानते हैं कि सीएए के खिलाफ प्रस्ताव का क्या हश्र होने वाला है। चूंकि बिहार में बीजेपी और जदयू सहयोगी पार्टी हैं इसलिए वहां जदयू के प्रस्ताव लाने का कोई तुक ही नहीं, दूसरे बिहार के मुखिया नीतीश बिहार विधानसभा चुनाव बीजेपी के साथ ही लड़ना चाहती है।
नीतीश कुमार की नजर बिहार विधानसभा चुनाव में जीत पर है
क्योंकि उसके राजद के नेतृत्व वाली महागठबंधन सरकार का अनुभव बेहद खराब रहा है। माना जा रहा है कि बिहार विधानसभा का कार्यकाल नंबवर, वर्ष 2020 में खत्म हो रहा है और उसके पहले ही चुनाव संपन्न किया जाना है। इसलिए नीतीश कुमार चुनाव तक बीजेपी के साथ कोई पंगा नहीं लेना चाहती है, क्योंकि नीतीश की नजर बिहार विधानसभा चुनाव पर है।
अमित शाह के हस्तक्षेप के बाद शांत हुआ नीतीश विरोधी मुहिम
तत्कालीन बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के हस्तक्षेप के बाद बिहार में गठबंधन के मुख्यमंत्री कैंडीडेचर को लेकर नीतीश विरोधी बीजेपी नेताओं में शुमार संजय पासवान और गिरिराज सिंह शांत हो गए थे, जिन्होंने ने बीजेपी-जदूय गठबंधन के लिए नए नेता के तलाश की उछाली थी।
नीतीश को गठबंधन का नेता बताकर अमित शाह ने मामला शांत करवाया
लेकिन नीतीश कुमार को गठबंधन का नेता बताकर अमित शाह ने मामला शांत करवा दिया था और गिरिराज सिंह और संजय पासवान को फोन पर डांट भी पिलाई थी। माना जा रहा है कि संसद मे सीएए के पक्ष में वोट करने वाली जदयू सीएए के खिलाफ कोई आधिकारिक स्टेप नहीं लेने जा रही है, इसलिए पार्टी उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर और पवन वर्मा को खुला छोड़ दिया है ताकि कंफ्यूजन पैदाकर मुस्लिमव वोटरों को अपने पाले में रखा जा सके।
पवन वर्मा और प्रशांत किशोर दोनों नेता बिना जनाधार वाले नेता हैं
दरअसल, जदयू में पूर्व सांसद पवन वर्मा और प्रशांत किशोर दोनों नेता बिना जनाधार वाले नेता हैं और दोनों के सीएए के खिलाफ और नहीं बोलने से पार्टी के वोट बैंक पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। चूंकि पार्टी सीएए और एनआरसी के मुद्दे पर सीधे टकराव से बचना चाहती है, इसलिए दोनों नेताओं को हाथ के दिखाने के दांत का तरह इस्तेमाल कर रही है ताकि बीजेपी के साथ गठबंधन पर सीधा असर न पड़े और जदयू का स्टैंड भी क्लियर नहीं होगा। संभव है जदयू दोनों नेताओं को कारण बताओ जैसे टूल के जरिए नोटिस भी दे दे, लेकिन पार्टी से बाहर निकालने का जोखिम जदयू बिल्कुल नहीं लेगी।
सीएए और एनआरसी के मुद्दे पर सीधे टकराव से बचना चाहती है JDU
2014 और 2019 लोकसभा चुनाव में मोदी लहर से पैदा हुई सुनामी के बाद से नीतीश कुमार के प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा न अंगड़ाई लेनी बंद कर दी है। दोनों चुनावों में मिली बीजेपी को मिली प्रचंड जीत के बाद से नीतीश कुमार ने अपने राजनीतिक मस्तिष्क से प्रधानमंत्री पद लालच वाली मिमोरी की डिलीट कर दिया है।
फिलहाल प्रधानमंत्री पद को ठंडे बस्ते में डाल चुके हैं नीतीश कुमार
यही कारण है कि अब वो पीएम नरेंद्र मोदी के साथ बैर में नहीं पड़ना चाहते हैं, क्योंकि उन्हें मालूम था कि इसका सीधा असर उनकी राजनीतिक पूंजी पर पड़ेगा। उनका टारगेट अभी बिहार विधानसभा चुनाव 2020 पर है, जिसे लेकर नीतीश कोई ऐसा कोई विवाद नहीं चाहते, जिसका असर उनके चुनाव पर पड़े।
40 लोकसभा सीटों में से 39 सीट जीतने में कामयाब हुई BJP-JDU-LJP
नीतीश कुमार अच्छी तरह जानते हैं कि भाजपा और लोक जनशक्ति पार्टी से उनकी नैया एक बार फिर पार हो जाएगी और अगर इस दौरान प्रशांत किशोर को कुछ दिन के लिए दूर भी करना पड़ा तो कोई जोखिम नहीं होगा। इसकी तस्दीक लोकसभा चुनाव 2019 के परिणाम में छिपा है, जब चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की मदद के बिना ही पार्टी बीजेपी-जदयू गठबंधन 40 लोकसभा सीटों में से 39 सीटें जीतने में कामयाबी हासिल कर ली थी। चूंकि नीतीश को फिलहाल भाजपा के साथ में ही बिहार की सत्ता वापस मिलती दिख रही है, इसलिए वह कोई जोखिम लेने के मूड में नहीं है।
अभी हाल में प्रशांत किशोर ने सीट को लेकर छोड़ा था एक शिगूफा
अभी हाल में प्रशांत किशोर ने एक और शिगूफा छोड़ा था, उन्होंने कहा कि 2009 लोकसभा और 2010 विधान सभा चुनाव की भाजपा को जनता दल यूनाइटेड को तरह बड़े भाई की तरह ज़्यादा सीटें देनी चाहिए। प्रशांत किशोर के इस बयान को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सहमति पर जेडीयू नेताओं का कहना था कि जो प्रशांत किशोर बोल रहे हैं वहीं नीतीश कुमार की भी भावना है।
गठबंधन में बीजेपी की सीटों की संख्या को कम करना चाहती है जदयू
बिहार बीजेपी के अध्यक्ष संजय जयसवाल का कहा कि जनता दल यूनाइटेड को बताना होगा कि प्रशांत किशोर का बयान क्या पार्टी का अधिकारिक बयान है अथवा नहीं? नीतीश यह कवायद प्रदेश गठबंधन में अधिक सीटें लेकर बीजेपी की सीटों की संख्या को कम करना है। इससे बिहार बीजेपी के नेता तिलमिला गए।
दिल्ली में स्टार प्रचारकों की लिस्ट से बाहर किए गए प्रशांत किशोर
जनता दल (यूनाइटेड) ने दिल्ली विधानसभा चुनाव के स्टार प्रचारकों की लिस्ट से प्रशांत किशोर को बाहर करने का निर्णय भी नीतीश की रणनीति का हिस्सा है। हालांकि राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के लिए काम करने के चलते पार्टी ने यह फैसला लिया है। इस पर सफाई देते हुए जल संसाधन मंत्री और दिल्ली विधानसभा चुनाव में जदयू के प्रभारी संजय झा ने कहा कि जैसी डिमांड होती है, वैसी लिस्ट बनाई जाती है। जिस नेता की जहां जरूरत होती है वहां उसे टास्क दिया जाता है। मालूम हो, जदयू ने झारखंड विधानसभा चुनाव और बिहार में हुए उपचुनाव के लिए प्रशांत किशोर को स्टार प्रचारकों की लिस्ट में जगह दी थी।