2003 में बिहार को विशेष दर्जा ना मिल पाने के लिए नीतीश हैं जिम्मेदार?
पटना।
क्या
नीतीश
कुमार
ने
अपनी
राजनीति
चमकाने
के
लिए
बिहार
को
विशेष
दर्जा
देने
की
मांग
उठायी
है
?
2018
में
केन्द्र
सरकार
ने
मानकों
का
हवाला
देकर
इस
मांग
को
ठुकरा
दिया
था।
तब
फिर
नीतीश
ने
पूर्वी
क्षेत्रीय
परिषद
की
बैठक
में
अमित
शाह
के
सामने
क्यों
ये
मांग
रखी
?
वह
भी
विधानसभा
चुनाव
के
ठीक
पहले।
क्या
नीतीश
भाजपा
की
कमजोर
नस
दबा
कर
अपना
एजेंडा
लागू
करना
चाहते
हैं
?
क्या
नीतीश
ये
संकेत
देना
चाहते
हैं
कि
बिहार
के
विशेष
दर्जा
के
लिए
वे
भाजपा
की
दोस्ती
भी
कुर्बान
कर
सकते
हैं
?
यानी
नीतीश
यह
दिखाना
चाहते
हैं
कि
बिहार
के
विकास
के
लिए
सबसे
प्रतिबद्ध
नेता
वहीं
हैं।
लालू
यादव
ने
2018
में
आरोप
लगाया
था
कि
2003
में
ही
बिहार
को
विशेष
राज्य
का
दर्जा
मिल
जाता
लेकिन
नीतीश
कुमार
ने
तत्कालीन
प्रधानमंत्री
अटल
बिहारी
वाजपेयी
से
पैरवी
कर
इस
मामले
को
रुकवा
दिया
था।
लालू
के
मुताबिक,
नीतीश
को
इस
बात
का
डर
था
कि
इसका
श्रेय
राबड़ी
सरकार
को
मिल
जाएगा
और
उनकी
राजनीति
चौपट
हो
जाएगी।
ऐसा
क्यों
कहा
था
लालू
ने?
क्या वाजपेयी जी मान गये थे?
लालू यादव ने 9 मार्च 2018 को दो ट्विट किये थे। उन्होंने लिखा था, 2003 में तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी जी पटना आये थे। मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने प्रधानमंत्री के सामने बिहार को विशेष दर्जा देने की मांग पूरे तथ्यों के साथ पुरजोर तरीके से उठायी थी। वाजपेयी साहब इससे सहमत हो गये थे क्यों कि उन्होंने ही 2000 में बिहार का बंटवारा किया था। उन्हें इसकी जानकारी थी लेकिन जब बाजपेयी जी एयरपोर्ट लौटने लगे तो रेल मंत्री नीतीश उनकी कार में लटक लिये। उन्होंने कहा कि अगर आप बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दे देंगे तो हमारी राजनीति चौपट हो जाएगी और कभी भी हमारी सरकार नहीं बनेगी। इस तरह नीतीश की संकीर्ण और नाकारात्मक सोच की वजह से बिहार का हक मारा गया। राजद का आरोप हैं कि नीतीश इस मुद्दे पर सिर्फ राजनीति करते हैं, वे कभी बिहार को हक दिला नहीं सकते। बिहार और केन्द्र दोनों ही जगह एनडीए की सरकार है, फिर क्या दिक्कत है।
अपनी-अपनी राजनीति
बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की मांग को नीतीश ने अपना मुख्य एजेंडा बना लिया है। नीतीश का आरोप है कि वे इस मुद्द् पर तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मिलना चाहते थे लेकिन उन्होंने मिलने का समय ही नहीं दिया था। लालू यादव उस समय केन्द्र में मंत्री थे। उनके समर्थन से मनमोहन सिंह की सरकार चल रही थी। फिर क्यों नहीं बिहार को विशेष दर्जा दिला दिया ? नीतीश ने विशेष दर्जा को अपनी राजनीति की पहचान से जोड़ लिया है। 