मायावती ये तीन बयान देकर क्या अखिलेश के जख्मों पर नमक छिड़क रही हैं?
नई दिल्ली- सोमवार को जो खबरें मीडिया में सूत्रों के हवाले से घूम रही थीं, उसे मंगलवार को बसपा (BSP) सुप्रीमो मायावती (Mayawati) ने खुद सामने आकर साफ कर दिया। उन्होंने महागठबंधन (Alliance) को उत्तर प्रदेश (UP) में उम्मीदों के मुताबिक कामयाबी नहीं मिलने का सारा ठीकरा समाजवादी पार्टी (SP) और उसके अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) पर फोड़ दिया है। बसपा (BSP) सुप्रीमो ने गठबंधन की हार का कारण समाजवादी पार्टी (SP) को तो बताया ही है, ऐसी-ऐसी बातें सामने रखी हैं, जिससे लगता है कि वो अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की नेतृत्व क्षमता पर सवाल खरी कर रही हैं। एक तरह से उन्होंने सपा लीडरशिप की जले पर नमक छिड़कते हुए भविष्य में गठबंधन के लिए यह शर्त रख दी है कि पहले अखिलेश अपना घर ठीक करें। उसके बाद वो फिर उनकी पार्टी के साथ गठबंधन पर दोबारा विचार कर सकती हैं। यानी यूपी में महागठबंधन के लिए उन्होंने एक तरह से अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) को नोटिस पर रख दिया है।
यादवों के गढ़ में ही हारे सपा के दिग्गज
मायावती (Mayawati)का अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) पर सियासी तंज का इससे बड़ा नमूना क्या हो सकता है कि उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी (SP) के दिग्गजों को जब अपने घर में ही यादवों का वोट नहीं मिला, तो उन्होंने गठबंधन का कितना भला किया होगा, ये सोचने वाली बात है! मायावती (Mayawati)ने साफ शब्दों में कहा कि 'सपा का बेस वोट यादव यादव बहुल सीटों पर भी सपा के साथ नहीं टिके रहे। किसी अंदरूनी नाराजगी के चलते वहां भीतरघात हुआ। यादव बहुल सीटों पर भी सपा के मजबूत उम्मीदवारों को हरा दिया।' इसके लिए मायावती ने बदायूं (Badaun), फिरोजाबाद (Firozabad) और कन्नौज (Kannauj) जैसी सीटों का उदाहरण दिया।
पत्नी को भी नहीं जिता पाए अखिलेश
बुआ (Mayawati)ने यूपी (UP) में हार के कारणों को गिनाने के लिए जिन सीटों का नाम लिया, वो सारी सीटें बबुआ (Akhilesh Yadav) की दुखती रग हैं। इसमें भी कन्नौज (Kannauj) सीट की खास अहमियत है, जहां से कभी निर्विरोध चुनाव जीतने वाली अपनी पत्नी डिंपल यादव (Dimple Yadav) को भी अखिलेश इस चुनाव में बचा नहीं पाए। इसी तरह अखिलेश की बुआ ने बदायूं (Badaun) और फिरोजाबाद (Firozabad) लोकसभा सीट का भी जिक्र छेड़ा, जहां से उनके चचेरे भाई घर्मेंद्र यादव (Dharmendra Yadav) और अक्षय यादव (Akshay Yadav) की भी इसबार चुनावी मिट्टी पलीद हुई है। इनमें से कन्नौज और बदायूं की सीटों पर तो अखिलेश के परिवार के दोनों सदस्य 2014 में बिना गठबंधन किए भी भारी अंतर से जीते थे। मायावती (Mayawati)का कहना है यह सब अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav)की पार्टी के यादव वोटरों का गुनाह है, जिसने इसबार उनके घर वालों का ही खेल खराब कर दिया। बसपा (BSP) सुप्रीमो ने कहा है कि इसने, 'हमें आगे के लिए सोचने पर मजबूर कर दिया है। जब सपा का बेस वोट ने सपा को ही वोट नहीं दिया, तो बीएसपी को क्या दिया होगा ये सोचना होगा!' यानी मायावती यह कह रही हैं कि सपा (SP) के कोर वोटरों ने इस चुनाव में बसपा (BSP) को वोट नहीं दिया है।
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अखिलेश 'मैच्योर' हो जाएंगे तब गठबंधन
मायावती (Mayawati)ने गोल-गोल घुमाकर जो भी बातें कही हैं, उसका लब्बोलुआब ये है कि फिलहाल उन्हें अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की लीडरशिप और समाजवादी पार्टी की क्षमता पर जरा भी यकीन नहीं रह गया है। वो गठबंधन पर टेम्परोरी ब्रेक (Temporary Break) लगाकर एक तरह से अपने बबुआ को पॉलिटकली और ज्यादा मैच्योर होने का मौका दे रही हैं। क्योंकि, मायावती ने अपने प्रेस कांफ्रेंस में जिन लफ्जों का इस्तेमाल किया, उसका मायने तो यही निकलता है। उन्होंने साफ कहा है कि, 'सपा में काफी सुधार लाने की जरूरत है। सपा ने बहुत अच्छा मौका इसबार गंवा दिया। आगे उन्हें बहुत तैयारी करनी होगी। उन्हें बीएसपी कैडर की तरह तैयार करना होगा। यदि उन्हें (Mayawati) लगेगा कि सपा प्रमुख अपने राजनीतिक कार्यकर्मों के साथ-साथ अपने लोगों को राजनीति में माहिर बनाने में कामयाब होते हैं, तब वो फिर से गठबंध पर विचार करेंगी।' क्योंकि, उन्होंने कहा है कि ये 'परमानेंट ब्रेक' नहीं है। यानी अब बुआ अपने बबुआ को आगे उनके साथ राजनीति करने के लिए सुधरने का एक मौका देना चाहती हैं। अब मायावती ने अखिलेश यादव के लिए अपनी शर्तें तो सार्वजनिक कर दी हैं, अब देखने वाली बात है कि अखिलेश बुआ के इन आरोपों और राजनीतिक नसीहतों को किस कदर लेते हैं।
यूपी में किसे फायदा, किसको नुकसान?
यह तथ्य है कि यूपी में महागठबंधन का फायदा सिर्फ मायावती (Mayawati) और उनकी बसपा (BSP) ने ही उठाया है। 2014 में एक भी सीट नहीं जीतने वाली बसपा (BSP) इसबार सपा (SP) और आरएलडी (RLD) की मदद से 10 सीटें जीत गई है। जबकि, बिना गठबंधन के भी समाजवादी पार्टी पिछले चुनाव में 5 सीटें ही जीती थी। वोट शेयर में भी सबसे ज्यादा नुकसान समाजवादी पार्टी को ही भुगतना पड़ा है। उसका वोट शेयर 2014 के 22.2% से घटकर सिर्फ 18% पर पहुंच गया है। जबकि, बीएसपी का वोट शेयर सिर्फ 0.3% कम हुआ है। 2014 में उसे 19.3% वोट मिले थे, 2019 के लोकसभा चुनाव में उसे 19% वोट मिले हैं। लेकिन, 0.3% नुकसान के बावजूद भी उसे इसबार 10 सीटें मिल गई हैं। लेकिन, फिर भी राजनीति की 'माया' ऐसी है कि बसपा सुप्रीमो को अपने ही सियासी बबुआ को कोसने को मजबूर कर रही है।
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