क्या PM मोदी सऊदी 100 बिलियन डॉलर निवेश पर मुहर लगवाने जा रहे हैं?
बेंगलुरू। भारतीय अर्थव्यवस्था पर ग्लोबल स्लो डाउन के आसन्न खतरे के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जल्द ही सऊदी अरब का दौरा करने जा रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी का सऊदी अरब का यह दौरा कई मायनों में महत्वपूर्ण है, लेकिन यह दौरा इसलिए अधिक मायने रखता है क्योंकि दुनिया का सबसे बड़ा तेल निर्यातक सऊदी अरब दक्षिण एशियाई क्षेत्र में रिफाईनिंग, ऊर्जा और बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में निवेश करने का इच्छुक है। माना जा रहा है कि अगर भारतीय भूभाग सऊदी अरब के लिए एक सुगम स्थान हो सकता है, जहां वह करीब 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर निवेश कर सकता है।
प्रधानमंत्री मोदी की सऊदी अरब यात्रा की अभी तक कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के हालिया सऊदी यात्रा का मजमून यह बताता है कि प्रधानमंत्री मोदी के सऊदी दौरे की आधाकारिक घोषणा जल्द हो सकती है, जहां पहुंचकर प्रधानमंत्री मोदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान सहित शीर्ष सऊदी नेतृत्व के साथ द्विपक्षीय बैठक में भारतीय भूभाग पर सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस को कन्वीन्स कर सकते हैं। पीएम मोदी का सऊदी दौरे की घोषणा जल्द हो सकती है, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजधानी रियाद में खाड़ी राष्ट्र द्वारा आयोजित एक 'निवेश शिखर सम्मेलन' में भाग लेने की भी उम्मीद जताई जा रही है।
प्रधानमंत्री मोदी के सऊदी दौरे की आधार शिला राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने रखी है, जो पिछले दिनों सऊदी अरब के दौरे पर थे। सूत्र बताते हैं कि अजीत डोभाल ने प्रधानमंत्री मोदी की सऊदी यात्रा की जमीन तैयार की है, जहां डोभाल ने सऊदी अरब के शीर्षस्थ नेताओं के साथ द्विपक्षीय मुद्दों के विभिन्न पहलुओं के लिए भारत भूभाग में निवेश की विस्तृत चर्चा की थी। इस दौरान डोभाल ने जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविंधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के भारत के फैसले के बारें में भी सऊदी को कन्वींस किया।
उल्लेखनीय है कि अगर प्रधानमंत्री मोदी सऊदी अरब जाते हैं तो यह उनकी खाड़ी देश में दूसरी यात्रा होगी। उन्होंने आखिरी बार वर्ष 2016 में रियाद का दौरा किया था। रियाद यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी को अब्दुल अजीद सऊद के नाम पर देश का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार से सम्मानित किया था। इससे पूर्व सऊदी अरबर के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान फरवरी, 2019 में भारत का दौरा कर चुके हैं। भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों ने रियाद घोषणा में परिकल्पित रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने के लिए गहरी प्रतिबद्धता की पुष्टि करने के साथ चरमपंथ और आतंकवाद की भी निंदा की थी।
माना जा रहा है कि सऊदी अरब दक्षिण एशियाई क्षेत्र में प्रस्तावित निवेश के लिए भारत का चुनाव कर सकता है, क्योंकि सऊदी अरब पाकिस्तान और अफगानिस्तान समेत अन्य दक्षिण एशियाई देशों में निवेश के लिए अनिच्छा पहले ही जाहिर कर चुका है, जो उसके बयानों से स्पष्ट होता है। अगर सऊदी अरब भारत में 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश के लिए आगे आता है, तो यह निवेश भारतीय अर्थव्यवस्था पर आसन्न मंदी की आशंका को दूर करने में काफी सहायक होगा। यही नहीं, 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश से भारत के बुनियादी संसाधनों के विकास में भी मदद मिलेगी।
हालांकि कश्मीर पर इस्लाम की दुहाई देकर पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ जहर उगल कर सऊदी अरब को बरगलाने की कोशिश की थी, लेकिन पाक अपनी नापाक कोशिश में बुरी तरह पिट गया। सऊदी अरब ने पाकिस्तानी की दलीलों को बुरी तरह नजरंदाज कर दिया, क्योंकि सऊदी अरब भारत के रूप में एक अच्छे कारोबारी रिश्तों में तलाश रहा है। इसकी पुष्टि करते हुए सऊदी अरब के राजदूत डॉ. सऊद बिन मोहम्मद अल साती ने कहा कि भारत एक आकर्षक निवेश गंतव्य है और सऊदी अरब तेल, गैस और खनन जैसे क्षेत्रों में भारत के साथ दीर्घकालिक भागीदारी पर गौर कर रहा है।
भारत और सऊदी अरब के बीच मैत्रीपूर्ण व्यापारिक साझेदारी की मिसाल सऊदी अरब की सबसे बड़ी तेल कंपनी अरामको और भारत की रिलायंस इंडस्ट्रीज के साथ प्रस्तावित भागीदारी दोनों देशों के बीच संबंधों को उजागर करता है। अल साती ने सऊदी अरब और भारत के बीच भविष्य की व्यापारिक रिश्तों पर चर्चा करते हुए बताया कि सऊदी अरब के युवराज मोहम्मद बिन सलमान के विजन 2030 से भी दोनों देशों के बीच विभिन्न क्षेत्रों में व्यापार और कारेाबार में उल्लेखनीय विस्तार होगा। दरअसल, सऊदी अरब विजन 2030 के तहत पेट्रोलियम उत्पादों पर आर्थिक निर्भरता कम करने का प्रयास कर रहा है।
मालूम हो, भारत सऊदी अरब से अपनी जरूरत का 17 फीसदी कच्चा तेल और 32 फीसदी एलपीजी खरीदता है और वर्ष 2019 में दोनों देशों के बीच विभिन्न क्षेत्रों में संयुक्त भागीदारी और निवेश के 40 से अधिक अवसरों की पहचान की गई है। फिलहाल, दोनों देशों के बीच 34 अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार होता है और इस बात में कोई शक नहीं कि निकट भविष्य में इसमें वृद्धि ही देखने को मिलेगी।
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