2013 में नीतीश और भाजपा अलग हो गये थे। नीतीश ने तब कांग्रेस के साथ साथ भाजपा पर भी बिहार की अनदेखी का आरोप लगाया था। मार्च 2014 में नीतीश ने सीएम रहते विशेष दर्जा की मांग पूरा करने के लिए बिहार बंद का आयोजन किया था। नीतीश ने गांधी मूर्ति के सामने दिनभर सत्याग्रह किया था। वे मुख्यमंत्री आवास से पैदल ही गांधी मैदान पहुंचे थे। उनके साथ जदयू के हजारों कार्यकर्ताओं भी थे। नीतीश ने 6 किलोमीटर की ये दूरी करीब सवा घंटे में पूरी की थी। गांधी मैदान पहुंच कर उन्होंने बापू की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया और दिन भर वहीं सत्याग्रह किया। तब नीतीश ने तत्कालीन कांग्रेस सरकार और भाजपा को चेताया था कि वे बिहार के साथ अन्याय बर्दाश्त नहीं करेंगे। नीतीश भले फिर भाजपा के साथ मिल सरकार चला रहे हैं लेकिन इस मामले वे कोई समझौता करना नहीं चाहते। इस मुद्दे को नीतीश जदयू का कोर एजेंडा मानते हैं और खुद ही सारा श्रेय भी लेना चाहते हैं।
क्या होगा विशेष दर्जा मिलने पर
भारते के 29 राज्यों में 11 को विशेष दर्जा हासिल है। विशेष दर्जा वाले राज्यों को केन्द्रीय सहायता का सर्वाधिक लाभ मिलता है। ऐसे राज्यों को केन्द्र सरकार जो वित्तीय राशि देती है उसमें 90 फीसदी रकम सहायता के रूप में होती है और 10 फीसदी रकम कर्ज के रूप में होती है। जबकि समान्य राज्यों को वित्तीय आवंटन का 70 फीसदी हिस्सा कर्ज के रूप में दिया जाता है और 30 फीसदी हिस्सा सहायता के रूप में। ऐसे में किसी स्पेशल स्टेटस वाले राज्य को विकास के लिए अधिकतम पैसा मिलता है जिस पर कोई देनदारी नहीं होती। लेकिन किसी राज्य को विशेष दर्जा दिया जाएगा, इसके लिए कुछ मानक तय किये गये हैं। दुर्गम पर्वतीय क्षेत्र, जनजातीय बहुलता, कमजोर आधारभूत ढांचा, कम प्रतिव्यक्ति आय, अंतर्राष्ट्रीय सीमा जैसी कुछ शर्तों को पूरा करने वाले राज्यों को यह दर्जा प्रदान किया जाता है। पिछले कुछ साल से बिहार के अलावा आंध्र प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान और गोवा स्पेशल स्टेटस की मांग करते रहे हैं। मनमोहन सरकार ने बिहार की मांग ध्यान नहीं दिया था। 2018 में केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा था कि चूंकि बिहार, मानकों की शर्तें पूरा नहीं करता इसलिए उसे विशेष दर्जा नहीं दिया जा सकता। अगर नियमों को शिथिल कर बिहार की मांग मान ली जाती है तो अन्य राज्यों को भी यह दर्जा देना होगा। ऐसे में फिर केन्द्र सरकार कैसे चलेगी, सरकार चलाने के लिए पैसा कहां से आएगा ? लेकिन अब नीतीश कुमार का कहना है कि बिहार जैसे पिछड़े राज्य को मुख्य धारा में लाने के लिए विशेष दर्जा आवाश्यक है। यह बिहार का हक है और केन्द्र इसकी अनदेखी नहीं कर सकता। क्या नीतीश इस मुद्दे पर अब आर-पार की लड़ाई लड़ने वाले हैं ?
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