क्या किसान आंदोलन से हलकान है मोदी सरकार, किसानों को मनाने के लिए तलाश रही है विकल्प
नई दिल्ली। कृषि कानून 2020 के खिलाफ दिल्ली के बार्डर पर आंदोलनरत किसानों का जज्बा एक महीने से अधिक दिन बाद भी बरकरार है, जिससे केंद्र की मोदी सरकार लगातार हलकान हुई जा रही है, क्योंकि गत 4 जनवरी को 7वें दौर की वार्ता के बावजूद किसान और सरकार के बीच आंदोलन को खत्म करने को लेकर कोई समाधान नहीं निकल सका है। यही कारण है कि सरकार ने अब किसानों को मनाने के लिए दूसरे विकल्पों पर काम करना शुरू दिया है।
भारत में अचानक कोरोना संक्रमण में आई गिरावट का क्या है बड़ा कारण, आइए जानते हैं?
किसान तीनों कृषि कानून को खत्म करने को लेकर अमादा हैं
गौरतलब है किसान जहां तीन कृषि कानून को खत्म करने को लेकर अमादा हैं, तो सरकार कृषि कानून को निरस्त करने के बजाय सरकार के बातचीत करने पहुंचे किसान प्रतिनिधियों से कृषि कानून में संशोधन करने और उसके लिए कमेटी बनाने समेत एमएसपी कानून बनाने के लिए भी लगभग तैयार है, लेकिन तीन कृषि कानूनों के निरस्त करने को लेकर किसानों की मांग को लेकर गतिरोध कायम है। सरकार और किसान के बीच 8वें दौकी वार्ता 8 जनवरी को होनी है, जिसका हश्र भी किसानों के तेवर को देखते हुए पहले ही समझा जा सकता है।
कृषि मंत्री ने किसानों से 7वें दौर की वार्ता से पूर्व राजनाथ सिंह से मुलाकात की
सरकार की ओर से किसानों से बातचीत कर रहे केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने 7वें दौर की वार्ता के बाद केंद्रीय रक्षा मंत्री के साथ बैठक की थी और वर्तमान संकट से यथाशीघ्र समाधान निकालने के लिए दूसरे विकल्पों पर चर्चा की थी। हालांकि 4 जनवरी को हुई सातवें दौर की वार्ता भी बिना किसी नतीजे के खत्म हो गई, क्योंकि किसान प्रतिनिधि तीनों कृषि कानूनों को खत्म करने के कम पर राजी नहीं है। हालांकि किसान प्रतिनिधि 8वें दौर की वार्ता के लिए तैयार हो गए है, जिसे सरकार सकारात्मक कहने से नहीं चूक रही है।
कृषि कानून के खिलाफ जारी धरने को 40 दिन से अधिक बीत चुका है
हालांकि कृषि कानून के खिलाफ जारी धरने को 40 दिन से अधिक बीत चुका है और धऱना दे रहे 33 से अधिक किसानों की मौत ने सरकार पर दवाब बढ़ाना शुरू कर दिया है, क्योंकि मौसम की मार से किसानों की मौत के आंकड़े को लगातार बढ़ाया है और पहली बार एक ही दिन में 4 किसानों की मौत ने सरकार को विकल्प तलाशने के लिए मजबूर कर दिया है। भारी-बारिश ने एक ओर जहां धऱना दे रहे किसानों की हालत खराब की है, तो किसानों की लगातार हो रहीं मौतें सरकार को लगातार विकल्प तलाशने को मजबूर कर रही हैं।
दावा है कि आंदोलन के चलते देशभर में 54 किसानों की जान गई है
रिपोर्ट की मानें तो किसान नेताओं का दावा है कि आंदोलन के चलते देशभर में 54 किसानों की जान गई है और अगर मौसम विभाग की भविष्यवाणी पर गौर करें तो यह आंकड़ा तेजी से बढ़ सकता है, क्योंकि मौसम विभाग ने अगले 2 दिन भी बारिश का अनुमान जताया है और कहीं-कहीं ओले गिरने की भी संभावना जताई गई है। यही नहीं, भारी बारिश और ठिठुरती ठंड में बार्डर पर खड़े प्रदर्शनकारी लगातार उग्र प्रदर्शन की धमकी सरकार को दे रहे है, जिससे सरकार को समाधान के लिए झुकना अस्वयंभावी हो गया है।
राजनाथ सिंह एक अहम संकटमोचक के रूप में उभर सकते हैं
सूत्रों के अनुसार कृषि मंत्री तोमर ने संकट के समाधान के लिए बीच का रास्ता ढूंढने के लिए सभी संभावित विकल्पों पर चर्चा की है। माना जा रहा है कि पिछली बार अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में कृषि मंत्री रहे राजनाथ सिंह एक अहम संकटमोचक के रूप में उभर सकते हैं और वो लगातार किसानों के साथ समाधान के विकल्पों पर पर्दे के पीछे से काम कर रहे हैं। संभव है कि सरकार किसानों के साथ अगले दौर की वार्ता में एक नए फार्मूले पर किसान प्रतिनिधियों पर चर्चा शुरू करे और नतीजे सकारात्मक परिणाम दे सकते हैं।
सरकार और किसान के बीच हुई अब तक 7 दौर की वार्ता बेनतीजा रही
