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क्या मायावती की बसपा पर हावी हो रहा है भाई-भतीजावाद? नज़रिया

मायावती ने रविवार को बहुजन समाज पार्टी में अपने भाई आनंद कुमार और अपने भतीजे आकाश को उच्च पदों पर बिठाकर उस क़दम को उठाया है जिसका लोग लंबे समय से इंतज़ार कर रहे थे. उन्होंने अपने भाई आनंद को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और भतीजे आकाश को राष्ट्रीय कोर्डिनेटर बनाया है. लेकिन वह इसके लिए चुनाव ख़त्म करने का इंतज़ार कर रही थीं.

By रामदत्त त्रिपाठी
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अखिलेश यादव, मायावती
Getty Images
अखिलेश यादव, मायावती

मायावती ने रविवार को बहुजन समाज पार्टी में अपने भाई आनंद कुमार और अपने भतीजे आकाश को उच्च पदों पर बिठाकर उस क़दम को उठाया है जिसका लोग लंबे समय से इंतज़ार कर रहे थे.

उन्होंने अपने भाई आनंद को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और भतीजे आकाश को राष्ट्रीय कोर्डिनेटर बनाया है.

लेकिन वह इसके लिए चुनाव ख़त्म करने का इंतज़ार कर रही थीं.

वह चुनाव से पहले ऐसा करने से झिझक रही थीं क्योंकि उन्हें लगता था कि लोकसभा चुनाव से पहले ऐसा क़दम उठाने से उनके ऊपर भी भाई-भतीजावाद की राजनीति करने का आरोप लगेगा.

मगर अनौपचारिक रूप से दोनों ही पार्टी के कामकाज में काफ़ी सक्रिय थे.

बसपा में आनंद कुमार की भूमिका

आनंद कुमार मायावती के कार्यक्रमों में अहम भूमिका निभाते थे.

इसके साथ ही वह पार्टी के लिए फंड जुटाने का काम करते हैं.

वहीं, मायावती ने आकाश को अपनी रैलियों में भी जगह दी और मंचों पर भी साथ बिठाया.

राजनीतिक मंचों पर मायावती और आकाश के बीच कम होती दूरी ये संकेत दे रही थी कि मायावती आकाश को अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में चुन लेंगी.

SAMEERATMAJ MISHRA/BBC

क्या हैं कारण?

इसके कारणों पर ग़ौर करें तो मायावती की बढ़ती उम्र एक बड़ा कारण है.

इसके साथ ही वह पार्टी के ज़रूरी मसलों पर बाहरी लोगों पर भरोसा नहीं करना चाहती हैं.

पार्टी में फंड जुटाना भी ऐसा ही एक काम है जिसके लिए वह किसी बाहरी व्यक्ति के भरोसे नहीं रहना चाहती हैं.

मायावती
AFP
मायावती

एक ज़माने में उन्होंने राजाराम गौतम को पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया था लेकिन बाद में उन्हें हटा दिया गया.

अब उन्होंने राजाराम को अपना नेशनल कोऑर्डिनेटर बनाया है. इसके साथ ही आकाश को भी यही पद दिया है.

ऐसे में उन्होंने एक तरह से अपने उत्तराधिकार को लेकर उठ रहे सवालों का जवाब दे दिया है.



क्या बसपा अब पारिवारिक पार्टी हो गई है?

इसमें कोई दो राय नहीं है.

कांशीराम ने जब बहुजन समाज पार्टी बनाई थी तो उसकी बुनियाद में बामसेफ़ संगठन था जिसमें दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक शामिल थे.

बाद में इसे एक पार्टी का रूप दिया गया जिसमें 85 फीसदी जनता के प्रतिनिधित्व की बात की जाती थी.

लेकिन मायावती ने सत्ता में आने के लिए बराबर समझौते किए.

1993 में उन्होंने मुलायम सिंह यादव और इसके बाद बीजेपी और कांग्रेस के सहयोग से वह मुख्यमंत्री बनीं.

बीजेपी का सहयोग उन्होंने दो-तीन बार और लिया.

इस तरह उन्होंने सर्वसमाज का नारा दिया. ब्राह्मणों को अपने साथ जोड़ने के लिए सतीश मिश्रा को अपने साथ मिलाया.

ऐसे में मायावती सत्ता के लिए समय समय पर हर संभव गठजोड़ करती रही हैं.

इस तरह उनकी पार्टी की छवि प्रभावित हुई.

इमेज कॉपीरइटSAMEERATMAJ MISHRA/BBC

और उनकी पार्टी को वोट देने वाला दलित समाज बसपा से दूर होकर बीजेपी समेत दूसरे दलों के क़रीब चला गया.

दलित समाज में भी अब मायावती के प्रति उस तरह की वैचारिक श्रद्धा और विश्वास नहीं है, जैसा कि कांशीराम के नेतृत्व पर लोग भरोसा करते थे.

मायावती अब सिर्फ़ अपने स्वजातिय लोगों की नेता बनकर रह गई हैं. इसीलिए, उन्होंने अखिलेश यादव के साथ भी गठजोड़ किया था जो कि बहुत कामयाब नहीं रहा.



अब आगे क्या करेंगी मायावती?

अब सवाल ये उठता है कि ये फ़ैसला करने के बाद मायावती के लिए आगे की राह क्या होगी.

इसका जवाब ये है कि मायावती ने आगामी विधानसभा उपचुनाव अकेले लड़ने का ऐलान किया है.

हालांकि, पहले बसपा उपचुनावों में शामिल नहीं हुआ करती थी.

FACEBOOK/YADAVAKHILESH

ख़ास बात ये है कि रविवार को कार्यकर्ताओं की बैठक में उन्होंने दो बातें कही हैं.

इनमें से पहली बात उन्होंने ये कही कि अखिलेश यादव मुस्लिम उम्मीदवारों को ज़्यादा टिकट नहीं देना चाहते थे.

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि जब से चुनाव के नतीजे आए हैं तब से अखिलेश यादव ने उनसे बात नहीं की है.

उनकी इस बात से आने वाले विधानसभा चुनावों में एक बार फिर सपा-बसपा गठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की संभावनाएं नज़र आती हैं.

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English summary
Is Nepotism dominating in Mayawati's BSP?
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