उल्लेखनीय है सरकार और किसान के बीच हुई अब तक हुई 7 दौर की वार्ता बेनतीजा ही रही है। 30 दिसंबर को छठे दौर की वार्ता में बिजली दरों में वृद्धि और पराली जलाने पर जुर्माने पर सहमति बनी थी, लेकिन फिर भी किसान आंदोलन समाधान की ओर मुड़ता हुआ नहीं दिख रहा है, क्योंकि किसान कृषि कानून 2020 को समाप्त करने को लेकर आज भी अडिग है, जबकि सरकार किसानों की आशंकाओं पर लगातार सफाई देती आ रही है। इस मुद्दे पर खुद प्रधानमंत्री मोदी कई बार किसानों को समझाने की कोशिश की है, लेकिन अब तक नतीजा शिफर रहा है।
किसान और सरकार 8वें दौर की वार्ता की वार्ता के लिए राजी हुए हैं
हालांकि 7वें दौर की वार्ता बेनतीजा खत्म होने के बाद मीडिया से बातचीत में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि भले ही दोनों पक्षों के बीच वार्ता बेनतीजा रही, लेकिन किसान और सरकार अगले दौर की वार्ता के लिए राजी हुए हैं, इसलिए 8वें दौर की वार्ता में सकारात्मक नतीजे पर चर्चा के लिए बातचीत होगी। हालांकि 7वें दौर के वार्ता से पहले भी कृषि मंत्री सकारात्मक नतीजे को लेकर आशान्वित थे, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात निकला था। 8वें दौर की वार्ता 8 जनवरी को होनी है, लेकिन किसान संगठनों द्वारा गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में ट्रैक्टर परेड की धमकी सरकार को अभी से डरा रही है।
7 जनवरी से एक्सप्रेस वे पर ट्रैक्टर मार्च करेंगे किसानः योगेंद्र यादव
मंगलवार को किसान नेता योगेंद्र यादव ने बताया कि कृषि कानून के खिलाफ आगामी 7 जनवरी से एक्सप्रेस वे पर किसान चार तरफ से ट्रैक्टर मार्च करेंगे। ये ट्रैक्टर मार्च कुंडली बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर, गाजीपुर बॉर्डर से पल्लवल की तरफ, रेवासन से पल्लवल की तरफ होगा। योगेंद्र यादव ने बताया है कि 26 जनवरी को देश जो ऐतिहासिक गणतंत्र परेड देखने वाला है उसका एक ट्रेलर 7 जनवरी को दिखाई देगा।
कानून वापस लेने से किसका होगा फायदा?
कृषि कानून 2020 को वापस लेने से सिर्फ और सिर्फ कमिशन लेने वाले एजेंट को फायदा होगा। किसानों को अनाज बेचने का दूसरा कोई विकल्प नहीं होगा और इसका फायदा एजेंट उठाएंगे। इसके अलावा कानून को वापस लेने से राजनीति पार्टियों को फायदा होगा।
समाधान के लिए मोदी सरकार के पास क्या हैं विकल्प?
कानून के तहत एमएसपी को अनिवार्य बनाकर किसानों के नाम पर निहित स्वार्थ की मांगों को पूरा करने के लिए चैक्स में दो से तीन गुना वृद्धि करें। हालांकि ज़्यादा टैक्स के कारण भारत में भविष्य में कोई निवेश नहीं होगा और मौजूदा व्यापार गिर जाएगा। यहां तक कि औद्योगिक सामान अंतरराष्ट्रीय बाजारों से आएंगे, क्योंकि अत्यधिक करों के कारण भारत में निर्माण की तुलना में आयात करना सस्ता होगा।
ज्यादा एमएसपी के कारण निर्यात को नुकसान होगा
ज्यादा एमएसपी के कारण निर्यात को नुकसान होगा और विश्व बाजार में सस्ते विकल्प हैं। निर्यात को बढ़ावा देने के लिए सरकार को सब्सिडी बढ़ानी होगी। इसका मतलब है, अधिक एमएसपी का भुगतान करें और फिर उसी फसलों के लिए अधिक सब्सिडी का भुगतान करें। इन सभी अतार्किक मांगों को पूरा करने के लिए पैसा कहां से आएगा? इससे अन्य कृषि-उद्योगों को नुकसान होगा, क्योंकि अनाज, मुर्गी पालन, डेयरी, कपड़ा, चीनी, रबर जैसे आयातित उत्पाद भारत में आने लगेंगे।
स्थानीय कृषि उपज की मांग को और नुकसान होगा
स्थानीय कृषि उपज की मांग को और नुकसान होगा। किसानों को ज्यादा नुकसान होगा। कृषि राष्ट्र के लिए दायित्व बन जाएगी। अब, ये वही विरोध करने वाले कमीशन एजेंट नहीं खरीदेंगे और किसानों को एमएसपी कभी नहीं देंगे, क्योंकि खुले बाजार में कीमतों को दबा दिया जाएगा। ये सुनिश्चित करेगा कि किसान पूरी तरह से फंस गए हैं।
अब भविष्य में किसान सुधारों की मांग नहीं कर सकते हैं
अब किसान सुधारों की मांग नहीं कर सकते, क्योंकि उन्होंने इसका जम कर विरोध किया। कोई भी क्षेत्रीय राजनीतिक दल सुधार नहीं ला सकता है और कोई भी राष्ट्रीय दल कृषि कानूनों में कोई बदलाव करने के लिए जोखिम उठाने का साहस नहीं करेगा। किसानों की पीड़ा बनी रहेगी और इससे भारत में कई जगहों पर सामाजिक अशांति होगी। किसी को इसके लिए सरकार को दोष नहीं देना चाहिए। दोष किसानों के नाम पर बिना तर्क के विरोध का समर्थन करने वाले लोगों पर जाना चाहिए।